हैदराबाद : हमारे देश में करीब बीस लाख से अधिक पुलिस आंतरिक सुरक्षा की ड्यूटी में तैनात हैं. ब्रिटिश शासन के दौरान पुलिस का काम केवल अपने हुक्मरानों के हितों की रक्षा करना था लेकिन आजादी के बाद जनता की रक्षा पुलिस का पहल कर्तव्य बन गया. कई बार राष्ट्रीय पुलिस आयोग ने आदेश दिया है कि पुलिस बल को जनता की सुरक्षा के लिए जवाबदेह होना चाहिए, कानून का शासन लागू करना चाहिए और समाज की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन क्या ऐसा हो पा रहा है?
कई बार सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की है कि पुलिस प्रणाली संगठित अपराधियों का एक समूह बन गई है. जनता के प्रति पुलिस का रवैया खराब होता जा रहा है. बेगुनाहों की जान लेने और यातना देने के नए नए तरीके निकाले जा रहे हैं. हाल ही में तमिलनाडु के तूतिकोरन जिले में पिता-पुत्र की मौत की घटना इसका ताजा उदाहरण है.
पुलिस की क्रूरता ने दो लोगों की जान ली
कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने लॉकडाउन का फैसला लिया. महाराष्ट्र और तमिलनाडु में कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए इसका सख्ती से पालन कराया जा रहा है. तमिलनाडु में पुलिस की सख्ती इस हद तक बढ़ गई कि दो लोगों की जान ले बैठी. तमिलनाडु के संथाकुलम में शाम साढ़े सात बजे के बाद मोबाइल की दुकान खुली रखने पर 60 वर्षीय जयराज और उनके बेटे बेनिक्स के साथ पुलिस ने शर्मिंदा कर देने वाली हरकत की. संथाकुलम पुलिस स्टेशन में उन्हें रखा गया. उनके साथ मारपीट और अमानवीय व्यवहार किया गया. 22 तारीख को जयराज को सीने में दर्द हुआ और उन्हें कोविलपट्टी अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. अगले दिन बेटे की भी उसी अस्पताल में मौत हो गई.
जयराज और फीनिक्स की हिरासत में मौत के लिए जिम्मेदार पुलिस पर क्रूरता का आरोप लगने के बाद सोशल मीडिया पर जोर-शोर से इस मामले को उठाया गया, जिसने नगरपालिका प्रशासन और न्यायपालिका को हिलाकर रख दिया. इस प्रक्रिया में न्यायिक मजिस्ट्रेट की जांच ने पुलिस की अमानवीय हरकत को जनता के सामने लाकर रख दिया.
कोविलपट्टी के न्यायिक मजिस्ट्रेट एमएस भारतीदासन की रिपोर्ट के अनुसार - पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरा ऑटो-डिलीट मोड पर डालकर सेट किया गया था. प्रत्येक दिन के अंत में इसकी रिकॉर्डिंग अपने आप हट जाती थी. पुलिस ने अपने अपराध करने के कोई सबूत न छोड़ने की व्यवस्था की हुई थी. समिति ने टिप्पणी की कि कांस्टेबल से लेकर उच्च अधिकारी तक ने जांच समिति के साथ दुर्व्यवहार किया. एक कांस्टेबल ने यह भी चुनौती दी कि आप कुछ नहीं कर सकते. ये दिखाता है कि कानून के रक्षक ही कानून की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
महिला कांस्टेबल पिता-पुत्र पर हुए अत्याचार की गवाही देते हुए काफी डरी हुई थी. डरते हुए उसने बयान दिया कि उस रात पिता-पुत्र की जोड़ी पर पुलिस ने कैसे अत्याचार किये. पुलिस ने एक साथ घंटों तक बारी-बारी से उन्हें तब तक पीटा जबतक वे लहुलूहान नहीं हो गए. जेल की चारदीवारी में फर्श पर हर जगह खून के धब्बे थे.
अपराधियों के हाथों से निर्दोष लोगों को बचाने के लिए पुलिस को सौंपी गई शक्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है और दुर्भाग्य से असहाय नागरिकों पर ही पुलिस बल का इस्तेमाल किया जा रहा है. पुलिस थानों में मौलिक अधिकारों का कोई अर्थ नहीं है. स्वतंत्र लोकतांत्रिक भारत के रूप में उभरने के सत्तर साल बाद भी ये अत्याचार देश की प्रतिष्ठा पर कुठाराघात हैं.
तत्काल सुधार की जरूरत है