उत्तरकाशी : आज से ठीक 28 साल पहले यानी 20 अक्टूबर 1991 की वो काली रात सैकड़ों लोगों के लिए काल बन कर आई थी. जब 19 अक्टूबर की मध्यरात्रि बाद 2.53 बजे लोग गहरी नींद में सोए हुए थे, अचानक धरती डोली और जब तक लोग कुछ समझ पाते, तब तक सैकड़ों लोग काल के गाल में समा चुके थे. इस भयावह कम्पन ने उत्तरकाशी के लोगों का सब कुछ छीन लिया था. जिसे याद कर ग्रामीण आज भी सिहर उठते हैं. आपको दिखाते हैं, Etv Bharat को मिली 1991 के भूकम्प की Exclusive तस्वीरें और जामक गांव के ग्रामीणों की जुबानी भूकम्प की कहानी..
भूकम्प की उस घटना को याद करते उत्तरकाशी के सभागार में रविवार को एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई. कार्यक्रम में गंगोत्री के विधायक गोपाल रावत, मुख्यचिकित्साधिकारी डॉ. डीपी जोशी और जिलाधिकारी आशीष चौहान शामिल हुए.
साल 1991 में 20 अक्टूबर की रात को डोली थी उत्तरकाशी. आपकों बता दें कि उस घटना में 800 लोगों की जानें गयी थीं.
उस भयावह भूकम्प की एक पीड़िता जलमा देवी ने कहा कि तब हमने अपने परिवार के दो लोगों को खो दिया था. जलमा देवी ने कहा ...पोते और पोती हुई थी तो लगा कि पूरी दुनिया मिल गई, लेकिन किसे पता था कि जब तक वो दुनिया देखेंगे, तब तक पूरी दुनिया ही उजड़ गई होगी. इसी तरह ना जाने कितने लोगों की जान इस भूकम्प ने लील ली थी.
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इन्हीं में एक व्यक्ति बलदेव सिंह भी शामिल थे. जो खुद को काफी खुशनसीब समझ रहे हैं. भूकम्प की चपेट में आने से वो मलबे में दब गये थे, लेकिन दूसरे दिन राहत कार्यों के लिए पहुंची आईटीबीपी टीम ने उन्हें मलबे से बाहर निकाला था. जिससे उन्हें एक नई जिंदगी मिली थी. इस घटना ने पूरी घाटी की तस्वीर बदल दी थी.
उत्तरकाशी के सभागार में कार्यक्रम का आयोजन. उन्होंने बताया कि 20 अक्टूबर की रात को भूकम्प आया था. अगले दिन सुबह होने पर चारों ओर टूटे-बिखरे घर और मलबे में दबी लाशें ही नजर आ रही थीं. बलदेव सिंह के मुताबिक, जामक गांव से 72 लोग अपनी जान गवां चुके थे. सारे मकान जमींदोज हो गये थे. जिसमें 90 से 95 बेजुबान भी काल के गाल में समा गये थे.
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गौरतलब है कि साल 1991 में 20 अक्टूबर को भोर में 2.53 बजे आए भूकम्प का केंद्र उत्तरकाशी के जामक गांव में था, जहां पर जानमाल का भारी नुकसान हुआ था. रिक्टर स्केल पर भूकम्प की तीव्रता 6.1 मापी गयी थी. भूकम्प ने कई गांव तबाह कर दिये थे. जामक गांव के साथ ही गणेशपुर, गिनडा समेत मनेरी और अन्य गांवों में जानमाल का काफी नुकसान हुआ था. कई लोग उस काली रात को याद कर अब भी सिहर उठते हैं. इस जख्म को वे कभी नहीं भूल सकते.