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कोरोना के चलते हरिद्वार महाकुंभ का स्वरूप अभी तय नहीं

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Published : Sep 7, 2020, 10:26 PM IST

दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले 'कुंभ' में लाखों-करोड़ों लोग पवित्र गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाने दूर-दूर से पहुंचते हैं. इस बार महाकुंभ-2021 का आयोजन हरिद्वार में होना है. लेकिन कोरोना की वजह से महाकुंभ का स्वरूप तय नहीं हो पाया है.

हरिद्वार महाकुंभ का स्वरूप अभी तय नहीं
हरिद्वार महाकुंभ का स्वरूप अभी तय नहीं

हरिद्वार: हरिद्वार महाकुंभ धीरे-धीरे नजदीक आ रहा है. दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले में करोड़ों श्रद्धालु पवित्र गंगा में आस्था की डुबकी लगाने हरिद्वार पहुंचते हैं. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से परिस्थितियां बदली-बदली नजर आ रही हैं. हालांकि, महाकुंभ 2021 को लेकर उत्तराखंड सरकार की तैयारियां तेज गति से चल रही हैं.

हरिद्वार में कुंभ का आयोजन तभी होता है, जब मेष राशि में सूर्य और कुंभ राशि में बृहस्पति का आगमन होता है लेकिन, इस बार कोरोना वायरस ने धार्मिक आयोजनों के रंग को फीका कर दिया है. कोरोना वायरस के कारण जगन्नाथ यात्रा सहित अन्य धार्मिक आयोजन के रद्द होने के कारण हरिद्वार कुंभ पर भी संकट के बादल छा रहे हैं.

हरिद्वार महाकुंभ का स्वरूप अभी तय नहीं

हालांकि, साधु-संतों के साथ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की हुई बैठक में तय समय पर ही कुंभ कराए जाने का फैसला हुआ है. इसके साथ ही जरूरत के हिसाब से तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए भी निर्णय लेने पर सहमति बनी है. अखाड़ा परिषद पहले ही कह चुकी है कि कोरोना वायरस के कारण कुंभ मेले की परिस्थितियां बदली हुई हैं लेकिन, 2021 में कुंभ मेले का मुहूर्त टाला नहीं जा सकता. ऐसे में कोरोना वायरस की तत्कालीन परिस्थिति ही महाकुंभ मेला के स्वरूप को तय करेगी. संतों के इस बयान के बाद सरकार महाकुंभ को लेकर अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटी हुई है.

हरिद्वार महाकुंभ का स्वरूप अभी तय नहीं

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कोरोना के बीच होगा महाकुंभ?

महाकुंभ 2021 के भव्य आयोजन के लिए केंद्र सरकार ने 360 करोड़ रुपए जारी किये हैं. इसके साथ ही राज्य सरकार भी इस आयोजन में 100 करोड़ रुपए अलग से खर्च करेगी. हरिद्वार महाकुंभ मेले में अगर निर्माण एजेंसियों का काम समय पर खत्म होता है तो हरिद्वार की पूरी रूपरेखा बदली हुई नजर आएगी. हरिद्वार में इस वक्त लगभग 15 से ज्यादा फ्लाईओवर तैयार हो रहे हैं, जिनका अधिकतर कार्य पूरा हो चुका है.

हरिद्वार महाकुंभ का स्वरूप अभी तय नहीं

शहर में 30 से ज्यादा अस्थायी पुल बनाए जा रहे हैं. राज्य सरकार और मेला प्रशासन इस बात पर भी फोकस दे रहा है कि जो कार्य हो रहे हैं वो स्थायी हो. ताकि, 12 साल बाद लगने वाले कुंभ में भी उस निर्माण कार्यों का इस्तेमाल किया जा सके.

वहीं, राज्य सरकार के आदेश पर नीलधारा स्थित गंगा के टापू पर साधु-संतों के लिए छावनी बनाने का काम तेज गति से जारी है. नीलधारा स्थित तमाम घाटों के नाम भी सभी तेरह अखाड़ों का प्रतिनिधित्व करने नजर आएंगे. भव्य कुंभ के आयोजन के साथ उत्तराखंड के साधु-संतों ने राज्य सरकार से मनसा देवी हिल बाईपास सड़क को मेले के दौरान प्रयोग में लाए जाने की मांग की है.

क्या कहते हैं सीएम?

सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि, 'राज्य सरकार अपनी तरफ से कुंभ मेले की तैयारियां को अंतिम रूप देने में जुटी हुई है. कुंभ मेला समय पर आयोजित होगा. इसके लिए तमाम मंत्रालय लगातार हरिद्वार के साधु-संतों और लोगों के साथ बैठक कर रहे हैं. मेला प्रशासन ने इस बार हरिद्वार में आयोजित होने वाले कुंभ मेले को लेकर नई रूपरेखा तैयार की है, जिसकी वजह से शहरवासियों को किसी तरह की कोई दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा. ऐसे में महाकुंभ को लेकर हरिद्वार की तस्वीर बदलती नजर आएगी.'

मेला प्रशासन कितना तैयार?

हरिद्वार महाकुंभ के मेलाधिकारी दीपक रावत के मुताबिक जिला प्रशासन अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटा हुआ है. कुंभ में कितने श्रद्धालु शिरकत करेंगे, ये मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर साफ हो पाएगा. मेलाधिकारी का कहना है कि कोरोना के चलते हालात सामान्य होंगे तो महाकुंभ दिव्य और भव्य रूप में आयोजित होगा. शहर में तमाम केबल को अंडरग्राउंड किया जा रहा है.

हरकी पैड़ी पर स्थित मालवीय दीप घाट को नया स्वरूप दिया जा रहा है. हरिद्वार में प्रवेश होने वाले श्रद्धालुओं को भक्तिमय माहौल मिले, इसके लिए प्रशासन संगीत और लेजर लाइट का प्रयोग करने जा रहा है. इसके साथ ही कांगड़ा घाट को भी बेहद आकर्षित और सुंदर बनाया जा रहा है ताकि हरकी पैड़ी पर भी जब भीड़ ज्यादा हो जाए तो उस भीड़ को कांगड़ा घाट पर भेजा जा सके. ये काम भी अंतिम चरण में चल रहा है.

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रेलवे ट्रैक और फ्लाईओवर काम तेज

केंद्रीय एजेंसियों के साथ-साथ राज्य की कई एजेंसियां भी अलग-अलग कामों को पूरा करने में जुटी हुई हैं. रेलवे और फ्लाईओवर के कार्य केंद्रीय एजेंसियां बड़ी तेजी से पूरा कर रही हैं. यह सभी काम नवंबर महीने तक पूरे कर लिए जाएंगे. रेलवे के काम पर भी तेजी से काम हो रहा है. कुंभ से पहले हरिद्वार तक डबल लाइन का काम भी पूरा हो जाएगा.

हाईटेक कंट्रोल रूम

धार्मिक आयोजनों को देखते हुए एक कंट्रोल रूम बनाया जाता है. हरिद्वार महाकुंभ के लिए भी हाईटेक कंट्रोल रूम बनाया जा रहा है. जिससे ना केवल ट्रैफिक को कंट्रोल किया जाएगा. बल्कि हरिद्वार की दूसरी व्यवस्थाओं को भी आधुनीकिकरण के साथ कंट्रोल किया जाएगा.

रोशनी से जगमगाएगा हरिद्वार

हरिद्वार में हेरिटेज पोल लाइटों का प्रयोग किया जाएगा. हरिद्वार के तमाम चौक-चौराहे बेहद सुंदर और आकर्षक बनाए जा रहे हैं. इतना ही नहीं गंगा घाटों के सौंदर्यीकरण का काम भी जोरों-शोरो से चल रहा है. महाकुंभ के देखते हुए सात नए घाटों का निर्माण भी मेला प्रशासन करवा रहा है.

हरिद्वार कुंभ क्यों है खास

जब मेष राशि में सूर्य तथा कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है, तब हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है. यह संयोग 2021 में दिखाई दे रहा है, लेकिन 2022 में ऐसा कोई संयोग नहीं बनता नजर आ रहा है. इसी कारण अखाड़ा परिषद ने हरिद्वार महाकुंभ को 2021 में ही आयोजित किए जाने का फैसला लिया है.

इससे पहले साल 2010 के धर्मनगरी में आयोजित कुंभ में लगभग तीन करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने गंगा में स्नान किया था. शहर के बीच स्थित हरकी पैड़ी पर जब साधु-संतों की पेशवाई निकलती है तो श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर पूरी पेशवाई देखते हैं और पुष्प वर्षा कर संतों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि बताते हैं कि, 'संतों ने कुंभ की तैयारियों को शुरू कर दिया है. लिहाजा सभी तेरह अखाड़े समय पर हरिद्वार में पूरे रीति-रिवाज के साथ प्रवेश करेंगे.'

