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भारत-चीन सीमा विवाद के ऐतिहासिक और सामरिक पहलू - एलएसी पर रक्षा बुनियादी ढांचे के विकास

वर्ष 2007 में सिक्किम, लद्दाख सेक्टर में देपसांग और कई अन्य स्थानों पर सीमाओं के बारे में चीन का रुख अलग हो गया. 2017 में चीन ने एकतरफा रूप से सीमा पर भूटान और भारत के साथ समझौते को बदलना चाहा, जिससे डोकलाम गतिरोध उत्पन्न हो गया. चीन ने 2006 में अपने सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास कुछ किलोमीटर की दूरी पर तैनात किया. 2007 के बाद से एलएसी पर रक्षा बुनियादी ढांचे के विकास में वृद्धि देखी. कई स्थानों पर चीनी सैनिकों को आगे के क्षेत्रों में आते देखा गया.

details of india china border conflicts
प्रतीकात्मक चित्र

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Published : Jun 16, 2020, 6:12 PM IST

Updated : Jun 16, 2020, 6:40 PM IST

हैदराबाद : भारत-चीन सीमा पर पिछले कुछ महीनों से लगातार तनाव देखा जा रहा है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर कम से कम चार अलग-अलग स्थानों पर छिटपुट हिंसा के मामले सामने आते रहे. हालांकि लद्दाख में जारी विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की संभावना बढ़ रही थी. साथ ही दोनों तरफ से एलएसी पर सैन्यबल की भारी तैनाती की गई.

दरअसल भारत द्वारा गलवान घाटी में दौलत बेग ओल्डी (DBO) के लिए एक सड़क का निर्माण एलएसी पर भारत और चीन के बीच हालिया गतिरोध का एक कारण बताया जा रहा है.

हालिया संघर्ष
दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. चीन द्वारा भारत पर दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा की यथास्थिति बदलने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया है. रिपोर्ट्स के अनुसार गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों और उपकरणों को निर्माण गतिविधि रोकने के लिए चीन द्वारा यह गतिरोध शुरू किया गया. यह क्षेत्र भारत की एलएसी की दिशा में है. दोनों देशों ने डेमचोक, दौलत बेग ओल्डी और गलवान नदी के आसपास और साथ ही लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील में अतिरिक्त सैन्यबलों की तैनाती की है.

पिछले तीन विवाद- 2013 के दौरान उत्तरी लद्दाख के देपसांग मैदान में, 2014 में पूर्वी लद्दाख में चुमार और 2017 में चीन के साथ भूटान की लगती सीमा पर डोकलाम में हुए थे. इनके समाधान के लिए उच्च-राजनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ी थी.

वहीं इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत और चीन के बीच मध्यस्थता की पेशकश की है. हालांकि भारत ने कहा कि वह तनावपूर्ण सीमा गतिरोध को हल करने के प्रयासों में चीन के साथ बातचीत कर रहा है.

आपको बता दें कि 1950 के दशक के उत्तरार्ध तक सीमा सामान्य थी, लेकिन 1962 में भारत और चीन के बीच में युद्ध हो गया.

2002 में दोनों देशों के विशेषज्ञ समूह की बैठकों के दौरान मानचित्रों का आदान-प्रदान किया गया था. हालांकि चीन ने पश्चिमी क्षेत्र में एक अलग दावा पेश किया, जोकि 1962 के बाद से जमीन पर मौजूद चीजों से बिल्कुल अलग था.

2007 में सिक्किम, लद्दाख सेक्टर में देपसांग में और कई अन्य स्थानों पर सीमा के बारे में चीन का अलग रुख हो गया. 2017 में चीन ने एकतरफा रूप से सीमा पर भूटान और भारत के साथ समझौते को बदलना चाहा, जिससे डोकलाम गतिरोध उत्पन्न हो गया. चीन ने 2006 में अपने सैनिकों को एलएसी के पास कुछ किलोमीटर की दूरी पर तैनात किया. 2007 के बाद से एलएसी पर रक्षा बुनियादी ढांचे के विकास में वृद्धि देखी. कई स्थानों पर चीनी सैनिकों को आगे के क्षेत्रों में आते देखा गया.

एलएसी में ढांचागत गतिविधियां
परिवहन और संचार में सुधार ने दोनों सेनाओं को इन सीमा क्षेत्रों में बेहतर और अधिक गश्त करने के लिए प्रेरित किया. इसलिए गश्ती दल के आमने-सामने आने की संभावना अधिक होती गई. भारत एलएसी के लिए सड़क और हवाई संपर्क बनाकर चीनी सीमा पर इलाके के लिए रसद देकर स्थायी संतुलन बहाल करने की मांग कर रहा है.

भारत का सीमा सड़क विकास
पिछले साल भारत ने दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) सड़क को पूरा किया, जो लेह को काराकोरम दर्रे से जोड़ती है. भारत ने 16,000 फीट पर डीबीओ में एक महत्वपूर्ण लैंडिंग पट्टी भी तैयार की है. दिसंबर 2022 तक, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में फैली सीमाओं के साथ सभी 61 रणनीतिक सड़कों को पूरा किया जाएगा, जिनकी लंबाई 3,417 किलोमीटर तक होगी.

चीनी गतिविधियां
चीन अब भारत को यह बताने लगा है कि उसे बीजिंग की तरह गतिविधि करने का कोई अधिकार नहीं है, जो पहले ही हो चुका है. लेकिन भारत निर्माण कार्य करने को अपना अधिकार क्षेत्र मानता है. पिछले कुछ वर्षों में चीनियों ने पैंगोंग त्सो और अरुणाचल प्रदेश की सीमा के किनारे मोटर योग्य सड़कों का निर्माण किया है.

Last Updated : Jun 16, 2020, 6:40 PM IST

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