नई दिल्ली : राजधानी दिल्ली में नवंबर और दिसंबर महीने में प्रदूषण की समस्या आम बात हो गई है. इसके पीछे पड़ोसी राज्यों में पराली जलना प्रमुख कारण बताया जाता है. पराली प्रबंधन को लेकर पिछले दिनों इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट पूसा ने एक कैप्सूल तैयार किया है, जिसे बायो डीकंपोजर का नाम दिया गया. यह कैप्सूल पराली प्रबंधन के लिए अब इतना कारगर साबित हो रहा है कि राज्य सरकारों और किसानों की डिमांड को भी इंस्टीट्यूट पूरा नहीं कर पा रहा है. हर हफ्ते करीब 1600 कैप्सूल तैयार किए जा रहे हैं.
ईटीवी भारत ने मंगलवार को इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट के बायोलॉजिकल डिपार्टमेंट की हेड के. अन्नपूर्णा से इस पूरी तकनीक को लेकर विस्तृत बातचीत की. अन्नपूर्णा ने बताया कि मुख्यमंत्री केजरीवाल के बाद अन्य राज्यों ने भी इस कैप्सूल में अपनी रुचि दिखाई है. दिल्ली के अलावा पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में भी किसान इसका बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं.
'प्रदूषण रोकने में कारगर है ये तकनीक'
अन्नपूर्णा बताती हैं कि ये पूरी तकनीक प्रदूषण रोकने के लिए कारगर है, क्योंकि इसमें पराली को जलाया नहीं जाता. इसके साथ ही इसमें किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल भी नहीं होता है. उन्होंने बताया कि छिड़काव के बाद 15-20 दिनों के भीतर ही ये बायो डीकंपोजर पराली को गलाकर जमीन में मिला देता है. इससे उसके न्यूट्रिएंट नष्ट नहीं होते और ये खाद की तरह काम करता है.