हैदराबाद : अगर आज हम प्रकृति को बचाएंगे तो आने वाले समय में यह हमारे जीवन को बचाएगा, लेकिन पर्यावरण को नष्ट करके हम आपदाओं को निमंत्रण दे रहे हैं. पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिवर्तन ने इस बात को साबित किया है.
पिछले कुछ समय में आईं प्राकृतिक आपदाएं औद्योगीकरण और अपने आसपास के पर्यावरण को बचाने के लिए मनुष्य की उदासीनता के परिणाम हैं. एक नए अध्ययन में भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की बात सामने आई है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने भारत में जलवायु शरणार्थियों (ऐसे लोग जिन्हें प्राकृतिक आपदा के चलते अपना गृह क्षेत्र छोड़ना पड़ा) के बारे में चौंकाने वाले आंकड़े उजागर किए हैं. भारत में बाढ़, चक्रवात या सूखे के कारण दुनिया भर में होने वाले हर पांच पर्यावरणीय प्रवासन में से एक पहुंचता है.
भारत में अब तक जलवायु प्रवासन के 50 लाख मामले सामने आए हैं. देश में 2019 में प्राकृतिक आपदाओं से 1,357 लोग मारे गए हैं. हालांकि चक्रवात निसर्ग से नुकसान नहीं हुआ लेकिन इसके चलते पश्चिमी तट पर काम बंद हो गया, लेकिन चक्रवाती तूफान अम्फन ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा में कहर बरपाया.
1990 और 2016 के बीच भारत ने तटीय कटाव के चलते 235 वर्ग किलोमीटर जमीन गंवा दी. सीएसई द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग और भूमि नुकसान भारत में जलवायु त्रासदियों के प्रमुख कारण हैं. अध्ययन में देश में वनों की कटाई की खतरनाक दरों का भी उल्लेख किया गया है. देश भर के 280 जिलों में वन कटाई और पांच प्रमुख नदी घाटियों में गंभीर जल संकट पर्यावरणीय विनाश की चेतावनी की घंटी है. यह तत्काल कार्रवाई की ओर इशारा करते हैं.
विश्व बैंक ने अनुमान लगाया कि 2050 तक अकेले सब सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका में 14 करोड़ जलवायु शरणार्थी होंगे. कार्बन उत्सर्जन बढ़ने से जल प्रदूषण, छुआ-छूत की बीमारियां, भोजन की कमी और प्राकृतिक आपदाएं पहले से ही हैं.
बाढ़ या चक्रवात के कारण भारत के तटीय और पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोग सबसे अधिक खामियाजा भुगत रहे हैं. हर साल 17 करोड़ भारतीय प्राकृतिक आपदाओं के प्रकोप का सामना करते हैं. यहां तक कि आधिकारिक अध्ययनों से पता चला है कि अधिकांश भारतीय राज्य प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित नहीं हैं.
यदि लंबे समय तक प्रकृति का विनाश जारी रहा तो मानवता विलुप्त हो सकती है. पिछले कुछ वर्षों में अरब सागर के ऊपर चक्रवात बढ़ रहे हैं. गर्मी के तूफानों की बढ़ती घटनाओं, अमेजन वर्षावन की आग, फसलों को मिटाने वाले टिड्डी दलों का हमला, यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणाम हैं. जीन्स (जीन आनुवंशिकता की बुनियादी भौतिक और कार्यात्मक इकाई है. जीन डीएनए से बने होते हैं.) बनाने में लगभग 7,500 लीटर पानी लगता है, जो एक व्यक्ति द्वारा एक साल में पीने वाले पानी की मात्रा के बराबर होता है.
आज सिर्फ पानी और जंगल ही नहीं हर प्राकृतिक संसाधन का समझदारी से इस्तेमाल करने की आवश्यक्ता है. यदि सरकारों और नागरिकों में पर्यावरण को बचाने के लिए जरूरी दूरदर्शिता की कमी है तो भविष्य की पीढ़ियों के लिए दुनिया नहीं बचेगी.