नई दिल्ली : केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध में पंजाब सरकार ने मंगलवार को तीन संशोधन विधेयक विधानसभा में पारित किए. अब राजस्थान सरकार और महाराष्ट्र सरकार भी इसी तर्ज पर विधेयक लाने की तैयारी कर रही है और ऐसी जानकारी है कि गैर एनडीए शासित अन्य राज्य जो इन कानूनों के खिलाफ हैं. वह भी विधानसभा सत्र बुला कर संशोधन विधेयक ला सकते हैं.
हालांकि, विधेयक को कानून में तब्दील करने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी भी आवश्यक है, लेकिन इस बात की संभावना नगण्य मानी जा रही है कि राज्य सरकारों के इस कदम को राज्यपाल और राष्ट्रपति का समर्थन मिले. ऐसे में अगला कदम यह है कि राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगी.
इन परिस्थितियों में पंजाब सरकार या आगे किसी भी राज्य सरकार द्वारा लाए गए विधेयक का व्यावहारिक महत्व क्या होगा यह सवाल उठ रहे हैं. कृषि सुधार कानूनों के विरोध में पंजाब और हरियाणा में सबसे ज्यादा आंदोलन देखे जा रहे हैं और देश के अन्य राज्यों में भी किसान संगठनों का समर्थन मोदी सरकार के कानून के पक्ष में नहीं है. तमाम परिस्थितियों को देखते हुए गैर एनडीए सरकार द्वारा इन कानूनों के विरोध में विधानसभा में विधेयक पारित करने को कुछ विशेषज्ञ महज राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति मान रहे हैं.
ईटीवी भारत ने इस विषय पर कृषि विशेषज्ञ और भारतीय कृषि एवं खाद्य परिषद के अध्यक्ष एमजे खान से खास बातचीत की.
इस दौरान एमजे खान ने कहा है कि विधानसभा में पारित संशोधन विधेयक अब भी प्रस्तावित हैं, लेकिन कोई भी राज्य सरकार केंद्र के द्वारा बनाए गए कानून को निरस्त नहीं कर सकती है.
अंततः राज्य सरकार के विधेयक केंद्र के पाले में आएंगे और केंद्र की मंजूरी न मिलने के बाद राज्य सरकारें न्यायालय का रुख करेंगी. यह मुद्दा अब किसानों के आंदोलन से हट कर राजनीतिक नफा नुकसान पर आ गया है और ऐसे में विपक्षी दल यह चाहेंगे कि यह आंदोलन लंबे समय तक चलता रहे, ताकि वह केंद्र सरकार के खिलाफ किसान विरोधी होने की एक भावना लोगों में भर सकें.
केंद्र सरकार को कांग्रेस और उसके गठबंधन सरकार वाले राज्यों में ऐसा होने से ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर अन्य दलों द्वारा शासित राज्यों से भी इस तरह के प्रस्ताव आने लगे तब केंद्र सरकार को इसके बारे में सोचना पड़ेगा.
किसानों की मांग आज भी दो बिंदुओं पर आ कर अटकी हुई है, पहला न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी प्रावधान बनाने की और दूसरा एमएसपी से कम में खरीद पर सजा का प्रावधान.
पंजाब और हरियाणा में गेहूं और धान की 98% फसल सरकार द्वारा एमएसपी पर ही खरीदी जा रही है और अमरिंदर सरकार द्वारा पंजाब विधानसभा में पारित एमएसपी से संबंधित विधेयक यह कहता है कि यदि कोई व्यापारी किसानों को गेहूं या धान एमएसपी से कम दर पर खरीदने के लिए बाध्य करता है तो उसे तीन साल की सजा हो सकती है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब पहले ही लगभग पूरी फसल एमएसपी पर खरीदी जा रही है, तो केवल गेहूं और धान के लिए इस कानून की क्या आवश्यता थी?
एमजे खान कहते हैं कि पंजाब सरकार किसानों को यह भरोसा दिलाना चाहती है कि वह किसानों के साथ मजबूती से खड़ी है. दूसरा उद्देश्य है कि यदि प्राइवेट कंपनियां आएंगी, तो वह भी एमएसपी पर खरीद करने को बाध्य होंगी. किसान भी यही मांग कर रहे हैं.