लोकसभा चुनाव में शानदार सफलता हासिल करने वाली भाजपा दिल्ली में धड़ाम हो गई. बड़े-बड़े वादे और अतंरराष्ट्रीय स्तर पर हासिल उपलब्धियों का बखान करने वाली पार्टी स्थानीय स्तर पर अपना जलवा नहीं दिखा सकी. भारत-पाक पर बड़ी-बड़ी बातें, नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर ढोल पीटना या और भी ऐसे मुद्दे उनके किसी काम के नहीं रहे. ये सभी मुद्दे जनता का ध्यान नहीं खींच सके. इतना ही नहीं, बड़े-बड़े नेताओं ने कई बार उत्तेजित करने वाले बयान दिए. इससे जनता की नजरों में उनकी छवि खराब ही हुई. मुख्यमंत्री पद के लिए किसी नाम को आगे नहीं करना भी कई कारणों में से एक रहा.
भाजपा ने बाहर से कई ऐसे कार्यकर्ताों को लगा दिए, जिन्हें स्थानीय स्तर पर दिल्ली की जानकारी नहीं थी. न ही दिल्ली के मुद्दों से वे वाकिफ थे, ताकि वे जनता को अपनी बात बता पाते.
दिल्ली में दूसरे राज्यों से आने वाले वैसे लोग, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है, जो हमेशा दो पैसे बचाने की जुगत में लगे रहते हैं, जिनके पास राशन कार्ड की भी सुविधा नहीं है. ऐसे लोगों के लिए आप सरकार द्वारा चलाई गई स्कीमें बहुत ही फायदेमंद रहीं. हजार-दो हजार की बचत इनके लिए मायने रखती है. संभवतः यह बहुत बड़ी वजह थी कि यह वर्ग आप के साथ खड़ा हो गया.
भाजपा की ओर से मोदी और शाह द्वारा शुरू की गई बड़ी-बड़ी स्कीमों की चर्चा की गई. आयुष्मान और जनधन योजना को लेकर भी बातें दोहराई गईं. राष्ट्रीय मुद्दे उठाए गए. लेकिन स्थानीय मुद्दों से परहेज किया गया. बल्कि पार्टी के नेताओं ने ऐसी हवा बना दी, कि ये चुनाव एनआरसी और सीएए पर जनमतसंग्रह जैसा होगा. भाजपा ने हर राज्य से नेताओं को लगा दिया. अलग-अलग भाषाओं में बोलने वाले नेता अपने-अपने राज्यों के लोगों से मिलकर उन्हें अपनी बात बता रहे थे. पर इससे भी कामयाबी नहीं मिली.