नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में लापता हुए बच्चों को तलाशने के लिए क्राइम ब्रांच की टीम फेस रेकॉग्निजेशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रही है. यह सॉफ्टवेयर प्रत्येक 24 घंटे के भीतर एक बार चलता है और लापता हुए बच्चों का मिलान मिलने वाले बच्चों की तस्वीर से करता है.
इस सॉफ्टवेयर की मदद से पुलिस को लावारिस हालत में मिले बच्चों के घर का पता मिल जाता है और पुलिस उसे परिवार तक पहुंचाने का काम आसानी से कर पाती है.
मददगार साबित हो रहा है सॉफ्टवेयर
डीसीपी जॉय टिर्की ने बताया कि दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को लगभग एक साल पहले यह सॉफ्टवेयर मिला था. इसका इस्तेमाल एन्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट द्वारा किया जा रहा है. अभी यह सॉफ्टवेयर केवल दिल्ली पुलिस के पास है. ऐसे में इसका इस्तेमाल करने वाली क्राइम ब्रांच न केवल दिल्ली बल्कि अन्य राज्यों से लापता हुए बच्चों के मामले में भी वहां की पुलिस को सहयोग करती है. उन्होंने बताया कि यह सॉफ्टवेयर काफी मददगार साबित हो रहा है.
कैसे काम करता है यह सॉफ्टवेयर
डीसीपी जॉय टिर्की ने बताया कि देशभर से लापता होने वाले बच्चों की जानकारी उनकी तस्वीर सहित महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और दिल्ली-एनसीआर की तस्वीरें जिपनेट पर अपलोड की जाती है. यह रिकॉर्ड लगातार दिल्ली पुलिस के इस सॉफ्टवेयर में अपडेट होते रहते हैं. ऐसे में जब कोई लावारिस हालत में बच्चा मिलता है तो उसकी तस्वीर को भी इस सॉफ्टवेयर में अपलोड किया जाता है.
24 घंटे के भीतर यह सॉफ्टवेयर मिलने वाले बच्चे की तस्वीर का मिलान अपने रिकॉर्ड में मौजूद तस्वीर से करता है. अगर इस बच्चे का चेहरा लापता हुए किसी बच्चे से मेल खाता है तो वह तुरंत इसकी जानकारी देता है. पुलिस इसकी मदद से रिकॉर्ड का सत्यापन करती है और अगर मिलान हो जाता है तो बच्चा परिजनों को सौंप दिया जाता है.