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भारतीय राजनीति में चार हजार से अधिक राजनेताओं पर आपराधिक मुकदमा - राजनीतिक दल

संसद स्वतंत्रता दिवस 1997 की पूर्व संध्या पर किए गए प्रत्येक राजनीतिक दल के सर्वसम्मत प्रस्ताव का एक मूक गवाह बन कर रह गया है. मार्च 2018 तक के साथ राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की जल्द सुनवाई के लिए 12 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए हैं, बावजूद मामले लंबित पड़े हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Sep 23, 2020, 8:00 AM IST

हैदराबाद :संसदीय लोकतंत्र को आपराधिक राजनीति से बचाने की खोज न्यायिक निर्देशों में स्पष्ट रही है, लेकिन पहल एक तरफा सड़क जैसी बनी रही.मार्च 2018 तक के साथ राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की जल्द सुनवाई के लिए 12 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए हैं, लेकिन अंतिम निर्णयों में रुकावट आ गई. इन कानूनी देरी को दूर करने के इरादे से सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को राजनेताओं के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए एक सप्ताह के भीतर एक कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया है.

शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि आरोपी जनप्रतिनिधियों की संख्या बढ़ रही है, क्योंकि शक्तिशाली राजनीतिक लॉबी इन मामलों में फैसले को प्रभावित कर रही हैं. इस तरह के हजारों मामले लंबित होने के कारण सर्वोच्च अदालत ने आदेश दिया कि कार्यवाही पर स्टे मिलने के मामलों को भी दैनिक आधार पर सुना जाए और दो महीने के समय में अंतिम फैसला सुनाया जाना चाहिए. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार 2014 में चुने गए 1,581 उम्मीदवारों के खिलाफ आरोप लंबित थे. आज 4,442 राजनेता आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे हैं. इनमें से 2,556 वर्तमान में विधानसभाओं और संसद के सदस्य हैं.

राजनीतिक संगठनों को सुधारने की जरूरत

संसद स्वतंत्रता दिवस 1997 की पूर्व संध्या पर किए गए प्रत्येक राजनीतिक दल के सर्वसम्मत प्रस्ताव का एक मूक गवाह बन कर रह गया है. पार्टियों ने कसम खाई थी वे किसी भी उस व्यक्ति को टिकट नहीं देगी, जिस पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, लेकिन अब हर पार्टी चुनावों में अपराधियों को टिकट देने के मामले में एकजुट हैं. इससे पहले फरवरी में सर्वोच्च अदालत ने फैसला सुनाया था कि विधायकों को अयोग्य ठहराने से राजनीति में अपराधीकरण पर अंकुश नहीं लगेगा, चूंकि पार्टियां उन लोगों के खिलाफ नहीं हैं, जिनके खिलाफ आरोप साबित नहीं हुए हैं, इसलिए राजनीतिक संगठनों को भी सुधारने की जरूरत है. कोर्ट ने राजनीतिक दलों के लिए छह निर्देश जारी किए, जिसमें कहा गया कि वे इस बात का स्पष्टीकरण दें कि पहले से लंबित आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों का वे क्यों चयन करते हैं.

शीर्ष अदालत ने पहले टिप्पणी की कि कैसे एक आपराधिक उम्मीदवार के पास एक स्वच्छ उम्मीदवार की तुलना में जीतने की संभावना दोगुनी थी. यह टिप्पणी भारत में नैतिक रूप से दिवालिया राजनीति का एक सच्चा प्रतिबिंब है. अगर राजनीतिक दल आरोपियों को टिकट देने से इनकार करते हैं तो संकट टल सकता है, लेकिन राजनीतिक क्षेत्र इतना विकृत हो चुका है कि अपराधी अपनी ही पार्टियों की अवमानना करने में सक्षम हैं.

अमेरिका में चुनाव और दुनिया में कहीं भी उम्मीदवार की पृष्ठभूमि के प्रत्येक पक्ष का बारीकी से ध्यान रखा जाता है. जापान के प्रधानमंत्री हातोयामा ने चुनावी वादों को पूरा करने में विफलता की वजह से इस्तीफा दिया, जिसमें अमेरिकी हवाई अड्डे का स्थानांतरण का वादा भी शामिल था, लेकिन यहां भारत में लालू प्रसाद जैसे लोग जो भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे, जेल से अन्य दलों के साथ गठबंधन कर रहे हैं. राजनीतिक भ्रष्टाचार सभी अपराधों की जननी है. जन जागरूकता राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण को रोक सकती है.

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