रायपुर (छत्तीसगढ़) : भारत में नशीली दवाओं और ड्रग्स के खिलाफ सख्त कानून बने हैं. हालांकि, इस पर पूरी तरह से नकेल कसने की जरूरत है. ऐसे में नशे की गिरफ्त में कैद युवा पीढ़ी को सही रास्ता दिखाने के लिए कोबरा के डॉ. आरके थवाइत ने रिटायरमेंट के बाद भी नौकरी करने का फैसला किया. अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस (26 जून) के मौके पर ईटीवी भारत ने डॉ. आरके थवाइत से विशेष बात की.
इस समय डॉ. आरके थवाइत इंजेक्शन के माध्यम से ड्रग्स लेने वाले युवाओं को दवा देने और उनकी मॉनिटरिंग का काम कर रहे हैं, जिसके लिए वर्ष 2013 में कोई भी तैयार नहीं था. इस काम को वह पिछ्ले 7 वर्षों से करते आ रहे हैं.
कोबरा में नशा मुक्ति केन्द्र
बात 2012 की है, जब छत्तीसगढ़ सरकार के नशामुक्ति अभियान को बल देने के लिए कोरबा जिले में भी नशा मुक्ति केंद्र खोलने की पहल की गई. तब डॉ. थवाइत जिला अस्पताल के सिविल सर्जन थे. सेंटर में चिकित्सक को छोड़कर अन्य सभी स्टाफ की नियुक्ति हो गई, लेकिन इंटरव्यू करने के बाद भी नशा मुक्ति केंद्र में बतौर प्रभारी कोई भी डॉक्टर काम करने को तैयार नहीं था.
2013 में डॉ. आरके थवाइत जिला अस्पताल के सबसे सर्वोच्च पद सिविल सर्जन के दायित्वों से मुक्त हो रहे थे. उनके रिटायर होने का समय आ गया था, लेकिन नशा मुक्ति केंद्र में अभी किसी डॉक्टर की व्यवस्था नहीं हो सकती थी.
डॉक्टर आरके थवाइत नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी बने
दरअसल, नशा मुक्ति केंद्र में काम करने के लिए कोई भी डॉक्टर इसलिए भी तैयार नहीं होता, क्योंकि यहां काम करने वाले डॉक्टर को निजी या सरकारी चिकित्सकों की तुलना में काफी कम तनख्वाह मिलती थी. रिटायरमेंट के बाद डॉ. थवाइत ने तब यह निर्णय लिया कि वह समाजसेवा के लिए नशे की गिरफ्त में आने वाले युवाओं को सही रास्ता दिखाएंगे, तब से लेकर अब तक डॉक्टर थवाइत जिला अस्पताल के नशा मुक्ति केंद्र के प्रभारी हैं.
ड्रग एडिक्ट्स की लगातार बढ़ रही संख्या
पिछले 7 वर्षों में इंजेक्शन के जरिए ड्रग्स लेने वाले 650 युवा सेंटर में रजिस्टर्ड हैं और सभी ऐसे युवा हैं, जिन्हें एनजीओ के माध्यम से यहां लाया गया है. हालांकि इनमें से सभी दवा नहीं लेते, जो चिंता का विषय है. 310 नियमित अंतराल पर दवा लेते हैं, जबकि 70 युवा ऐसे हैं, जो रोज नशामुक्ति के लिए दवा लेने पहुंचते हैं. चिंता यह भी है कि जिले में ड्रग्स लेने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. नशा मुक्ति केंद्र में ऐसे युवाओं के डेटा ही उपलब्ध हैं, जिन तक एनजीओ पहुंच पाईं. ऐसे युवाओं का आंकड़ा अभी मौजूद नहीं है, जो एनजीओ से दूर हैं.
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