चमोली:आज शाम 3 बजकर 35 मिनट पर भगवान बद्री विशाल के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे. कपाट बंद होने के बाद किसी भी व्यक्ति को बगैर सरकारी अनुमति के हनुमान चट्टी से आगे जाने पर मनाही होगी. बदरीनाथजी के कपाट खुलने के बाद यहां रावल पूजा करते हैं और बंद होने पर नारदजी पूजा करते हैं. यहां लीलाढुंगी नाम की एक जगह है. जहां नारदजी का मंदिर है. कपाट बंद होने के बाद बदरीनाथ में पूजा का प्रभार नारद मुनि के पास रहता है.
ये है मंदिर से जुड़ी प्राचीन मान्यता
मान्यता है कि पुराने समय में भगवान विष्णुजी ने इसी क्षेत्र में तपस्या की थी. उस समय महालक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बनकर विष्णुजी को छाया प्रदान की थी. लक्ष्मीजी के इस समर्पण से भगवान प्रसन्न हुए. विष्णुजी ने इस जगह को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया था. बदरीनाथ धाम में विष्णुजी की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है. विष्णुजी की मूर्ति ध्यान मग्न मुद्रा में है. यहां कुबेर, लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां भी हैं. इसे धरती का वैकुंठ भी कहा जाता है. बदरीनाथ मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप.