हैदराबाद : हिंदू धर्म के अनुसार मां दुर्गा और भगवान श्रीराम से जोड़कर देखा जाता है. इस त्योहार को मनाने का कारण यह है कि मां दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक युद्ध करके दशहरे के दिन ही महिषासुर का वध किया था. तो दूसरी तरफ मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने नौ दिनों तक रावण के साथ युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजयादशमी के रूप में मनाते हैं. इस त्योहार को भारत के हर राज्य में अनोखे तरीके से मनाया जाता है. चलिए हम आप को बतातें है किस राज्य में कैसे मनाया गया इस साल दशहरा.
बंगाल में सिंदूर की होली
यहां त्योहारों की चमक से लेकर रंगों तक स्वादिष्ट व्यंजनों की खुशबू हर किसी का मन मोह लेती है. दशहरे के दिन बंगाली समाज में सिंदूर खेलने की परंपरा है, इसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है. नवरात्र के नौ दिन पूजा-पाठ के बाद दशमी के दिन शादीशुदा महिलाओं ने एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेली. वहीं दूसरी ओर कोरोना महामारी के बीच सुरक्षा के मद्देनजर साल्ट लेक सेंट्रल पार्क में रावण के 20 फीट ऊंचे पुतले का भी दहन किया गया.
कर्नाटक के मैसूर पैलेस में राजा ने की शस्त्र पूजा
कोरोना संक्रमण के इस दौर में कर्नाटक के विश्व प्रसिद्ध मैसूर दशहरे का आयोजन हुआ. हालांकि, कोरोना महामारी के इस दौर में दशहरे का आयोजन धूमधाम से नहीं हो पाया. मैसूर दशहरे के नौवें दिन मैसूर पैलेस में आयुध पूजा (शस्त्र) का आयोजन किया गया. मैसूर के राजा यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार ने अनुष्ठान को संपन्न किया. जिसके बाद धूमधाम से जंबो सवारी का आयोजन किया गया, इस दौरान महल के सभी उपकरणों, वाहनों, रथ की पूजा की गई. मैसूर दशहरा हौदा और हाथियों के लिए बहुत प्रसिद्ध है. इसे हाथियों का त्योहार भी कहा जाता है. यहां का मुख्य आकर्षण हाथी होते हैं, जिन पर हौदा को ले जाया जाता है. नवरात्र के दसवें दिन एक विशेष पूजा होती है, जिसमें जंबो सवारी (हाथी का जुलूस) निकाला गया. प्रत्येक वर्ष यह कार्यक्रम 10 दिन चलता है.
हिमाचल का कुल्लू दशहरा
360 साल के इतिहास में पहली बार उत्सव में मात्र 11 देवता आए, देवभूमि हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे का इस साल कोरोना महामारी के चलते प्रशासन के कड़े दिशानिर्देशों के साथ आयोजन किया जा रहा है. विश्व विख्यात कुल्लू दशहरे में 360 सालों के इतिहास में पहली बार मात्र 11 देवी-देवताओं ने भाग लिया. हालांकि, हर साल 300 से ज्यादा देवी-देवता शामिल होते थे. कोरोना के चलते न तो कुल्लू में हजारों लोगों की भीड़ जुटी और न ही ढोल नगाड़ों की थाप पर श्रद्धालुओं का दल झूमा. रथयात्रा में भी सिर्फ 200 लोग ही शामिल हुए.
छत्तीसगढ़ की काछनगादी रस्म
अपनी अनोखी और आकर्षक परंपराओं के लिए विश्व में प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का आरंभ 16 अक्टूबर की रात काछनगादी रस्म के साथ शुरू हुआ. 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा दुनिया का सबसे बड़ा लोकपर्व भी कहा जाता है. 12 से ज्यादा रस्में इस उत्सव को अनूठा बना देती हैं और ये सारी रस्में ही बस्तर में मनाए जाने वाले दशहरे को अलग रंग देती हैं. दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति लेने की यह परंपरा भी अपने आप में अनूठी है. काछनगादी नामक इस रस्म में एक नाबालिग कन्या ने कांटों के झूले पर लेटकर दशहरा पर्व को आरंभ करने की अनुमति दी थी. बस्तर दशहरा के इतिहास में यह पहला मौका है, जब पर्व के दौरान हजारों की संख्या में रहने वाले श्रद्धालु रविवार को होने वाली मावली परगाव की रस्म में मौजूद नहीं हुए, लेकिन इस बीच दशहरा पर्व के सभी रस्मों को विधि विधान से निभाया गया. इसके साथ ही जगह-जगह रावण दहन किया गया.
मध्य प्रदेश में छोटा हुआ रावण के पुतले का कद
मध्य प्रदेश में कोरोना काल के कारण इस बार विजयादशमी पर्व पर लोगों का उत्साह कम ही रहा. संक्रमण काल में दिशानिर्देशों और कोरोना के डर से लोगों ने औपचारिकता ही निभाई. शहरी और ग्रामीण अंचलों में भी रावण के पुतलों का दहन कार्यक्रम औपचारिक बनकर रह गया. जैसे-जैसे शाम ढलने लगी लोगों का हुजूम दशहरा मैदान की तरफ बढ़ने लगा. शाम को सैकड़ों लोग मैदान में पहुंचे और जैसे ही जलता हुआ तीर रावण के पेट में लगा वह धू-धू कर जलने लगा. लोगों ने आस्था के साथ जय श्रीराम का जयकारा लगाया और फिर शुरू हो गया एक-दूसरे को बधाई देने का सिलसिला. इस बार दशहरा मैदान पर सिर्फ 21 फीट लंबे रावण का दहन हुआ. हर बार की तरह इस बार लंका भी नहीं बनाई गई थी.