हैदराबाद : अप्रभावी कचरा प्रबंधन का परिणाम हमेशा पर्यावरण से जुड़ी आपदाओं के रूप में मिलता है. जमीन में खतरनाक कचरे को डालना और अनुचित तरीके से जलाना जनता के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है, तो कचरा निपटान का सही तरीका क्या है? हैदराबाद के पास इसका जवाब है. यहां शहर के जवाहरनगर स्थित डंप यार्ड है, जिसे ठोस कचरे से बिजली बनाने के लिए डिजाइन किया गया है, जिससे हैदराबाद दक्षिण भारत में यह अद्भुत काम करने वाला पहला शहर बन गया है.
आधिकारिक योजना इस संयंत्र से 17.40 करोड़ यूनिट बिजली पैदा करने की कोशिश कर रही है. इस तरह की परियोजनाओं पर शहर भर में काम चल रहा है. सरकार से हुए समझौते के अनुसार, ठोस कचरा जलाने से बनी प्रति यूनिट बिजली के लिए सरकार को 7.84 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा. हालांकि यह एक महंगा मामला है, लेकिन यह व्यवस्था समय बीतने के साथ किफायती हो सकती है.
तिमारपुर परियोजना
तिमारपुर (दिल्ली) परियोजना 1987 में प्रति दिन 300 टन ठोस अपशिष्ट से बिजली पैदा करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन इस परियोजना पर अमल नहीं किया जा सका. उसके बाद के कुछ दशकों में विभिन्न राज्यों में कम से कम 180 बायोगैस और जैव-सीएनजी परियोजनाएं शुरू की गईं. इनमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश बायोगैस परियोजना सबसे आगे हैं. हालांकि, हैदराबाद ज्वलनशील कचरे का उपयोग करके बिजली और उर्वरक उत्पादन की दिशा में अलग है. बाकी सरकारों को अन्य प्रमुख शहरों में सस्ते ऊर्जा उत्पादन के इस दृष्टिकोण को अपनाने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए.