नई दिल्ली : कालापानी क्षेत्र को लेकर भारत और नेपाल के बीच चल रहे सीमा विवाद के बीच नेपाल ने चीन की सीमा के पास 87 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई है जो चंगरू और टिंकर को जोड़ती है. माना जाता है कि यह टिंकर के उस पार स्थित चीन सीमा तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करेगी. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन नेपाल के इस नई सड़क बनाने से लाभान्वित होगा क्योंकि चीन भारतीय सीमा के करीब आ जाएगा.
ईटीवी से बात करते हुए भारत के पूर्व राजदूत जेके त्रिपाठी ने कहा कि यह माना जा सकता है कि सड़क से नेपाल में चीनियों की आवाजाही सुगम हो जाएगी, लेकिन इसके विपरीत नहीं. इस वजह से कि नेपाल से चीन जाने वाले नेपालियों से कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन चीनियों का नेपाल में आने का मतलब भूटान और सिक्किम के लिए खतरा बन सकता है. उन्होंने आगे कहा कि चीनियों की पैंतरेबाजी का भारत पर प्रभाव पड़ेगा, लेकिन हम नहीं जानते कि चीन की सड़क परियोजना में क्या गूढ़ रहस्य है वास्तव में, नेपाल की तुलना में यह मार्ग चीन को अधिक लाभान्वित करने वाला है, क्योंकि सड़क मार्ग से चीन नेपाल के भीतर गहराई से संपर्क कर सकता है और भारतीय सेनाओं के साथ-साथ भूटान की सेना के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है. उन्होंने दोहराया कि पैदल यात्रियों के लिए 550 मीटर सड़क रणनीतिक रूप से नेपाल की तुलना में चीन के लिए अधिक महत्वपूर्ण होगी क्योंकि इस तरह एक बार चीन यदि नेपाल में घुस आया तो चीन भारतीय सीमा के नजदीक आ सकता है और सिक्किम सीमा या भूटानी सीमा या उत्तराखंड सीमा के लिए खतरा पैदा कर सकता है. इससे भारत के लिए मुश्किल होगी. उन्होंने कहा कि रणनीति के मुताबिक चीन ने सड़क बनाने के लिए नेपाल पर दबाव डाला होगा.
नेपाल को लेकर 1959 से अन्वेषण करने वाले भारतीय सेना के जनरल अशोक के. मेहता ने कहा कि नेपाल एक संप्रभु स्वतंत्र देश है. उसने सीमा के प्रत्येक तरफ और कालापानी के करीब दुर्गम क्षेत्रों में सड़क बनाई है. पहले नेपालियों को भारत की सीमा में आना पड़ता था उसके बाद वह अपने गांवों की ओर जा पाते थे. अब नेपाल सेना ने जो सड़क बनाई है उससे उनकी यात्रा कम हो जाएगी.