हैदराबाद : कृषि कानूनों पर गतिरोध का अंत सिर्फ सरकार की छवि को प्रभावित करेगा. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों द्वारा किए गए जा रहे आंदोलन को अस्तित्व की लड़ाई का बेहतरीन उदाहरण माना जा सकता है. आंदोलनकारी किसानों का मानना है कि आत्मनिर्भर भारत के नाम पर केंद्र द्वारा पारित किए गए कृषि कानूनों से वे अपनी आजीविका नहीं चला पाएंगे.
किसानों और सरकार के बीच 11वें दौर की वार्ता हुई. हालांकि इन वार्ताओं में कोई भी रास्ता नहीं निकला. किसानों ने उपद्रवी, आतंकवादी और खालिस्तानी कहे जाने के बाद भी कोरोना महामारी के बीच, कड़कड़ाती सर्दी में आंदोलन को जारी रखा है.
इसके बाद किसानों ने गणतंत्र दिवस पर किसान ट्रैक्टर परेड निकाली, जिसमें हिंसा हुई, प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स तोड़ दिए और पुलिसकर्मियों के साथ झड़प भी हुई. इसके चलते दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई, ट्रेनों का संचालन भी रोक दिया गया. इसी के साथ कई प्रदर्शनकारियों पर मामले भी दर्ज हुए और विरोध कर रहे किसानों को दी जा रही स्वच्छता और पानी की सुविधा रोक दी गई.
क्या आधिकारिक तौर पर इस बात की जानकारी नहीं है कि शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है? कृषि कानूनों को पारित करते समय यह दावा किया गया था कि यह किसानों के हित में है, बावजूद इसके किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने प्रस्ताव दिया है कि वो नए कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक लागू होने से रोक सकती है.
कानून में संशोधन का आश्वासन
सरकार ने भरोसा दिलाया कि वह कानून में संशोधन करने के लिए तैयार है, लेकिन इसे वापस लेना संभव नहीं है. किसान एमएसपी के लिए कानून बनाने की मांग कर रहे हैं, जिस पर सरकार उन्हें केवल लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार है.
इतिहास पर नजर डालें तो इससे पहले भी वर्तमान किसान आंदोलन की तरह दो आंदोलन हो चुके हैं. पहला, पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन, जो 1907 में शहीद स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह के नेतृत्व में ब्रिटिश हुकूमत के कृषि कानूनों के खिलाफ किया गया था.
बोट क्लब आंदोलन
इसके लगभग आठ दशक बाद, बोट क्लब आंदोलन हुआ. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में बोट क्लब पर रैली का अयोजन किया था. तत्कालीन राजीव गांधी शासन ने किसानों के सामने अपने घुटने टेक दिए थे.