भुवनेश्वर : ओडिशा के डोंगरिया आदिवासी जंगलों और पहाड़ियों के बीच प्रकृति की गोद में निवास करते हैं. यह आदिवासी समुदाय मिट्टी और प्रकृति के बच्चे माने जाते हैं. आधुनिक शहरी सभ्यता से दूर रहते हुए यह आदिवासी समुदाय अब आत्मनिर्भरता अपना कर अपने दम पर खड़े होने के लिए संघर्ष कर रहा है.
इनकी डाई और बुनाई कला को 'बनधा कला' (Bandha Kala) कहते हैं. इनके हस्तशिल्प का पारंपरिक पारिवारिक व्यवसाय धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा था, लेकिन अब कोरोना वायरस के खिलाफ वर्तमान युद्ध ने फिर से इनके व्यापार के पुनरुद्धार के लिए एक मौका दिया है.
यह वैसा ही है जैसे कि रायगडा जिले की नियामगिरी पहाड़ियों की पारंपरिक रस्में, जिनकी धरती पर स्वर्ग से तुलना की जा सकती है, इस आदिवासी समुदाय के सशक्तिकरण की कुंजी बन गई है.
डोंगरिया आदिवासी समुदाय मास्क तैयार कर जागरूकता अभियान के संदेशवाहक बन गए हैं, जो कोरोना जैसी महामारी के खिलाफ सबसे प्रभावी हथियार हैं.
इस आदिवासी समुदाय के संघर्ष के साथ-साथ उनकी कला और संस्कृति की झलक इन हाथ से बुने हुए मास्क पर चमक रही है, जिन्हें कढ़ाई से सजाया गया है.
डोंगरिया आदिवासी समुदाय द्वारा बनाए गए मास्क उनकी पारंपरिक टाई और डाई व बुनाई कला से परिपूर्ण हैं, जो राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हैं.
कोरोना वायरस के कारण वर्तमान लॉकडाउन के दौरान राज्य एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग के विकास विभाग ने इन आदिवासियों के लिए रोजगार प्रदान करते हुए, उनके हाथ से बुने और कढ़ाई वाले मास्क के लिए विपणन सुविधाओं की व्यवस्था करने के लिए एक कार्यक्रम भी शुरू किया है.
मास्क तैयार करने के लिए आवश्यक कपड़े के प्रावधान के साथ विभाग उन्हें सुई, धागे और अन्य सामग्रियों की आपूर्ति भी कर रहा है.
साथ ही उनके लिए प्रशिक्षण सुविधाओं की व्यवस्था के अलावा विभाग उन्हें नकद प्रोत्साहन भी दे रहा है. बिसम-कटक ब्लॉक के कुरली पंचायत के अंतर्गत खम्बासी, हुंडीजहाली और खजुरी जैसे गांवों के लगभग 200 परिवार अब मास्क बुनने में व्यस्त हैं.
इन्हें मास्क बनाने के लिए 50 रूपए प्रति मास्क दिया जा रहा है. इस लॉकडाउन अवधि के दौरान जब उन्हें कोई रोजगार नहीं मिल रहा है, सरकार द्वारा उन्हें मास्क तैयार करने के लिए प्रोत्साहित करने के इस प्रयास ने उन्हें कुछ आय अर्जित करने में सक्षम बनाया है.