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भारत-उज्बेकिस्तान सैन्य अभ्यास 'डस्टलिक II' पर मध्य एशिया की नजर

भारत-उज्बेकिस्तान के बीच 10 से 19 मार्च को होने वाला संयुक्त सैन्य अभ्यास मध्य एशिया और अफगानिस्तान में भारत की स्थिति को मजबूत करेगा. पढ़िए 'ईटीवी भारत' के वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ की विशेष रिपोर्ट...

'डस्टलिक I' ताशकंद में 2019 में आयोजित किया गया था.
'डस्टलिक I' ताशकंद में 2019 में आयोजित किया गया था.

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Published : Feb 6, 2021, 7:34 PM IST

नई दिल्ली : आतंकवाद के खात्मे पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत और उज्बेकिस्तान की सेनाएं अगले महीने 10 से 19 मार्च को उत्तराखंड के पहाड़ों में संयुक्त सैन्य अभ्यास करेंगी. 'डस्‍टलिक ll' अभ्यास भारत में होगा, जिसमें दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे से तालमेल बढ़ाने की कोशिश करेंगी.

पहली बार भारत-उज्बेकिस्तान सैन्य अभ्यास 'डस्टलिक I' ताशकंद में 2019 में आयोजित किया गया था, जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भाग लिया था. राजनाथ ने अपने उज्बेक समकक्ष मेजर जनरल बखोदिर निज़ामोविच कुर्बानोव के साथ सह-अध्यक्षता की थी.

13 कुमाऊं रेजीमेंट करेगी भारत का नेतृत्व
'डस्‍टलिक ll' का आयोजन भारत में 2020 में ही होना था, लेकिन कोरोना महामारी ने इसमें खलल डाल दिया. सैन्य अभ्यास में भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व 13 कुमाऊं रेजीमेंट द्वारा किया जाएगा. 13 कुमाऊं रेजीमेंट वह बटालियन है, जिसे वीरता के लिए जाना जाता है.

1962 में जब पूर्वी लद्दाख के महत्वपूर्ण पहाड़ी दर्रे रेजांग ला में चीनियों ने आक्रमण किया, इस बटालियन ने अदम्य साहस का परिचय दिया था. 13 कुमाऊं रेजीमेंट का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह ने किया था, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. 18 नवंबर, 1962 को चीन की सेना, जो संख्या में काफी ज्यादा थी, उससे केवल 120 भारतीय सैनिकों ने मुकाबला किया. माना जाता है कि इस लड़ाई में 114 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, जबकि चीन के 1,300 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे.

मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच जो तनातनी हुई, उसके मद्देनजर देश की सुरक्षा के लिहाज से 13 कुमाऊं रेजीमेंट की भूमिका काफी अहम है. मध्य एशिया में जिस तरह चीन अपनी विस्तारवादी गतिविधियों और प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, यह सैन्य अभ्यास काफी मायने रखता है.

सैन्य शक्ति और खनिज भंडार के लिए जाना जाता है उज्बेकिस्तान
उज्बेकिस्तान मध्य एशिया में सैन्य रूप से शक्तिशाली देशों में से एक है. यह वह क्षेत्र है जो तेल, गैस और खनिजों के समृद्ध भंडार के लिए जाना जाता है. भारत के दृष्टिकोण से देखें तो रणनीतिक रूप से उज्बेकिस्तान जहां स्थित है, मध्य एशिया में भारत के हितों को पूरा करने में काफी मददगार साबित हो सकता है. उज्बेकिस्तान जिसकी सीमाएं अफगानिस्तान से जुड़ी हैं,, जहां तालिबान अफगान सरकार के साथ वर्चस्व की लड़ाई में लगा है.

अतीत की बात करें तो भारत उत्तरी गठबंधन का पक्का समर्थक था, जिसने तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. भारत ने हथियारों, सेवाओं और उपकरणों से गठबंधन की मदद की थी. उत्तरी गठबंधन में ज्यादातर उज्बेक्स और ताजिक शामिल थे.

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हाल के दिनों की बात की जाए तो युद्ध से तबाह अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अब्दुल रशीद दोस्तम, नेशनल काउंसिल फॉर नेशनल रीकंसीलेशन (एचसीएनआर) के अध्यक्ष डॉ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला और जनरल अत्ता मोहम्मद नूर ने सितंबर 2020 में भारत यात्रा की थी. इनकी यात्रा से कई तरह की सुगबुगाहट हुई थी, क्योंकि इन तीनों का उत्तरी गठबंधन के साथ मजबूत जुड़ाव है.

एससीओ का भी हिस्सा है उज्बेकिस्तान

'डस्टलिक' अभ्यास के अलावा भारत और उज्बेकिस्तान शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का भी हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य यूरेशिया में राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य सहयोग, समन्वय और एकजुटता है. 2001 में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान द्वारा गठित एससीओ के अब भारत, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान सहित आठ पूर्ण सदस्य हैं.

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