कोविड 19 महामारी का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इस पर एक रिपोर्ट पेश की गई है. इसे लैंसेट साइकेट्री ने प्रकाशित किया है. अनुसंधानकर्ताओं ने इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य कर्मियों और जनता पर महामारी पर पड़ने वाले असर के बारे में बताया है.
इस अध्ययन को चिकित्सा विज्ञान अकादमी ने वित्त पोषित किया है. इसमें कोविड 19 की वजह से मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और तंत्रिका-संबंधी प्रभाव का अध्ययन किया गया है. रिपोर्ट महामारी के बड़े दुष्परिणामों की चेतावनी देता है. खासकर बढ़े हुए सामाजिक अलगाव और अकेलेपन की वजह से. इसमें अवसाद, आत्महत्या और इसके प्रयास की बात कही गई है.
मानसिक अवसाद कम करने के लिए तत्काल और लंबी अवधि, दोनों स्तर पर कदम उठाने की बात कही गई है. कहा गया है कि साक्ष्य आधारित कार्यक्रमों पर जोर दिए जाने की आवश्यकता है.
इसके लिए एक सर्वे कराया गया था. इसमें 24 विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया. इसमें वैसे लोगों को भी शामिल किया गया, जिन्होंने मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का अध्ययन किया हुआ है. इप्सोस एमओआरआई ने 1099 लोगों को सर्वे में शामिल किया. मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान चैरिटी एमक्यू ने 2198 लोगों को शामिल किया था. मार्च के अंतिम पखवाड़े में यह अध्ययन किया गया है. उत्तरदाताओं ने विशिष्ट चिंताओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि उनकी चिंताए बढ़ गईं. अस्वस्थ होने का डर सताता है. मानसिक तौर पर बीमार होने का भाव आता रहता है.
2003 में सिवियर एक्यूट रेस्पिरेट्री सिन्ड्रोम (सार्स) एपिडेमिक की भी रिपोर्ट शामिल की गई है. उस समय मृत्यु दर 10 फीसदी तक चली गई थी. जबकि कोविड 19 में मृत्यु दर अभी एक से दो फीसदी के बीच है. लेकिन उस समय यह बीमारी के बारे में तेजी से फैलने की रिपोर्ट नहीं आई थी. उस समय 8098 मामले सामने आए थे. 774 लोगों की मौत हो गई थी.
अध्ययन पत्र में बताया गया है कि सार्स की वजह से आत्महत्या की दर में 30 फीसदी तक का इजाफा हो गया. खासकर जिनकी उम्र 65 साल से ज्यादा थी. जो लोग ठीक हो गए थे, उनमें से 50 फीसदी लोग चिंतित रहने लगे. 29 फीसदी स्वास्थ्यकर्मियों ने भावनात्मक तनावग्रस्त में रहने की शिकायत की. जो लोग इस गंभीर और जानलेवा बीमारी से बचे, उनमें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर का खतरा बना रहा.
रिपोर्ट के अनुसार क्वारेन्टीन और सोशल या फिजीकल डिस्टेंसिंग की वजह से मानसिक तनाव बढ़ गया. आत्महत्या और खुद को नुकसान करने की सोच हावी होने लगी. अल्कोहल का सेवन बढ़ा, चिड़चिड़ापन और उग्र स्वभाव का उभार दिखने लगा. जुआ खेलने की लत बढ़ी. बच्चों से बदसलूकी की शिकायतें बढ़ गईं. सामाजिक वियोग, अर्थ की कमी या एनोमी जैसी समस्याएं सामने आने लगीं. कुछ शिकायतें ऐसी भी रहीं- जैसे - साइबर हमला करना, बोझ महसूस करना, वित्तीय तनाव, शोक, हानि, बेरोजगारी.