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अपने निर्णयों पर सदैव अटल रहते थे वाजपेयी, पढ़ें राजनीतिक सफर

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की उपलब्धियों को कुछ शब्दों में समेटना असंभव है. वाजपेयी अपने आप में एक मुकम्मल शख्सियत थे. उनके विरोधी भी उनके वाककौशल और दूरदर्शिता के प्रशंसक थे. आइये जानते हैं उनके बारे में कुछ रोचक जानकारियां...

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Published : Aug 16, 2020, 8:00 AM IST

Updated : Aug 16, 2020, 9:14 AM IST

हैदराबाद : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से बांग्लादेश लिबरेशन वॉर अवार्ड स्वीकार करने से पहले एक भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मेरे जैसे कई लोगों के लिए प्रेरणा रहे है भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जिन्हें बांग्लादेश द्वारा सम्मानित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के लोग हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी को बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध का समर्थन करने और बांग्लादेश और भारत के बीच दोस्ती को मजबूत करने के लिए याद रखेंगे.

पुरस्कार के प्रशस्ति पत्र में वाजपेयी को अत्यधिक सम्मानित राजनीतिक नेता के रूप में सम्मानित किया और बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समर्थन में उनकी सक्रिय भूमिका को मान्यता दी. इसमें कहा कि भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष और लोकसभा के सदस्य के रूप में वाजपेयी ने विभिन्न कदम उठाए.

अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में जानने योग्य कुछ बातें

प्रारंभिक जीवन

उनका जन्म मध्य प्रदेश में 25 दिसंबर 1924 को हुआ था. उन्होंने उत्तर प्रदेश के कानपुर के लक्ष्मीबाई कॉलेज से राजनीति विज्ञान में एमए किया.

उनके पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी था जो एक कवि और एक स्कूल मास्टर थे.

वाजपेयी और उनके पिता ने एक साथ लॉ स्कूल डीएवी कॉलेज से पढ़ाई की और कानपुर के एक ही कमरे में रहे.

अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वीर रस की कविताओं के लिए भी प्रसिद्ध हैं जिसमें राष्ट्रवाद का सार है और मानवीय मूल्य भी हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी ने पहली बार भारत छोड़ो आंदोलन के साथ राजनीति की दुनिया में प्रवेश किया.

आप में से बहुत से लोग यह नहीं जानते होंगे कि वह 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में एक स्वयंसेवक के रूप में भी शामिल हुए थे.

वाजपेयी भाजपा के पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के करीबी, अनुयायी और सहयोगी बन गए. उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का साथ दिया.

वह अपने अच्छे संगठनात्मक कौशल के कारण जनसंघ का चेहरा भी बन गए.

अंतत: वे दीनदयाल उपाध्याय के बाद 1968 में जनसंघ के प्रमुख बने. उन्होंने और उनकी पार्टी ने जेपी आंदोलन का समर्थन किया.

जब देश में आपातकाल (1975-1977) लगाया गया था तब वाजपेयी को जेल हुई थी.

वाजपेयी ने 1957 में संसद का पहला चुनाव जीता.

पूर्व पीएम अटल बिहारी लोकसभा में नौ बार और राज्यसभा में दो बार चुने गए.

वाजपेयी ने 1977 में एक उत्कृष्ट वक्ता के रूप में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई सरकार में भारत के विदेश मामलों के मंत्री के रूप में बहुत प्रसिद्धि अर्जित की इसी दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रशंसित भाषण हिंदी में दिया.

प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनके ओजस्वी व्यक्तित्व और कौशल को देखकर भविष्यवाणी की थी कि वो एक दिन देश के पीएम बनेंगे.

युवा अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत-चीन युद्ध होने पर पीएम नेहरू सरकार को निशाने पर भी लिया था.

प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की उपलब्धियां

अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधान मंत्री के रूप में पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले वाले पहले गैर कांग्रेसी नेता थे.

वह 13 दिनों के लिए 1996 में भारत के प्रधान मंत्री बने.

भारत के प्रधान मंत्री के रूप में उनकी प्रमुख उपलब्धियां थीं- राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता के चार प्रमुख शहरों को जोड़ना शामिल है.

यहां तक ​​कि उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए निजीकरण अभियान भी चलाया जिससे दुनिया में भारत की छवि को सुधारने में मदद मिली.

वाजपेयी को वर्ष 1992 में पद्म विभूषण पुरस्कार और 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

1999 वाजपेयी ने लाहौर बस सेवा शुरू की जिसके लिए उनकी काफी सराहना की गई.

उन्हें 2014 में पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

लोग उन्हें प्यार से बाप जी कहकर बुलाते थे. स्वास्थ्य् समस्याओं के कारण उन्होंने वर्ष 2005 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया.

उन्हें 2014 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

Last Updated : Aug 16, 2020, 9:14 AM IST

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