नई दिल्ली: मोदी सरकार के नेतृत्व में मानव संसाधन विकास मंत्रालय और उसके मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भले ही लगातार दावे करते रहे हों कि शिक्षा के क्षेत्र में पांच सालों में रिकॉर्ड तोड़ काम हुए हैं लेकिन विशेषज्ञ उन सभी दावों को खोखला बता रहे हैं. चुनावी एजेंडे पर चर्चा के लिये आयोजित कार्यक्रम, सरोकार 2019 में पहुंचे प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक अपूर्वानंद ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में बताया कि किस तरह आगामी चुनाव में शिक्षा का मुद्दा भी प्रमुख होना चाहिये.
देखिये विख्यात प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक अपूर्वानंद के साथ ईटीवी भारत की विशेष बातचीत. प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक अपूर्वानंद ने मोदी सरकार को नई शिक्षा प्रणाली के विफलता पर घेरा. प्रोफेसर का कहना था कि जब 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आई तभी बोला गया था कि कोई न्यू एजुकेशन पॉलिसी आने वाली है जो दो मंत्री और तीन कमेटियां बनने के बाद भी नहीं आ सकी.
अपूर्वानंद ने विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों के मुद्दे पर मौजूदा सरकार पर आरोप लगाया कि ये उन्हीं लोगों को उच्च पदों पर नियुक्त कर रहे हैं जिनके विचार RSS से मेल खाते हैं. मतलब किसी भी उच्च पद के लिये किसी विषय या उस कार्य में विशिष्टता या प्रतिष्ठित स्थान कोई पैमाना ही नहीं है.
शिक्षा को जॉब ओरिएंटेट बनाने के लिये मौजूदा सरकार ने कई योजनाएं शुरू की जिसमें वोकेशनल ट्रेनिंग प्रोग्राम और स्किल डेवलपमेंट पर जोर देने की बात की गई है. ऐसे कई कार्यक्रम चल भी रहे हैं. क्या यह सकारात्मक कदम नहीं है? इस सवाल के जवाब में अपूर्वानंद ने कहा कि विश्वविद्यालय का काम नौकरी दिलाना नहीं है, बल्कि नौकरी पैदा करने का काम बाजार का है. शिक्षण संस्थान केवल शिक्षित और योग्य छात्र दे सकते हैं जो आगे अवसर पा सकें. मौजूदा सरकार में शिक्षा में कहीं भी ज्ञान अर्जन की बात ही नहीं की जा रही है और ये सब कुछ वोकेशनल करने में लगे हैं.
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में शिक्षा के बजट को बढ़ाने की बात की है और युवाओं से बातचीत में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल ने भी कहा था कि वो शिक्षा में और ज्यादा पैसा लगाएंगे. ऐसे में क्या केवल बजटीय आवंटन बढ़ाना ही शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने का एकमात्र उपाय है? इस सवाल के जवाब में अपूर्वानंद ने स्पष्ट कहा कि केवल बजट बढ़ाने से नहीं होगा बल्कि शिक्षण संस्थानों का नेतृत्व कुशल हाथों में होना जरूरी है. विश्वविद्यालयों को पूर्ण आजादी होनी चाहिये और उन पर कुछ भी थोपा जाना नहीं चाहिये. साथ ही सभी विषयों पर शोध की पूरी छूट हो और उसके लिये बजट भी जरूरी है.