29 अक्टूबर को, कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (केएनपीपी) ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें कहा गया कि बिजली संयंत्र पर 'साइबर हमले के संदर्भ में कुछ गलत सूचनाओं का प्रसार' किया जा रहा है. यह सोशल मीडिया में आई उन रिपोर्टों के जवाब में था, जहां कहा गया कि 'परमाणु संयंत्र के महत्वपूर्ण - मिशन सिस्टम मैलवेयर की चपेट में आ गए थे.'
बहुत कम लोगों ने इस इनकार पर यकीन किया, इसलिए अगले ही दिन केएनपीपी को एक और प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा: 'एनपीसीआईएल (नेशनल पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) के सिस्टम में मैलवेयर की पहचान सही है. 4 सितंबर, 2019 को सीईआरटी द्वारा देखे जाने के बाद इस मामले के विषय में सीईआरटी द्वारा अवगत कराया गया था. यह कहकर पूरे मामले को तूल न देने की कोशिश की गयी कि, 'जांच से पता चला कि संक्रमित कंप्यूटर एक ऐसे यूजर का था जो इंटरनेट से जुड़े नेटवर्क से जुड़ा था. यह महत्वपूर्ण आंतरिक नेटवर्क से अलग है.'
हालांकि यह सच है कि परमाणु संयंत्र का कामकाज प्रभावित नहीं हुआ था, दूसरे परमाणु ऊर्जा केंद्र पर एक समान और अधिक सफल हमले पर नज़र डालना शिक्षाप्रद होगा. 2009 में राष्ट्रपति ओबामा के कार्यालय संभालने के एक महीने बाद, ईरानी नटजेन परमाणु संवर्धन सुविधा में सेंट्रीफ्यूज नियंत्रण से बाहर होने लगा था. इसे एक देश द्वारा दूसरे के खिलाफ आक्रामक साइबर हथियार का पहला ज्ञात उपयोग माना जाता है. फ्रेड कपलान ने अपनी पुस्तक डार्क टेरिटरी: द सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ साइबर वॉर में इस हमले के कुछ विवरणों को रेखांकित किया है.
नटंज नियंत्रण प्रणालियों को संक्रमित करने के लिए अमेरिकियों द्वारा विकसित की गई कृमि विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम में असाधारण रूप से परिष्कृत और पांच कमजोरियां का उन्होंने फायदा उठाया, जिनके बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी. (आमतौर पर शून्य-दिन के कारनामे कहा जाता है). नटन्ज में नष्ट किए गए सेंट्रीफ्यूज के आंकड़े 1000 और 2000 के बीच अलग-अलग हैं, लेकिन इसने कुछ वर्षों के लिए ईरानी यूरेनियम संवर्धन प्रयास को पीछे धकेल दिया.
इस साइबर हमले में जिस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है वह इसके निष्पादन के लिए किये गये प्रारंभिक प्रयास है. जैसा कि कापलान द्वारा वर्णित है, तीन साल पहले 2006 में ही इस हमले कि तैयारी शुरू हो गई थी, और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) की टीमों ने रिएक्टर को नियंत्रित करने वाले कंप्यूटरों में कमजोरियों की खोज कर ली थी और अपने नेटवर्क के माध्यम से इनमें प्रवेश कर लिया था, इसके आयामों, कार्यों और विशेषताओं का पता लगाने और अधिक कमजोरियों का पता लगाते हुए हमला किया गया था.” यह वही कारण है कि साइबर हमला - और इसका वर्णन करने का कोई अन्य तरीका नहीं है- केएनपीपी में चिंताजनक लग रहा है. हम अभी भी नहीं जानते हैं कि संक्रमित कंप्यूटर से चोरी की गई जानकारी का उपयोग आगे के हमलों को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जा सकता है या नहीं.
वास्तविकता यह है कि दुनिया आज एक शांत लेकिन संभावित रूप से घातक साइबर युद्ध लड़ रही है, जिसमें महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा जो एक देश को चलाता है, काफी जोखिम में है. मार्च 2018 में, अमेरिकन डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी और फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन ने रूसी सरकार द्वारा साइबर घुसपैठ पर अलर्ट जारी किया था, 'अमरिकी सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ ऊर्जा, परमाणु, वाणिज्यिक सुविधाओं, पानी, विमानन और महत्वपूर्ण विनिर्माण क्षेत्रों में संगठनों को लक्षित किया गया है.' जून 2019 में, न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट किया क 'राष्ट्रपति व्लादिमीर वी पुतिन को चेताने के लिए रूस के इलेक्ट्रिक पावर ग्रिड में संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी डिजिटल कदम बढ़ाकर सेंध लगाई है और ट्रम्प प्रशासन नए अधिकारियों का उपयोग कर साइबर टूल को अधिक आक्रामक तरीके से तैनात करने के लिए काम कर रहा है.'