इस लेख से एक दिन पहले, यानि 10 दिसंबर को, केंद्रीय राज्य मंत्री, स्वास्थ विभाग, अश्विनी चौबे ने राज्यसभा को बताया कि, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री योजना के तहत, 5 दिसंबर, 2019 तक, 65 लाख लाभार्थियों के इलाज पर केंद्र सरकार 9,549 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है. इस योजना के शुरू होने के बाद, इतने कम समय में इतनी बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचना सराहनीय है. अखबार का लेख और संसद में मंत्री का बयान, दोनों एक ही मुद्दे के दो पहलुओं पर बात कर रहे हैं: भारत में स्वास्थ बीमा. जहां सरकारी आंकड़े इस दिशा में हमारे बढ़ते कदमों का जिक्र कर रहे हैं, वहीं अखबार का वो लेख ये बता रहा है कि अभी और क्या क्या करना बाकी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से पिछले साल ये घोषणा करते हुए कहा था कि, प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना या आयुष्मान योजना, दीन दयाल उपाध्याय के जन्मदिन, 25 सिंतबर से शुरू की जायेगी. इस योजना को नेशनल हेल्थ प्रॉटेक्शन मिशन (एबी-एनएचपीएम) भी कहा जाता है. इसे दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ बीमा योजना के तौर पर देखा जा रहा है. इसके तहत हर लाभार्थी परिवार को सेकेंड्री और टर्शरी (Tertiary) स्वास्थ्य सेवाओं और शल्य चिकित्सा के लिये सालाना पांच लाख रुपये का बीमा मिलता है. इस योजना के लिेये पात्रता सामाजिक आर्थिक जाति गणना के डाटा के अनुसार होती है. इस योजना को हाल ही में एक साल पूरा हुआ है, जिसके बाद इसके आगे के सफर के लिये कई तरह की चुनौतियां सामने आई हैं.
आगे की चुनौतियां
एबी-पीएमजेएवाई के लिये भ्रष्टाचार सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है. इस योजना ने हाल ही में एक साल पूरा किया है, और केंद्रीय स्वास्थ राज्य मंत्री ने हाल ही में राज्यसभा में कहा कि, भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतों के चलते कई अस्पतालों को नोटिस दिया गया है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में 1,200 अस्पतालों में गड़बड़ियों की शिकायत मिली है, जिनमें से 376 अस्पतालों की जांच की जा चुकी है और 06 एफआईआर भी दायर की जा चुकी हैं. इसके साथ ही करीब 1.5 करोड़ रुपये के जुर्माने भी अस्पतालों पर लगाये जा चुके हैं. इनमें से 97 अस्पतालों को योजना से बाहर किया गया है. ये आंकड़े इस योजना को लेकर निजी अस्पतालों में फैले व्यापक भ्रष्टाचार की तरफ ध्यान ले जाते हैं. इसलिये ये जरूरी है कि इस योजना को लागू करने के लिये कड़े नियम कायदे बनाये जाएं और उनका पालन हो.
इसके अलावा निजी अस्पतालों को लेकर एक और मसला है जो विरोधाभास पैदा करता है. एक तरफ निजी अस्पतालों का कहना है कि कुछ बीमारियों के इलाज के लिये तय किये गये दाम बाजार से काफी कम हैं. वहीं दूसरी तरफ, कई रिपोर्टों में यह बात सामने आई है कि ज्यादातर निजी अस्पतालों में इलाज की सुविधाओं का हाल बेहाल है. मिसाल के तौर पर, इस योजना में पंजीकृत 71% से ज्यादा अस्पतालों में 25 से कम बिस्तर हैं और वहां केवल नॉन स्पेशलाइज्ड स्वास्थ सेवायें ही उपलब्ध हैं. तमिलनाडु इस तरह की समस्याओं का एक बेहतर उपाय पेश करता है.
तमिलनाडु में सरकारी स्वास्थ सेवाओं की हालत मजबूत है. अगर सरकारी स्वास्थ सेवायें मजबूत होंगी, तो सरकार निजी अस्पतालों से मोलभाव करने में ज्याजा मजबूत स्थिति में होगी. वहीं दूसरी तरफ, निजी अस्पताल भी सरकारी अस्पतालों से बेहतर सेवायें और सुविधायें देने में मुकाबला करेंगे. इसके नतीजतन पूरा फायदा यहां इलाज कराने वाले लोगों को मिलेगा. एक मजबूत स्वास्थ सेवा तंत्र के होने से ज्यादा से ज्यादा लोग इलाज कराने आगे आएंगे. इस कारण ज्यादा फंड सीधे लोगों को दिया जा सकेगा न कि निजी अस्पतालों को. इससे सरकारी क्षेत्र के कल्याणकारी उद्देश्यों और निजी क्षेत्र के मुनाफे में समन्वय बनाया जा सकता है.
तीसरी चुनौती है, लाभार्थियों को सशक्त करना. इसके लिये जागरूकता अभियान और संस्थागत ढांचे की मदद मुहैया कराने की जरूरत है. इस दिशा में, भारत सरकार द्वारा हाल ही में लाभार्थियों के लिये ई-कार्ड बनाने का कदम सराहनीय है. सेवाओं को लेकर फीडबैक प्रणाली को भी लागू किया गया है जिसके चलते सेवायें देने वाली कंपनियों पर दबाव बना रहेगा.
आयुष्मान भारत योजना को जिस चौथी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, वो है योजना के लिये बहुत बड़े संस्थागत ढांचे की जरूरत और उसके खर्चों की पूर्ती. मिसाल के तौर पर, इस योजना के तहत 2022 तक, 1,20,000 सामुदायिक स्वास्थ अधिकारियों की नियुक्ति की जानी है, और इसी समय सीमा के अंदर 1,50,000 हेल्थ एंड वैलनेस केंद्रों को भी स्थापित करने का लक्ष्य है.