नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र 1267 समिति के तहत मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया जाना भारत के लिए एक बड़ी राजनीतिक और कूटनीतिक जीत है. माना जा रहा है कि द्विपक्षीय संबंधों के चलते ऐसा हो सका है. चीनी पक्ष का नेतृत्व चीन के सामान्य प्रशासन (GACC) के उप मंत्री ली गुओ के द्वारा किया जाना है. भारत व्यापार मुद्दों पर चर्चा करेगा क्योंकि भारत चीन में निर्मित और कृषि उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार है. इसी सिलसिले में ईटीवी भारत ने विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के वरिष्ठ अनुसंधान साथी और भारत-चीन संबंधों के विशेषज्ञ सुजीत दत्ता से बात की.
दत्ता कहते है, 'इस दौरान चीन की ओर बहुत सारे सकारात्मक बयान सामने आए, लेकिन अबतक कोई जमीनी स्तर पूरे नहीं हुए. सीमा को लेकर बातचीत, चीन-पाक संबंध और सीपीईसी (चीन पाकिस्तान आर्थिक क्षेत्र) जैसे मुद्दे बने हुए हैं. इन पर चीन की ओर से अबतक कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया है.'
भारत ने दूसरे बीआरफ (बेल्ट एंड रोड फोर्म)का बहिष्कार किया था. माना जा रहा है कि इसी के चलते मसूद अजहर वाले मामले पर चीन ने नरमी बरती. सुजीत दत्ता ने इस मामले पर अपनी राय रखते हुए कहा कि चीन कभी अपना रवैया मसूद अजहर को लेकर न बदलता अगर चारों ओर से उसके ऊपर इतना दबाव न बनाया गया होता. पाकिस्तान के लिए भी यही फायदेमंद था क्योंकि उसके एफएटीएफ (वित्तीय कार्रवाई कार्य बल) से ब्लैकलिस्ट होने का खतरा लगातार मंडरा रहा था. यदि ऐसा हो जाता तो पाकिस्तान के लिए एक बड़ी समस्या पैदा हो जाती, जिस मदद की वो आईएमएफ से उम्मीद कर रहा है वो उसे न मिलती.