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कैसे मिलेगी प्रदूषण से निजात, विश्व को संयुक्त कार्रवाई की आवश्यकता

विश्व स्तर पर बढ़ते हुए उद्योगों ने पर्यावरण को हर तरह से नुकसान पहुंचाया गया है. जिस वजह से ग्लोबल वार्मिंग और आपदाओं का मनुष्यों को सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में वाहन, जिससे सबसे अधिक प्रदूषण फैलता है उससे कैसे निजात मिल सकती है. पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट...

प्रदूषण से निजात
प्रदूषण से निजात

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Published : Nov 24, 2020, 4:56 AM IST

बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने में के लिए विदेशों में कई उपाय किए जा रहे है. विश्व के विकास की गति को बढ़ाने के चक्कर में लोगों ने खुद से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है. ऐसे में इसका असर लोगों के जीवनचर्या के साथ पृथ्वी पर भी लगातार बढ़ता जा रहा है. खराब गुणवत्ता होने के कारण उनसे वायु प्रदूषण फैलता है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के प्रयासों में बाधाएं पैदा होती हैं. आखिर कैसे हम इसको काबू कर सकते है.

प्रदूषण फैलाते परिवहन ... आखिर कब तक?
यह सच है कि दुनिया भर में विकास को बढ़ावा देने वाली औद्योगिक क्रांति ने प्रदूषण के बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है, जिसकी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती है. इस वजह से वैश्विक तापमान बढ़ा है और प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं में भी लगाताक बढ़ोतरी हुई है. यद्यपि पेरिस समझौता मानव जाति को वैश्विक तापमान के प्रकोप से बचाने के लिए प्रतिबद्ध है जिसमें कहा गया है कि 'हमारे पास केवल एक पृथ्वी है' और इसे बचाएं, लेकिन अब प्रभावी संयुक्त कार्य योजना एक मृगतृष्णा की तरह दिखती है.

इस पृष्ठभूमि में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की पहल सराहनीय है. यूके ग्रीन इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन के नाम से एक व्यापक अभियान का प्रस्ताव करते हुए, प्रधानमंत्री जॉनसन ने 2030 तक लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये की लागत वाले ग्रीन प्लान के तहत पेट्रोल और डीजल वाहनों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई है. प्रदूषण मुक्त वाहनों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए 58.2 करोड़ पाउंड की राशि और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बड़े पैमाने पर बैटरी चार्जिंग पॉइंट स्थापित करने के लिए 130 करोड़ पाउंड का फंड अलग से आवंटित किया गया है.

संयुक्त कार्य योजना कहां है?
ब्रिटेन की सरकार ने निर्माताओं और विक्रेताओं की मंजूरी के साथ पेट्रोल और डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. अगले चार वर्षों में इलेक्ट्रिक बैटरी से चलने वाले वाहनों के विकास के लिए संसाधनों का आवंटन भी किया है. ग्रेट ब्रिटेन प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए कमर कस रहा है जो पवन, परमाणु, हाइड्रोजन से बिजली पैदा करेगी और इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ परिवहन क्षेत्र को समर्थन देगा. इसके साथ प्रदूषण रहित विमान और जहाजों को विकसित करने के लिए भी काम किया जायेगा.

यह 2030 तक प्रौद्योगिकी विकसित करने की भी योजना है जो, वायुमंडल से एक करोड़ टन हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड को अलग कर सकती है और सुरक्षित रूप से भण्डारण कर सकती है. पांच साल पहले तक यूरोपीय बाजार में डीजल कारों का चलन था. यह उल्लेखनीय है कि पिछले महीने बेची गई हर चार कारों में से एक हाइब्रिड या इलेक्ट्रिक किस्म की कार थी. इस परिवर्तन को प्रभावी बनाने के लिए आज संयुक्त कार्रवाई की आवश्यकता है.

भारतीय परिदृश्य
यद्यपि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो साल पहले कहा था कि स्वच्छ ऊर्जा जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक शक्तिशाली उपकरण है, मोटर वाहन क्षेत्र में बिजली के वाहनों को लाने के दूर-दूर तक कोई आसार संकेत नहीं है. केपीएमजी-सीआईआई के अध्ययन के अनुसार अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक भारत में बिजली से चलने वाले दोपहिया वाहन 25-35 प्रतिशत और तिपहिया 65-75 प्रतिशत तक बढ़ जाएंगे, हाल ही में बताया गया है कि इलेक्ट्रिक बसें 10-12 प्रतिशत तक हो जाएंगी. यह सुझाव दिया गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों को एकजुट होकर काम करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बिजली के वाहनों की ओर जाने के लिए के लिए सकारात्मक माहौल बनाया जा सके.

अगले दस वर्षों में यदि केवल कम से कम 30 प्रतिशत निजी कारें, 70 प्रतिशत वाणिज्यिक वाहन, 40 प्रतिशत बसें और 80 प्रतिशत दोपहिया वाहन विद्युतीकृत होने का अनुमान हैं, तभी घरेलू परिवहन क्षेत्र समय की कसौटी पर खरा साबित हो सकेगा. अध्ययनों से पता चलता है कि भारत जैसे विकासशील देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करने से एक वर्ष में 25 हजार करोड़ डॉलर तक की बचत हो सकती है.

विकल्प की तलाश
लिथियम और कोबाल्ट, इलेक्ट्रिक बैटरी के सबसे महत्वपूर्ण तत्व होते है जो, केवल कुछ ही देशों में उपलब्ध हैं. चीन, जो पहले ही कांगो, बोलीविया, चिली और ऑस्ट्रेलिया में खदानें खरीद चुका है, उस बाजार का 60 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त है. इस संदर्भ में भारत को लिथियम आयन बैटरी के बेहतर विकल्प में अनुसंधान के लिए उत्प्रेरित होना चाहिए. विद्युत वाहनों के क्षेत्र में स्टार्ट-अप का समर्थन करने के अलावा, भारत, जिसने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक 'क्वाड' टीम बनाई है, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना चाहिए और बढ़त लेनी चाहिए. चूंकि तेलंगाना, एपी और दिल्ली सहित दस राज्य इलेक्ट्रिक वाहन नीतियों के साथ आए हैं, अगर केंद्र ने राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक कार्य योजना बनाई है, तो प्रदूषण के खतरे को भारत द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है.

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