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क्या है कुंभ? कैसे हुई इसकी शुरुआत?

कुंभ मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है. मान्यता है कि आदि गुरू शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी. मंथन में निकले अमृत का कलश हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरा था. इसीलिए इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला हर तीन वर्ष बाद लगता आया है. 12 साल बाद यह मेला अपने पहले स्थान पर वापस पहुंचता है.

कुंभ के संबंध में समुद्र मंथन की कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक बार महर्षि दुर्वासा के शाप की वजह से स्वर्ग से ऐश्वर्य, धन, वैभव खत्म हो गया था. तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए. विष्णुजी ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया. उन्होंने बताया कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा और अमृत पान से सभी देवता अमर हो जाएंगे. देवताओं ने ये बात असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए. इस मंथन में वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया था.

समुद्र मंथन में 14 रत्न निकले थे. इन रत्नों में कालकूट विष, कामधेनु, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, महालक्ष्मी, वारुणी देवी, चंद्रमा, पारिजात वृक्ष, पांचजन्य शंख और भगवान धनवंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे. जब अमृत कलश निकला तो सभी देवता और असुर उसका पान करना चाहते थे। अमृत के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध होने लगा. इस दौरान कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में गिरी थीं. ये युद्ध 12 वर्षों तक चला था, इसलिए इन चारों स्थानों पर हर 12-12 वर्ष में एक बार कुंभ मेला लगता है. इस मेले में सभी अखाड़ों के साधु-संत और सभी श्रद्धालु यहां की पवित्र नदियों में स्नान करते हैं.

हरिद्वार कुंभ में होने हैं 4 शाही स्नान

हरिद्वार में अगले साल 2021 में होने जा रहे कुंभ में चार शाही स्नान होने हैं. पहला शाही स्नान गुरुवार 11 मार्च 2021 को महाशिवरात्रि के दिन होगा. दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या पर आयोजित होगा. वहीं, तीसरा शाही स्नान 13 अप्रैल मेष संक्रांति पर आयोजित होगा और आखिरी शाही स्नान वैशाखी 27 अप्रैल चैत्र माह की पूर्णिमा को होगा.

हरिद्वार कुंभ में 6 अन्य स्नान भी प्रस्तावित

हरिद्वार कुंभ में 4 शाही स्नान के अलावा भक्तों के लिए कई अन्य दिन तय हो चुके हैं. प्रमुख स्नान मकर संक्रांति 14 जनवरी को, मौनी अमावस्या 11 फरवरी को दूसरा स्नान, बसंत पंचमी 16 फरवरी को तीसरा स्नान, 27 फरवरी माघ पूर्णिमा को, 13 अप्रैल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी हिन्दी नववर्ष के दिन और 21 अप्रैल राम नवमी को भी स्नान के दिन तय किए जा चुके हैं.

कुंभ में अखाड़ों का महत्व

शास्त्रों की विद्या रखने वाले साधुओं के अखाड़े का कुंभ मेले में काफी महत्व है. अखाड़ों की स्थापना आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को बचाने के लिए की थी. अखाड़ों के सदस्य शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण कहे जाते हैं. नागा साधु भी इन्हीं अखाड़ों का हिस्सा होते हैं. सबसे बड़ा जूना अखाड़ा, फिर निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा शामिल हैं.

शुरुआत में प्रमुख अखाड़ों की संख्या केवल 4 थी, लेकिन वैचारिक मतभेदों के चलते बंटवारा होकर ये संख्या 13 पहुंच गई है. इन अखाड़ों के अपने प्रमुख और अपने नियम-कानून होते हैं. कुंभ मेले में अखाड़ों की शान देखने ही लायक होती है. ये अखाड़े केवल शाही स्नान के दिन ही कुंभ में भाग लेते हैं और जुलूस निकालकर नदी तट पर पहुंचते हैं. अखाड़ों के महामंडलेश्‍वर और श्री महंत रथों पर साधुओं और नागा बाबाओं के पूरे जुलूस के पीछे-पीछे शाही स्नान के लिए निकलते हैं.

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