नई दिल्ली : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में मंजूरी मिल गई और इसी के साथ 34 वर्ष बाद देश में अब नई शिक्षा नीति लागू करने का रास्ता साफ हो गया है. स्कूली शिक्षा से ले कर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव नई नीति में शामिल हैं. इन्हीं विषयों पर ईटीवी भारत ने देश के जाने माने शिक्षाविद, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और वर्तमान में कुमार मंगलम विश्वविद्यालय के चांसलर प्रो. दिनेश सिंह से विशेष बातचीत की है. उच्च शिक्षा में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव और आने वाले समय की चुनौतियों पर प्रोफेसर दिनेश सिंह ने अपनी बेबाक राय दी है.
प्रो. दिनेश सिंह ने नई शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि यह बेहतर तरीके से लागू किया जाएगा और छात्रों को इसका लाभ मिलेगा. जब प्रोफेसर दिनेश सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति थे तब वह पहली बार चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (FYUP) ले कर आए थे जिसके बाद इसका विरोध भी हुआ और विवाद भी हुए.
बाद में इसे वापस ले लिया गया लेकिन अब राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में एक बार फिर स्नातक में चार वर्षीय कार्यक्रम को लाया गया है. हालांकि इसके साथ एक नई बात यह है कि छात्र अब स्नातक में दाखिले के बाद किसी भी वर्ष में कॉलेज छोड़ सकते हैं. एक वर्ष पूरा करने पर सर्टिफिकेट, दो वर्ष पर डिप्लोमा और तीन वर्ष पर डिग्री का प्रावधान होगा.
चार वर्ष के स्नातक की पढ़ाई के बाद सीधे पीएचडी में दाखिला लेने के लिए छात्रों को अब एमफिल या मास्टर डिग्री की जरूरत नहीं होगी. ऐसे में कई मायनों में यह चार वर्षीय स्नातक कोर्स उस समय लाए गए एफवाईयूपी से भिन्न हैं. इस पर प्रोफेसर दिनेश सिंह ने कहा कि बहुत ज्यादा भिन्नता उस समय और अब जो लाया गया है उसमें नहीं है.
जहां तक विवाद और विरोध का सवाल है उस समय बहुतायत छात्र और शिक्षक इसके पक्ष में थे और इसके वापस लिए जाने के बाद उन्हें दुख था कि क्यों हटाया गया. हालांकि अब दोबारा और ज्यादा विकल्पों के साथ इसे लाया गया है, ऐसे में दिनेश सिंह ने उम्मीद जताई है कि अब इसे बेहतर तरीके से लोग इसके महत्व को समझ सकेंगे.
नई शिक्षा नीति को आने में 34 वर्षों का समय लग गया. समय-समय पर देश में शिक्षा नीति की आलोचना और इसका विश्लेषण होता रहा लेकिन नई शिक्षा नीति के लिए कमेटी के गठन के बाद भी समय समय पर इसमें अड़चने आती रही और समय सीमा को आगे बढ़ाया जाता रहा. ऐसे में क्या यह देरी नहीं होनी चाहिए थी या जो शिक्षा नीति आज आई है वह और पहले भी आ सकती थी?
इस सवाल पर प्रो. दिनेश सिंह ने कहा कि देरी के विषय में वह टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि इसके पीछे के कारणों के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है. डॉ. के कस्तूरीरंगन के कार्य की सराहना करते हुए दिनेश सिंह ने कहा कि एक अच्छी नीति उनके नेतृत्व में बनकर तैयार हुई है.
शिक्षा नीति अब सबके सामने हैं ऐसे में हमारे देश के शिक्षण संस्थान इसके लिए कितने तैयार हैं और नई नीति को लागू करने के लिए किस तरह की तैयारी उच्च शिक्षण संस्थानों को करनी पड़ेगी? इस पर प्रो. दिनेश सिंह ने मुख्य रूप से दो सुझाव सामने रखे हैं. सबसे महत्वपूर्ण उन्होंने शिक्षकों के प्रशिक्षण को बताया है. नई नीति को लागू करने के लिए और नए बदलावों को स्वीकार करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि शिक्षकों को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए.