भारत सरकार द्वारा 2 जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बांड (ईबी) को अधिसूचित करने के तुरंत बाद, 23 जनवरी 2018 को आयकर विभाग ने किसी भी राजनीतिक दल को नकद में दो हजार रुपये से अधिक का दान लेने से रोक लगा दी. इलेक्टोरल बांड्स (ईबी) धारक के पैसे होते हैं, जो अनंतिम प्रमाणपत्र के रूप में आते हैं. कोई भी व्यक्ति या कम्पनी गुमनाम रूप से इसे एसबीआई की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकती है और इसे एक राजनीतिक पार्टी को दान कर सकती है.
ईबी दानकर्ताओं को पूर्ण गुमनामी प्रदान करता है. दानकर्ता को धन के स्रोत का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है. इसी तरह, राजनीतिक दल को यह खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है कि उसे किससे धन मिला है. राजनैतिक दलों को ईबी के माध्यम से मिलने वाले धन का केवल कुल मूल्य ही चुनाव आयोग को बताना होता है. ईबी कॉरपोरेट द्वारा चुनाव फंडिंग की सीमा को हटा देता है. ईबी के माध्यम से, बड़े व्यापार घराने गुमनाम रूप से जितना पैसा चाहें, उतना अपनी पसंद के दलों को दे सकते हैं.
सबसे हाल के संसदीय या विधानसभा चुनावों में कम से कम एक फीसदी वोट प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल - ये बांड प्राप्त करने के पात्र होते हैं. ईबी के जारी होने की तारीख के 15 दिनों के भीतर केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से ईबी को भुनाया जा सकता है.
हालांकि, इससे पहले के वर्षों में कम्पनियों के मुनाफे का केवल 7.5% राजनीतिक दान पर खर्च किया जा सकता था. पहले की प्रणाली ने विभिन्न राजनीतिक दलों को बेहिसाब धनराशि दान करने के कई रास्ते खोल दिए थे.
जाहिर है, ऐसे में सवाल यही है कि क्या ईबी राजनीति निधिकरण के परिशोधन का साधन है या विपक्षी दलों के दानदाताओं को हतोत्साहित करने का एक औजार?
2 जनवरी 2018 को ईबी के अधिसूचित किए जाने के तुरंत बाद, जनवरी और फरवरी 2018 में 221 करोड़ के बांड भुनाए गए. भाजपा को कुल राशि का 210 करोड़ मिला. कांग्रेस को केवल 5 करोड़ और बाकी दलों को 6 करोड़ मिले.
मार्च 2018 और अक्टूबर 2019 की अवधि में 6,128 करोड़ के मूल्य वाले कुल 12,313 ईबी बेचे गए.
मार्च 2018 से अक्टूबर 2019 तक इन बांड से किस पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है. लेकिन, यह व्यापक रूप से माना जाता है कि भाजपा को इस अवधि के दौरान पूरे लेनदेन में सबसे बड़ा हिस्सा मिला, जिसमें अप्रैल-मई 2019 में 17वें आम चुनाव का संचालन भी शामिल था.
टाटा समूह के स्वामित्व वाले प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 2018-19 के वित्तीय वर्ष में बीजेपी को 356.53 करोड़ और कांग्रेस को 55.62 करोड़ का योगदान दिया था.
भारती एंटरप्राइजेज के स्वामित्व वाले प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 2018-19 के वित्तीय वर्ष में बीजेपी को 67.25 करोड़ और कांग्रेस को 39 करोड़ का दान दिया था. आंध्र प्रदेश में 2 क्षेत्रीय दल प्रूडेंट से दान लेकर तीसरे और चौथे सबसे बड़े प्राप्तकर्ता बने. वाईएसआर सीपी को 26 करोड़ और टीडीपी को प्रूडेंट से 25 करोड़ मिले.
चुनावी बांड पर वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच मतभेद
भारत सरकार ने 2017-18 के बजट में ईबी की घोषणा करने के बाद, भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने दिनांक 14 सितम्बर 2017 को लिखे एक पत्र में तीन मुद्दे उठाए.
अपनी पहचान छिपाने के लिए असली कम्पनियां ईबी खरीदने और राजनीतिक दलों को दान देने के लिए गैर-मौजूद, मुखौटा (फ्रंट) कम्पनियों का दुरुपयोग कर सकती हैं. यह पैसे के लेनदेन में मुखौटा-कम्पनियों को कानूनी स्थान देकर मनी लॉन्ड्रिंग की सुविधा प्रदान कर सकती है. दानकर्ताओं द्वारा गुमनामी को बेहतर ढंग से हासिल किया जा सकता है,
अगर ईबी को पैसे के अनंतिम प्रमाण पत्र की बजाय डीमैट (डीमैटेरियलाइज्ड या इलेक्ट्रॉनिक) रूप में जारी किया जाता है. डीमैट फॉर्म बांडधारकों को एक यूनिक संख्या देगा, जिसे वह राजनीतिक पार्टी के साथ साझा कर सकता है. जब ईबी डीमैट फॉर्म में रहेंगे, तो आरबीआई के पास पैसे देने वाले का रिकॉर्ड होगा. राजनीतिक दल को मिलने वाले धन का रिकॉर्ड चुनाव आयोग को पता होता है. यह डीमैट फॉर्म पूरी तरह से पारदर्शी चुनावी निधिकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा.
भारतीय रिजर्व बैंक के अधिनियम की धारा 31 केवल भारतीय रिजर्व बैंक को - शीर्ष बैंक के रूप में - बांड जारी करने के लिए अधिकार देती है. यदि आरबीआई के अधिनियम की धारा 31 में संशोधन किया जाता है और एसबीआई को ईबी जारी करने की अनुमति दी गई, तो केंद्रीय बैंक की एकाधिकार शक्ति कमजोर हो जाएगी.
जवाब में 5 अक्टूबर 2017 को वित्त मंत्रालय (तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग के माध्यम से) ने जवाब दिया- अगर ईबी को डीमैट प्रारूप में जारी किया जाता है, तो इससे दाता की पहचान छिपाने के वास्तविक उद्देश्य विफल हो जाएगा. इसलिए, ऐसे बांड केवल अनंतिम प्रमाणपत्र के रूप में जारी किए जाएंगे.