शिमला: विश्व भर में अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात आधुनिक हिमाचल प्रदेश की नींव एक ऐसे शख्स ने रखी थी, जिसकी जीवन भर की पूंजी नैतिकता और ईमानदारी थी. समूची दुनिया उस शख्सियत को हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार के नाम से जानती है.
हिमाचल निर्माता एवं प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार जी की आज पुण्यतिथि है. यशवंत सिंह परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को सिरमौर में हुआ और 2 मई 1981 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. अगर परमार ना होते तो शायद आज हिमाचल भी ना होता.
समय के इस दौर में जब राजनेता करोड़ों-अरबों की संपत्ति के मालिक हैं, हिमाचल निर्माता ने जब संसार छोड़ा तो उनके खाते में महज 563 रुपये तीस पैसे थे. बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. वाईएस परमार का सारा जीवन ईमानदारी से गुजरा और उन्होंने अपने लिए कोई संपत्ति नहीं बनाई. समूचा प्रदेश डॉ. परमार की जयंती पर उन्हें याद करता है.
हिमाचल की राजधानी शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर स्थापित प्रतिमाएं सबका ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं. इन प्रतिमाओं में एक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और एक प्रतिमा पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की है. एक अन्य प्रतिमा अलग से स्थापित है, जिसके नीचे लिखे हैं ये शब्द-हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार. ये शब्द सभी को जिज्ञासा से भरते होंगे. यहां हिमाचल निर्माता के जीवन के अनछुए पहलुओं से रू-ब-रू होना जरूरी है.
ऊंची शिक्षा हासिल की, लेकिन जुड़े रहे जमीन से
बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. वाईएस परमार कुशल राजनेता के साथ-साथ कला व साहित्य प्रेमी भी थे. हिंदी, अंग्रेजी व ऊर्दू भाषाओं पर कमाल का अधिकार रखने वाले डॉ. परमार हमेशा जमीन से जुड़े ठेठ पहाड़ी ही बने रहना पसंद करते थे. सिरमौर के अति दुर्गम व पिछड़े गांव चन्हालग में जन्मे परमार ने सारी उम्र परंपरागत पहाड़ी परिधान लोइया व सुथणु आदि ही पहना.
उनका जन्म 4 अगस्त 1906 को सिरमौर जिला की पच्छाद तहसील के गांव चन्हालग में शिवानंद सिंह के घर हुआ था. परमार की शिक्षा लखनऊ व लाहौर में हुई. उन्होंने वर्ष 1926 में लाहौर से बीए आनर्स की परीक्षा पास की. लखनऊ से उन्होंने एमए के साथ एलएलबी की डिग्री हासिल की.
लखनऊ से ही परमार ने पीएचडी की डिग्री ली और बाद में हिमाचल यूनिवर्सिटी से डॉक्टर ऑफ लॉ भी बने. वे देहरादून में थियोसॉफिकल सोसायटी के सदस्य भी रहे. गुलाम भारत में रियासती समय में डॉ. परमार 1930 में सिरमौर रियासत के जज बने. सात साल तक न्यायाधीश के तौर पर काम किया. बाद में डिस्ट्रिक्ट व सेशन जज बने और 1941 तक इस पद पर रहे.
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