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विशेष लेख : भारत में कोरोना संकट और प्रवासी मजदूर

कोरोना वायरस के कारण भारत में 21 दिन के लॉकडाउन की अचानक घोषणा के कई जोखिमों में से एक है, देश में लाखों प्रवासी श्रमिकों की दृश्यता है, जो एक उप-मानव अस्तित्व में रहते हैं. वह अपने परिवार के साथ या अकेले प्रवास करते हैं. महिलाओं ने कृषि श्रमिकों के रूप में विभिन्न राज्यों की यात्रा की. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Apr 2, 2020, 10:58 PM IST

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोरोना वायरस के कारण 21 दिन के लॉकडाउन की अचानक घोषणा के कई जोखिमों में से एक है, देश में लाखों प्रवासी श्रमिकों की दृश्यता है, जो एक उप-मानव अस्तित्व में रहते हैं. वह ईंट भट्टों, निर्माण स्थलों पर श्रमिकों के रूप में मुश्किल से अपना जीवन बसर करते हैं और बंधुआ मजदूरों के रूप मे बंदरगाहों, कारखानों, मिलों पर सिर पर भार उठाकर और कृषि मजदूरों के तौर पर काम कर रहे हैं.

वह अपने परिवार के साथ या अकेले प्रवास करते हैं. महिलाओं ने कृषि श्रमिकों के रूप में विभिन्न राज्यों की यात्रा की. इस तरह के अधिकांश श्रमिक बिहार, झारखंड, ओडिशा और पूर्वी उत्तर प्रदेश से हैं, जो एक समृद्ध और नए भारत के निर्माण में अपने श्रम का योगदान दे रहे हैं. उनकी कोई पहचान नहीं है, वे हाशिये पर हैं और राज्य के अस्तित्व के बगैर अपना जीवन गुजारते हैं.

टेलीविजन, सोशल मीडिया और अखबारों में लॉकडाउन के बाद की दिल दहलाने वाली तस्वीरें दिखाती हैं कि कैसे उन्हें अपने घरों की सुरक्षा के लिए मीलों पैदल चलने के लिए धकेला जा रहा है. इसने राष्ट्र में कुछ मानव कल्याण का काम करने वाले व्यक्तियों, गैर-सरकारी संगठनों और संस्थानों के विवेक को प्रभावित किया है, जो उन्हें भोजन, आश्रय और नकदी के रूप में सहायता प्रदान कर रहे हैं. कुछ राज्य सरकारों ने भी आखिरकार उनपर ध्यान देना शुरू कर दिया है.

एक जनहित याचिका का जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 21 दिन की तालाबंदी की घोषणा के बाद से ही प्रवासियों के लिए परिवहन और अन्य सुविधाओं की मांग की जा रही है. कोविद 19 वायरस के प्रकोप को लेकर भय और दहशत का माहौल है जो वास्तव में, इस महामारी से भी बड़ा खतरा है. उसने सरकार से शहरों से लेकर भीतरी इलाकों तक प्रवासियों के इस अचानक पलायन की समस्याओं से निपटने के लिए उठाए गए कदमों पर एक रिपोर्ट भी मांगी है.

प्रवासी मजदूर - तेलंगाना सरकार की प्रतिक्रिया
तेलंगाना सरकार ने राज्य में अनुमानित 3.5 लाख प्रवासी श्रमिकों की समस्या को हल करने के लिए कई उपायों की घोषणा की है. इन श्रमिकों में ज्यादातर बिहार, ओडिशा और झारखंड से हैं. मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने उनके द्वारा लिए गए उपायों पर चर्चा करने के लिए प्रेस से मुलाकात की और प्रवासी श्रमिकों को आश्वस्त करने के लिए हिंदी में भी बात की.

उन्होंने कहा, 'तेलंगाना के मुख्यमंत्री के रूप में मैं आपको बता रहा हूं कि चाहे कितने करोड़ रुपये खर्च करने की जरूरत है. हम पीछे नहीं हटेंगे. हम पैसे की व्यवस्था करेंगे. आप आराम से रहें. किसी भी कीमत पर तेलंगाना में किसी को भी भूखा नहीं रहने देंगे.'

