नई दिल्ली : भारत में आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर मानसिक स्वास्थ्य और संबंधित मुद्दों पर एक बार फिर चर्चा जोरों पर है. हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 34 साल की उम्र में अपनी जान दे दी.
वहीं दिल्ली में एक अन्य घटना में 56 वर्षीय आईआरएस अधिकारी ने कथिर तौर पर अपनी कार में एसिड जैसा कोई पदार्थ खा लिया और अपने प्राण त्याग दिए. उनकी कार से बरामद सुसाइड नोट में कहा गया कि वह अस्वस्थ थे और उन्हें डर था कि उन्होंने अपने परिवार को संक्रमित कर दिया है. हालांकि, बाद में रिपोर्ट में उनकी कोरोना जांच नेगेटिव आई.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या कर अपनी जान दे देते हैं. आत्महत्या के कई कारण हैं जैसे करियर की समस्याएं, अलगाव की भावना, दुर्व्यवहार, हिंसा, पारिवारिक समस्याएं, मानसिक विकार, शराब की लत, वित्तीय नुकसान, पुराने दर्द आदि.
भारत में 2018 में आकस्मिक मौतों और आत्महत्याओं के लिए एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में देश में कुल 1,34,516 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जिसमें 2017 की तुलना में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और 2018 के दौरान आत्महत्या की दर में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों से बात करते हुए भारत में वर्षों से आत्महत्या के मामलों में वृद्धि के कारणों का पता लगाने का प्रयास किया गया.