नई दिल्ली: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने पशुओं के शवों के निपटान के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. जिसमें बताया गया कि मृत पशुओं के निपटान की संगठित और वैज्ञानिक प्रणाली न होना एक 'प्रमुख पर्यावरणीय खतरा' बन गया है.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने दिशा-निर्देश में कहा कि भारत में लगभग 25 मिलियन मवेशी हैं. जिनमें भैंस भी शामिल हैं. दिशा-निर्देश में कहा गया कि हर साल हजारों मवेशी गांवों और नगरपालिका क्षेत्रों में प्राकृतिक कारणों से मर जाते हैं. हालांकि, शवों के निपटान के लिए कोई संगठित प्रणाली नहीं है, जो एक प्रमुख पर्यावरण खतरा बन गया है.
बोर्ड ने शवों के निपटान के दिशा-निर्देशों के लिए सुझाव भी मांगे हैं. जिन्हें बाद में कार्यान्वयन के लिए जारी किया जाएगा. सुझाव प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि 15 नवंबर है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के शवों के निपटान के लिए दिशानिर्देश में मृत पशुओं में, औसतन 30 प्रतिशत मवेशी, 20 प्रतिशत भैंस, 46 प्रतिशत बकरियां और 50 प्रतिशत भेड़ों का भी ध्यान रखा गया है.
खुले में छोड़ने से होता है वायु प्रदूषण
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने दिशानिर्देश में कहा कि ज्यादातर मामलों में खाल चमड़े के लिए हटा दी जा सकती है, शेष शव को खुले में डाल दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप आसपास के वातावरण में अत्यधिक बदबू आती है. इसमें आगे कहा गया है कि इससे गिद्ध और कुत्ते पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं और स्वास्थ्य को खतरा पैदा कर रहे हैं. कचरे और शवों के निपटान की खुली डंपिंग पक्षियों को आकर्षित करती है, जिससे हवाई दुर्घटनाएं हो सकती हैं.