नई दिल्ली/पटना: एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम ने अब तक राज्यभर में 179 बच्चों को अपने आगोश में ले लिया है. अब तक बिमारी के कारणों और कहर को कैसे रोके ये किसी को नहीं पता. हर दिन चमकी बुखार के नए मामले सामने आ रहे हैं. सरकार को भी चमकी बुखार ने पस्त कर दिया है.
मुजफ्फरपुर में अबतक कुल 129 लोगों की जान चली गई है. एसकेएमसीएच अस्पताल में 109 लोगों की मौत हुई है तो वहीं केजरीवाल अस्पताल में 20 लोगों की जान चली गई है.
आज भी मधुबनी का एक मामला सामने आया, जिसमें बच्ची को इलाज न मिल पाने के कारण उसकी मौत हो गई. बताया जा रहा है कि समय पर एंबुलेंस नहीं पहुंची थी, जिसके चलते पांच साल की बच्ची की मौत हो गई. परिजनों का कहना था कि उन्हे इस बिमारी के बारे में कुछ भी पता नहीं है.
100 से ज्यादा बच्चों की मौत के बाद जागरूकता कार्यक्रम शुरू किये गये. हालांकि इससे भी कुछ खास असर नहीं हुआ और मौतों का सिलसिला बदस्तूर जारी है. नौकरशाहों की इस लापरवाही ने बिहार में ब्यूरोक्रेसी की पोल तो खोली ही साथ ही नीतीश सरकार को बेइज्जत कराने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.
लगातार डॉक्टरों और अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के बाद एसकेएमसीएच के वरिष्ठ रजिडेंशियल डॉक्टर, डॉ भीमसेन कुमार को बरखास्त कर दिया गया है. स्वास्थ विभाग ने पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के डॉक्टरों को 19 जून को ही देखभाल के लिए नियुक्त कर दिया था.
इसी के साथ बता दे कि लगातार वीआईपी नेताओं का आना जाना लगा हुआ है. इन सभी के पास कोई हल नहीं है. बीते 20 जून को शरद यादव 19 गाड़िया लिए पहुंचे तो वहीं कल कन्हैया कुमार भी पहुंचे, जिसके बाद उन्हे विरोध का सामना भी करना पड़ा. इन नेताओं के आने से मरीजों की परेशानियां बढ़ रही हैं. पहले से ही अस्पतालों में इतनी भीड़ ऊपर से वीआईपी अपने पूरे कुनबे के साथ पहुंचते हैं, जिसके चलते लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
पढ़ें: चमकी बुखारः मरीज परेशान, नेताओं का 'विजिट ड्रामा' जारी
मरीजों का कहना है कि वीआईपी नेताओं को यहां आने के बजाए, उन्हें हम लोगों की मदद करनी चाहिए. गांवों में जाकर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए. गरीब परिवारों के बीच ग्लूकोज बांटने की व्यवस्था करवानी चाहिए. यहां आकर मीडिया में सुर्खियां बटोकर वे मरीजों की मदद नहीं कर सकते हैं. उलटे उनके आने से मरीजों को परेशानी होती है. इलाज में देरी हो जाती है. डॉक्टर दबाव में रहते हैं. वो वीआईपी नेताओं के पीछे घूमने लगते हैं.
लीची नहीं है बीमारी की वजह
एसकेएमसीएच के अधीक्षक डॉ सुनील शाही ने कहा कि चमकी लीची की वजह से नहीं हो रहा है. यह शोध का विषय है. उसके बाद ही सही कारण पता चल पाएगा.
अब तक 179 बच्चों की राज्यभर में मौत
बता दें, उत्तर बिहार में मुजफ्फरपुर समेत कई इलाकों में फैला बच्चों के दिमाग में होने वाला बुखार आज भी पहेली बना हुआ है. चमकी या एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) के नाम से जाना जा रहा ये बुखार अब तक 179 बच्चों की सांसे थाम चुकी हैं.
गोरखपुर में ऐसी ही घटना हुई थी, जिसमें कई बच्चों की जान चली गई थी. उस समय चर्चा में आए डॉ कफील खान भी मुजफ्फरमगर पहुंच कर लोगों को जागरूक कर रहे हैं. साथ ही कैंप लगाकर लोगों का उपचार करने का भी वे प्रयास कर रहे है. उनके साथ 6 अन्य डॉक्टर भी मौजूद हैं.
ये सिलसिला शुरू हुए आज 23 दिन हो गए हैं और मरीजों की संख्या में हर दिन इजाफा ही होता जा रहा है.
क्या है अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES)?
अक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी AES शरीर के मुख्य नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है. वह भी खासतौर पर बच्चों में.
चमकी बुखार से कौन होता है प्रभावित
एईएस आम तौर पर 15 साल से कम उम्र के बच्चों को अपनी चपेट में लेता है. यह बीमारी बिहार, उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में बच्चों को अपना निशाना बनाती रही है.
चमकी बुखार के लक्षण
- अत्यधिक बुखार, उल्टी, सिर में दर्द, रोशनी में चिड़चिड़ापन
- गर्दन और पीठ में दर्द
- उबकाई और व्यवहार में परिवर्तन
- बोलने एवं सुनने में परेशानी
- बुरे सपने, सुस्ती और याददाश्त कमजोर होना
- गंभीर हालत में लकवा मार जाना और कोमा की स्थिति