नई दिल्ली: केंद्र की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के खिलाफ विशेषज्ञों ने पूर्वोत्तर राज्यों से विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को रद्द करने का सुझाव दिया है. RRAG निदेशक सुहास चकमा ने इस पर ईटीवी से बातचीत की और AFSPA को हटाने की बात कही.
बुधवार को राइट्स एंड रिक्स एनालिसिस ग्रुप (RRAG) के निदेशक सुहास चकमा ने कहा, 'पूर्वोत्तर में कोई उग्रवाद नहीं है. अगर गवर्नमेंट त्रिपुरा से AFSPA को वापस ले सकती है, तो वे इसे अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से क्यों नहीं हटा सकते.'
RRAG एक ह्यूमन राइट्स वॉचडोग है.
उत्तरपूर्वी राज्यों के संगठन हमेशा से ही AFSPA को निरस्त करने की मांग उठाते रहते हैं. AFSPA कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सशस्त्र बलों को बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और किसी भी घर या वाहन की तलाशी लेने की विशेष शक्ति देता है.
AFSPA कानून केवल उन्हीं क्षेत्रों में लगाया जाता है, जो कि अशांत क्षेत्र घोषित किये गए हों. इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं.
ईटीवी भारत से बातचीत करते सुहास चकमा. सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था. जब 1989 के आस पास जम्मू कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां भी लागू कर दिया गया था. AFSPA अभी भी देश के इन राज्यों में लागू है. ये राज्य हैं; नागालैंड, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से.
AFSPA को मेघालय और त्रिपुरा से हटा लिया गया है.
बता दें, आयरन लेडी के रूप में जानी जाने वाली इरोम चानू शर्मिला ने भी AFSPA को रद्द करने की मांग करते हुए 16 साल का उपवास किया था.
सुहास चकमा ने कहा, 'यदि केंद्र पूर्वोत्तर राज्यों के साथ पूरी तरह से जुड़ना चाहता है, तो उन्हें NE से इस अधिनियम को रद्द करने के मुद्दे पर सोचना चाहिए.'
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हालांकि कई मौकों पर कहा है कि पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद में भारी कमी आई है.
RRAG निदेशक ने कहा, 'AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिए. कानून के शासन द्वारा शासित एक लोकतांत्रिक देश में इसका कोई स्थान नहीं है. AFSPA को जीवित रखकर सरकार अभी भी पूर्वोत्तर के लोगों को अलग-थलग कर रही है.'