नई दिल्ली :भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों में से 8 पर अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. इसमें पार्टी की कहीं ना कहीं दूर दृष्टि नजर आ रही है. पार्टी ने इस लिस्ट में जहां पूरी तरह से जातीय समीकरण पर ध्यान दिया है. पार्टी का 8 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला भी एक नए समीकरण को जन्म दे रहा है. हालांकि पार्टी के लिए इस सीट को जितना भी काफी आसान था बावजूद इसके बीजेपी ने बसपा उम्मीदवार को वाकओवर दिया, जिससे उत्तर प्रदेश की राजनीति को लेकर अंदरखाने नई चर्चा शुरू हो गई है.
भारतीय जनता पार्टी ने सोमवार को जारी और राज्यसभा उम्मीदवारों के नाम में गजब का जातिय समीकरण बिठाया. पार्टी ने इसमें अपने परंपरागत वोट बैंक का ध्यान, तो रखा ही है साथ ही जातीय समीकरण को और नए चेहरों को पूरी तरह से मौका दिया गया है. हालांकि पार्टी यहां पर 9 सीट राज्यसभा की जीत सकती थी बावजूद उसने नोवीं सीट पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं.
उत्तर प्रदेश में 9 नवंबर को राज्यसभा के चुनाव होने हैं और यह चुनाव उत्तर प्रदेश के राज्यसभा की 10 सीटों पर हो रहे हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने मात्र 8 प्रत्याशियों को ही चुनाव मैदान में उतारा है, जबकि माना यह जा रहा है की 9वीं सीट भी भारतीय जनता पार्टी के लिए काफी आसान सीट थी मगर बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति में हुई मंथन के बाद इसमें नौवें सीट पर एक तरह से भारतीय जनता पार्टी में बहुजन समाज पार्टी को वॉकओवर देने का मन बनाया.
इस लिस्ट को देखा जाए तो इसमें जातीय समीकरण को का पूरा पूरा ध्यान रखा गया है इसमें केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी अरुण सिंह पूर्व डीजीपी बृजलाल हालांकि बृजलाल मायावती के खास नजदीक माने जाते रहे हैं . नीरज शेखर हरिद्वार दुबे गीता शाक्य बी एल शर्मा और सीमा द्विवेदी को उम्मीदवार बनाया गया है. इसमें अगर जातीय समीकरण देखा जाए तो बीजेपी ने दो राजपूत ओबीसी दो ब्राह्मण एक दलित और एक सिख समुदाय के प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाकर उत्तर प्रदेश में चुनाव से काफी पहले जातीय समीकरण को साधने की कोशिश की है.
सूत्रों की मानें तो नौवीं सीट पर बहुजन समाज पार्टी को बीजेपी की तरफ से वर्कोवर दिया जाना भी भविष्य के लिए एक सांकेतिक पहल भी मानी जा रही है तो क्या उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव में एक नए समीकरण का आगाज भारतीय जनता पार्टी कर सकती है या फिर यह मात्र दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश है इन दोनों ही पहलुओं पर अगर देखा जाए तो पार्टी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए ही यह फैसला लिया है.
अब अगर जातीय संतुलन को देखा जाए तक पूर्व डीजीपी बृजलाल को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है, जो दलित समुदाय से आते हैं और वो अनुसूचित आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं. हालांकि वह बसपा सुप्रीमो मायावती के काफी करीबी माने माने जाते रहे हैं. वैसे इस सीट ओर पार्टी के दलित नेता और पूर्व प्रवक्ता विजय सोनकर शास्त्री की उम्मीदवारी की भी चर्चा थी. इसके बावजूद पार्टी ने अंतिम समय मे मायावती के करीबी ब्रिजलाल का नाम तय किया इस बात को लेकर भी चर्च का माहौल गर्म है.