हैदराबाद : नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआई) ने एक नई तकनीक विकसित की है जो भूभौतिकीय अन्वेषण की सुविधा प्रदान करती है. उन्होंने खनिज अन्वेषण, भूगर्भीय संरचना परिसीमन और बेसन स्थलाकृति के मानचित्रण के लिए एक ड्रोन आधारित चुंबकीय अन्वेषण प्रणाली तैयार की है. विकास कार्य के प्रवाह के लिए संपूर्ण डिजाइन एनजीआरआई द्वारा ही तैयार किया गया है. सीएसआईआर-एनजीआरआई के निदेशक डॉ. वी एम तिवारी ने बताया कि प्रौद्योगिकी से समय की बचत होगी और दूरदराज के क्षेत्रों में होने वाले शोध के कार्यों में तेजी आएगी. 11 अक्टूबर को संस्थान के डायमंड जुबली के अवसर पर, डॉ. तिवारी ने ईनाडु के साथ साक्षात्कार में यह बात कही.
भूभौतिकीय अनुसंधान में प्रौद्योगिकी को किस हद तक नियोजित किया जा रहा है?
भूजल का पता लगाने, खनिजों और हाइड्रोकार्बन की खोज करने और भूकंपीय क्षेत्रों का पता लगाने में प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है. हम कई अनुप्रयोगों के लिए चुंबकीय सर्वेक्षण करते हैं. कुछ साल पहले, एक हेलिकॉप्टर के पीछे एक मैग्नेटोमीटर का उपयोग करके सर्वेक्षण किया जाता था. यह एक महंगी और समय लेने वाली प्रक्रिया थी. इसलिए, एनजीआरआई ने एक ड्रोन या मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) आधारित चुंबकीय अन्वेषण प्रणाली विकसित की है. यह भारत में अपनी तरह का पहला प्रयोग है. हमने यूएवी-मैग्नेटोमीटर का उपयोग करके याचराम (हैदराबाद के उपनगरों में से एक शहर) का सर्वेक्षण किया और परिणाम सटीक थे. सुदूर पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों में भूभौतिकीय अन्वेषण अध्ययन आयोजित करना इस तकनीक के साथ आसान हो जाता है.
छह दशक से चल रहा भूकंपीय अध्ययन में क्या प्रगति हुई है?
भूकंपों के बारे में अभी भी बहुत कुछ बताया जाना बाकी है. वर्तमान में, हम केवल भूकंपीय क्षेत्रों और झटकों की तीव्रता की पहचान कर सकते हैं. अभी भी एक ऐसी तकनीक विकसित करने की जरूरत है जो भूकंप की भविष्यवाणी कर सके. ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसी तकनीक भूकंपीय अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
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