परंपराओं को तोड़ने वाले (iconoclast) शख्स की पहचान बन चुके अमरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को फिर से महान बनाने और 'सर्वप्रथम अमेरिका' के वादे के बल पर सत्ता में आए. उन्होंने खुले तौर पर साथी देशों पर अमेरिकी उदारता का लाभ उठाने का आरोप लगाया. उन्होंने जी7 और नाटो देशों को मुफ्तखोर कहा, जो अमेरिका द्वारा स्थापित शांति और सुरक्षा का लाभ लेते रहे औप जिनका आर्थिक बोझ मुख्यत: अमेरिका को उठाना पड़ा क्योंकि ये देश खर्च में अपना बराबर का हिस्सा नहीं दे रहे थे. इनकी हिकारत करते हुए ट्रंप ने कहा कि ये देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत भी रक्षा पर खर्च नहीं करते थे.
ट्रंप अपने पूर्ववर्ती की विरासत को उखाड़ फेंकने के प्रति कृत संकल्पित लगे. एक बवंडर की तरह उन्होंने वह सब उखाड़ फेंका, जिस पर बराक ओबामा की छाप थी. वह महत्वाकांक्षी टीपीपी (ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप) व्यापार समझौते, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते और जेसीपीओएए (संयुक्त व्यापक योजना) या ईरान परमाणु समझौते से बाहर निकल गए. भले ही ईरान ईमानदारी से समझौते को लागू कर रहा था, ट्रंप ने उस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए. उन्होंने दुनिया के अधिकतर नेताओं और जर्मनी, फ्रांस, कनाडा और दक्षिण कोरिया सहित अमेरिका के सबसे करीबी देशों को भी नहीं बक्शा. लेकिन एक मामले में ट्रंप सही निकले – चीन से खतरे के बारे में! दिसम्बर 2016 में मनोनीत राष्ट्रपति बनने के बाद ही उन्होंने ताइवान के राष्ट्रपति के बधाई संदेश को स्वीकार कर अमेरिका की 35 साल से चली आ रही 'एक चीन नीति' को धता बताते हुए चीन से शत्रुता का एलान कर दिया.
ट्रंप ने ट्वीट कर कहा, 'ताइवान के राष्ट्रपति ने आज मुझे राष्ट्रपति पद के लिए जीत की बधाई दी. धन्यवाद! मजे की बात है कि जब अमेरिका, ताइवान को अरबों डॉलर के सैन्य उपकरण बेचता है तो, क्या मुझे उनसे एक बधाई कॉल भी स्वीकार नहीं करना चाहिए.' इससे चीन विचलित तो हुआ, लेकिन उसने कोई बड़ी हलचल मचानी नहीं चाही. इसलिए चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इसे 'ताइवान की एक छोटी-सी शैतानी हरकत बताया' और कहा कि चीन, अमेरिका के साथ राजनीतिक नींव को हिलाना और बिगाड़ना नहीं चाहता. लेकिन ट्रंप ने अपना मन बना लिया था. उन्हें यकीन था कि चीन, जो एक मजबूत अर्थतंत्र पर खड़ा है, कई वर्षों से अमेरिका की खुली व्यवस्था का फायदा उठा रहा था. उन्होंने खुल कर चीन के साथ अमेरिका के 375 बिलियन डॉलर के घाटे के व्यापार की निंदा की. उन्होंने आरोप लगाया कि चीन अमेरिका के हितों के खिलाफ काम कर रहा है, औद्योगिक जासूसी कर रहा है, धूर्तता से उसकी हाई टेक कंपनियां हड़प रहा है और अपनी सैन्य ताकत दिखा रहा है. उन्होंने चीनी सामान पर जकात लगा दी, अमेरिकी उद्योगों को चीन से बाहर निकल जाने को कहा और चीन की सेना से सीधा संबंध रखने वाले सरकारी उपक्रमों जैसे हुअवेइ और जेड.टी.ई. पर प्रतिबंध लगा दिए.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षा ने आग में घी डालने का काम किया. उन्होंने आंतरिक नियंत्रणों को कड़ा किया, भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने के बहाने राजनीतिक विरोधियों को दबाने और असहमतिपूर्ण आवाज उठाने वालों की नकेल कसनी शुरू कर दी. शांतिपूर्ण प्रयासों का जामा उतार दिया. ताइवान, तिब्बत, हांगकांग और झिंजियांग को डराने और धमकाने की रणनीति अपनाई. दक्षिण चीन सागर के सैन्यीकरण की गति बढ़ा दी. बीजिंग ने जापान, ऑस्ट्रेलिया, आसियान देशों और भारत जैसे पड़ोसियों के साथ अनावश्यक आक्रामकता का प्रदर्शन किया.
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क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में अमेरिका का स्थान लेने के लिए 13.5 ट्रिलियन डॉलर अर्थतंत्र का दावा करने वाले चीन ने अपनी सेना का आधुनिकीरण शुरू कर दिया, गहरे समुद्र में जल सेना का विकास करना शुरू किया और भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में सैनिक गढ़ बनाने शुरू कर दिए. साथ ही उसने बेल्ट और रोड कार्यक्रम के माध्यम से अपने निर्यात बढ़ाने के साथ-साथ विकासशील देशों को कर्ज के जाल में फंसाने का काम शुरू किया. अमेरिका के साथ वार्ता करते समय चीन ने खुद बलशाली होने का रुख अपनाया, जिस कारण वह अमेरिका की जाल में फंस गया. एक दादागिरी करने वाले को ट्रंप जैसा दादागिरी करने वाला मिल गया और ट्रंप ने बाजी पलट दी.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, 'यह स्पष्ट है कि चीन दुनिया के लिए एक खतरा बन चुका है क्योंकि वह अन्य की तुलना में अपनी सैन्यशक्ति ज्यादा तेजी से बढ़ा रहा है, वह भी अमेरिकी धन का इस्तेमाल कर.' उन्होंने उत्साहपूर्वक भारत-प्रशांत महासागर गठबंधन का विचार रखा, जिसमें चीन का कोई स्थान नहीं था. ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका चतुर्भुज के लिए वार्ता को सितम्बर 2019 में मंत्री स्तर तक ले जाया गया. अब अमेरिका इस चतुर्भुज को दक्षिण कोरिया, वियतनाम, न्यूजीलैंड और संभवतः फ्रांस को शामिल कर व्यापक बनाने की कोशिश कर रहा है.
मई, 2020 में ट्रंप ने जी7 में ऑस्ट्रेलिया, रूस, दक्षिण कोरिया और भारत को शामिल कर जी11 बनाने की मंशा जाहिर की, जिसमें चीन को स्पष्ट रूप से दूर रखने की बात कही गई. इससे यह भी झलकता है कि अब उनके सम्बन्ध जी7 देशों के नेताओं से तनावपूर्ण हो गए हैं. उनके वाशिंगटन में कोविड-19 संकट पर जी7 सम्मलेन की मेजबानी करने का प्रस्ताव जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने ठुकरा दिया था.