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उत्तराखंड : ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट का मिटा नामोनिशान, ताजा हालात देख कर कांप जाएगी रूह - ईटीवी भारत की टीम हालात का जायजा लेने ग्राउंड जीरो पर पहुंची

ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट को तबाह करने के बाद सैलाब अपने जो निशान छोड़ गया है, जिसके देखकर किसी की भी रूह कांप जाए, जहां कभी चहल-पहल रहा करती वहां अब चारों तरफ मलबे का अंबार लगा हुआ है. ईटीवी भारत की टीम हालात का जायजा लेने ग्राउंड जीरो पर पहुंची.

ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट
ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट

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Published : Feb 10, 2021, 10:10 AM IST

चमोली : ऋषिगंगा नदी में जो ग्लेशियर टूट कर गिरा था उसने सबसे पहले रैणी गांव के ठीक नीचे बने ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट को तबाह किया था. ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट में न सिर्फ 45 कर्मचारी काम करते थे, बल्कि उनके रहने की व्यवस्था भी यहीं की गई थी, लेकिन आज वहां ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट का नाम तक नहीं है. ईटीवी भारत की टीम हालात का जायजा लेने ग्राउंड जीरो पर पहुंची.

आपदा के बाद ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट और उसके आसपास के इलाके को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि यहां पर कभी 16 मेगावाट बिजली की उत्पादन हुआ करता था, जहां 45 कर्मचारी काम किया करते थे.

ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट का मिटा नमोनिशान

क्योंकि आज वो जगह मलबे में तब्दील हो गई है. ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के आसपास जिधर भी नजर घूमती है, मलबा ही मलबा नजर आता है. वो सैलाब कितना भयानक रहा होगा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नीति घाटी को जोड़ने वाला पुल भी उसमें तहस नहस हो गया. पुल में लगी लोहे की रॉड लकड़ी के तने की तरह मुड़ गई है.

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बीआरओ समेत अन्य रेस्क्यू टीमों को रैणी गांव तक पहुंचने में दिक्कतें आ रही हैं. बीआरओ को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह एक वैली ब्रिज तैयार करें, लेकिन वहां पर 20 से 30 मीटर मलबा पड़ा है. जिसे साफ करने में बीआरओ को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. बीआरओ तीन दिन से मलबा हटाने में लगा हुआ है. अभी तक वहां से तीन शव भी बरामद किए जा चुके हैं.

पुल बनाने के लिए बनाई नई रणनीति

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बीआरओ के चीफ इंजीनियर एएस राठौर ने बताया कि अभी रास्ता खोलने में उन्हें तीन-चार दिन लग सकते हैं. लिहाजा जहां तक मशीन जा रही है वहां तक ही काम हो पा रहा है. पहली प्राथमिकता यह है कि नदी के ऊपर एक पुल बनाया जाए, लेकिन समस्या ये है कि बीआरओ वैली ब्रिज बनाता है. जिसमें लचक अधिक होती है. लंबी दूरी तय करने के लिए वह पुल सक्षम नहीं होता है.

ऐसे में बीआरओ ने इसका दूसरा रास्ता निकाला है. बीआरओ पुराने पुल को न बनाकर अब ग्लेशियर की तरफ आगे बढ़ रहा है. उस जगह पर ब्रिज बनाया जाए, जहां नदी की चौड़ाई कम है.

चीफ इंजीनियर राठौर ने मुताबिक इस मलबे में कितने लोग दफन हैं, इसकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा सकती है. अगर इस मलबे में कोई जिंदा बच जाए तो बहुत बड़ी बात होगी.

केदारनाथ आपदा के दौरान देखने में आया था कि कुछ लोगों पहाड़ों पर चढ़कर अपनी जान बचा ली थी, लेकिन इस बार की आपदा में ऐसा होने की उम्मीद नहीं है. क्योंकि जो सैलाब आया था, उसने लोगों को भागने का तक का समय नहीं दिया था.

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