उन्होंने श्रमिकों से गुहार लगाई और कहा, 'अपने वतन (राज्य) जाने के लिए उतावले हो कर तेलंगाना न छोड़ें ! आप तेलंगाना राज्य के विकास का काम करने आए हैं इसलिए हम आपको अपने परिवार का सदस्य ही समझते हैं. आप किसी बात की फ़िक्र न करें, हम आपका पूरा ख्याल रखेंगे!'

30 मार्च को जारी सरकारी आदेश (जीओ) ने मुख्यमंत्री की भावनाओं को प्रतिबिंबित किया कि सभी प्रवासी श्रमिक तेलंगाना के विकास में भागीदार हैं और उन्हें हर संभव तरीके से तत्काल आधार पर समर्थन देने की सख्त आवश्यकता है. मुख्यमंत्री के आदेशों के तहत, सभी प्रवासी श्रमिकों को प्रत्येक व्यक्ति को 500 रुपए के अलावा प्रति व्यक्ति 12 किलोग्राम चावल (या प्रति सिर 12 किलोग्राम आटा) प्रदान किया जाएगा.

राज्य ने इसके लिए तत्काल 29.96 रुपए करोड़ की घोषणा कर दी. ये आदेश उन सभी प्रवासी श्रमिकों पर भी लागू होंगे जिनके पास तेलंगाना सरकार द्वारा जारी किए गए खाद्य सुरक्षा कार्ड नहीं हैं. जिला कलेक्टरों को यह भी निर्देशित किया गया है कि यदि प्रवासी कामगारों की रसोई तक पहुंच न हो तो उन्हें पका हुआ भोजन और अन्य बुनियादी सुविधाएं जैसे कि आश्रय, पानी, चिकित्सा देखभाल आदि मुहय्या कराया जाए.

मुख्यमंत्री द्वारा राज्य में प्रवासी श्रमिकों की संख्या को कम करके आंका जा सकता है. यह आशा की जाती है कि घोषित उपाय सभी प्रवासियों के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे, भले ही उनकी वास्तविक संख्या काफी अधिक हो. निस्संदेह, यह आज देश में प्रवासी श्रमिकों के लिए सबसे ठोस आउटरीच कार्यक्रमों में से एक है. प्रवासी श्रमिकों के कल्याण का वादा हर कीमत पर किया जा रहा है.

यह पहले से ही समाचार पत्रों में प्रगट हो चूका है कि कुछ स्थानीय सरकारें और ग्राम पंचायतें वास्तव में सभी श्रमिकों को 12 किलो चावल और रु 500 दान दे रही हैं. हालांकि, यह महत्वपूर्ण होगा कि वे चावल मिलों को चलते रखें क्यों कि एक सप्ताह या 10 दिनों में तैयार होने वाली फसल की कटाई का समय आ रहा है.

किसानों के प्रति सरकार का प्रतिभाव
मुख्यमंत्री ने किसानों को लॉकडाउन की असाधारण परिस्थितियों में सहायता और रियायतें भी दीं. तेलंगाना के नए राज्य के गठन के बाद सिंचाई में किए गए भारी निवेश के कारण, फसल के लिए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 1.05 करोड़ टन धान की बंपर फसल होगी. रबी की फसलें 50 लाख एकड़ में उगाई गईं. धान की खेती 40 लाख एकड़ में की गई थी, जो एक रिकॉर्ड है. सरकार ने पहले से ही आवश्यक हार्वेस्टर मशीनों की संख्या का अनुमान तैयार कर लिया है और अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे शहरों से ट्रैक्टर में लगनेवाले हार्वेस्टर जुटाएं और कटाई के लिए खेतों में ले जाएं. कमी को दूर करने के लिए तमिलनाडु से 1500 हार्वेस्टर लाने की भी योजना है.

एक प्रेस वार्ता में मुख्यमंत्री केसीआर ने कहा कि चूंकि बाजार गिर गया है, इसलिए यह सरकार किसानों को बचाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सभी अनाज खरीदने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने अपने संबोधन में कहा, 'सरकार आपकी उपज की खरीद आपके संबंधित गांवों से करेगी. कृषि विभाग किसानों को कूपन जारी करेगा, और तदनुसार, सरकारी अधिकारी निर्धारित तिथि और समय पर खाद्यान्न की खरीद करेंगे.

