हैदराबाद : सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है. इसके बाद अवसाद और आत्महत्या के बारे में सोशल मीडिया और हर टेलीविजन चैनलों पर एक राष्ट्रीय बहस शुरू हुई है. इस साइलेंट किलर को बिना सही योजना के रोका नहीं जा सकता हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 90 मिलियन से अधिक भारतीय या कह ले 7.5 प्रतिशत आबादी मानसिक विकार से पीड़ित है.
द लैंसेट में दिसंबर 2019 में एक शोध प्रकाशित किया गया जिसका शीर्षक था भारत के राज्यों में मानसिक विकारों का बोझ: ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 1990-2017. यह शोध डिप्रेशन की समस्याओं और इसकी चुनौतियों पर बड़े पैमाने पर प्रकाश डालती है.
मानसिक तनाव, चिंता, अवसाद की समस्या भारत की प्रमुख घातक बीमारियों में से एक है. रिपोर्ट के अनुसार 2017 में सात में से एक भारतीय मानसिक रोग का शिकार पाया गया. 1990 के बाद से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं लगभग दोगुनी हो गई. इसके साथ ही 2016 में 15 से 39 वर्ष की आयु के युवाओं के बीच आत्महत्या, मौत के प्रमुख कारण में से एक रही है.
एक अध्ययन के अनुसार, 1990 से 2017 के बीच, भारत के सात में से एक व्यक्ति अवसाद, मानसिक विकारों से लेकर सिजोफ्रेनिया जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित पाया गया.
भारत मानसिक स्वास्थ्य के देखभाल पर बहुत कम खर्च करता है. 2019 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का आवंटित बजट 50 करोड़ से 40 करोड़ रुपये कर दिया गया था.