खरीद की यह प्रक्रिया अप्रैल के पहले सप्ताह से शुरू होकर मई के मध्य तक चलेगी. जहां तक भुगतान का सवाल है, कोई समस्या नहीं होगी. अगर किसान अपनी पासबुक और खाता संख्या पेश करता है, तो पैसा सीधे उसके खाते में जमा किया जाएगा. इस संबंध में नागरिक आपूर्ति निगम को 30,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. मुख्य मंत्री ने यह भी कहा कि शहरों में बाजार बंद रहेंगे और गांवों में सभी सामाजिक दिशा-निर्देशों और अन्य सावधानियों का पालन करते हुए पूरी खरीद होगी. उन्होंने ग्रामीणों से आग्रह किया कि वे अपने गांवों की सड़कों पर बैरिकेड लगाकर ट्रकों की आवाजाही को बाधित न करें.

सरकार ने यह भी अनुमान लगाया कि धान की खरीद के लिए उसे 70 लाख बोरियों की जरूरत होगी. राज्य में केवल 35 लाख बोरियां हैं और कोलकाता में बोरी निर्माताओं ने लॉकडाउन के कारण अपने कारखाने बंद कर दिए हैं क्योंकि वहां राज्य एक चुनौती का सामना कर रहा है और विकल्पों की तलाश कर रहा है. मुख्य मंत्री ने संकेत दिया कि इस संबंध में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से संपर्क किया जाएगा.

बिहार के प्रवासी मजदूर और कृषि संकट
तेलंगाना में सैकड़ों चावल मिलें पूरी तरह से बिहारी प्रवासी कार्यबल पर निर्भर हैं, क्यों कि 95% चावल मिल मजदूर वे ही हैं. वे चावल के ट्रकों को लोड और अनलोड करते हैं. कई लोग 'होली' के लिए वापस बिहार चले गए थे और अब बंद के कारण वहां फंसे हुए हैं. उनके बगैर चावल का अर्थतंत्र पूरी तरह से ढह सकता है.

हार्वेस्टर की व्यवस्था की जा सकती है, न्यूनतम समर्थन खरीद मूल्य दिया जा सकता है, बोरियां उपलब्ध हो सकती हैं लेकिन सब कुछ ठप्प हो सकता है अगर लाखों प्रवासी मजदूर नहीं हों जो ट्रकों पर गांवों से लेकर चावल की मिलों तक और चावल की मिलों से लेकर गोदामों तक अपने सर पर माल न उठायें.

तेलंगाना को बिहारी प्रवासी मजदूरों की सख्त जरूरत है. यह मुख्यमंत्री के बयान से परिलक्षित होता है कि उनके मुख्य सचिव अपने बिहार के समकक्ष से बात करेंगे ताकि श्रमिकों की वापसी का अनुरोध किया जा सके. यदि आवश्यक हो, तो वह बिहारी प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने के लिए कुछ विशेष ट्रेनों की व्यवस्था करने के लिए केंद्र से बात करेंगे ! इसलिए एक कोरोना संकट हमें बताता है कि हमारे जीवन में प्रवासी मजदूरों का कितना महत्त्व है. यह बताता है कि हमारी अर्थव्यवस्था में हमारी भलाई, आराम और सुरक्षा उनके अभूतपूर्व योगदान पर निर्भर करती है. कोई भी सरकार उस मुर्गी को मारने का जोखिम नहीं उठा सकती जो सुनहरे अंडे देती है.

भोजन, आश्रय और देखभाल दिए जाने के बाद भी, उन्हें लुभाने की कोशिश की जाती है, ताकि वे बिना सवाल किए उत्पादन करते रहें. अब भी उन्हें नागरिक अधिकारों का पात्र नहीं माना जाता, बल्कि वे केवल लाभार्थी के रूप में राज्य कल्याण और दान पर निर्भर है. राज्य हमें यह विश्वास दिलाना जारी रखेगा कि प्रवासी श्रमिकों को हमारी आवश्यकता है लेकिन कभी यह नहीं बताएगा कि हम सभी एक दुसरे पर आश्रित और समान नागरिक हैं.

(लेखक - शांता सिन्हा)

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