हैदराबाद : तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में एक कारोना पॉजिटिव व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होने पर एक कॉर्पोरेट अस्पताल में भर्ती कराया गया. दो दिनों के आईसीयू में उपचार के बाद, उनकी स्थिति में सुधार हो गया जिसके बाद उन्हें एक साधारण कमरे में शिफ्ट कर दिया गया. 14 दिनों तक इलाज के बाद उनसे 18.22 लाख रुपये वसूले गए. मरीज पहले ही 10 लाख रुपये का भुगतान अस्पताल को कर चुका था. जिसके बाद उसने बचे हुए पैसों से भुगतान करने के लिए कर्ज लिया.
हैदराबाद में कुछ मरीजों के परिवार ने भी निजी और कॉर्पोरेट अस्पतालों के खिलाफ शिकायतें की हैं. उनकी शिकायतें हैं कि नकद भुगतान होने पर ही अस्पताल में प्रवेश दिया जा रहा है. नकद भुगतान नहीं होने और अपातकाल स्थिति होने पर मरीज को वापस कर दिया जा रहा है. भले ही उसका निजी बीमा हो, लेकिन नकद भुगतान के बाद ही कॉरपोरेट अस्पतालों में बिस्तर दिए जा रहे हैं.
अस्पताल में प्रवेश के समय एक लाख का भुगतान किया जा रहा है. बाद में मरीजों को प्रतिदिन 50,000 रुपये से एक लाख तक भुगतान करना पड़ रहा है. इतने पैसे देने के बाद भी यदि मरीज की मृत्यु हो जाती है तो शेष राशि देने के बाद ही परिवार को शव सौंपा जा रहा है.
सरकार द्वारा शिकायत के लिए जारी हेल्पलाईन नंबर
सरकार ने निजी अस्पतालों में करोना के उपचार में शिकायत करने के लिए '91541-70960' वॉट्सएप नंबर जारी किया है. हेल्पलाइन के चिकित्सा अधिकारी बताते हैं कि पहले 11 दिनों में ही 1,000 से अधिक शिकायतें मिली हैं. उनमें से ज्यादातर अस्पतालों में वसूले जा रहे बिल से संबंधित हैं. शिकायतकर्ताओं ने अधिक बिल को लेकर निराजगी जताई है, उन्हें इतना ज्यादा बिल भरने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है.
तेलंगाना सरकार ने कुछ दिन पहले ही अस्पतालों में बड़ी संख्या में बिस्तर खाली होने की सूचना दी थी. कहा गया था कि कोरोना से संक्रमित मध्यम वर्ग भी निजी अस्पतालों का सहारा ले सकते हैं. लेकिन अस्पतालों में बेड और उपकरणों की कमी बताई जा रही है. वहीं मरीजों से मनमानी पैसा वसूला जा रहा है और मजबूरी में उन्हें बिल का भुगतान करना पड़ रहा है.
शहर के कुछ निजी अस्पतालों में मरीज को भर्ती कराने से पहले एक लाख रुपये की मांग की जा रही है और सभी निजी अस्पताल सिर्फ कैश के रूप में भुगतान स्वीकार कर रहे हैं.
तेलंगाना सरकार द्वारा की गई घोषणा
- सरकार ने निजी अस्पतालों में कोरोना उपचार के लिए तीन भागों में शुल्क बांटा है.
- आइसोलेशन में प्रतिदिन 4,000 रुपये, आईसीयू के 700 रुपये, वेंटीलेटर के साथ आईसीयू में इलाज के लिए 9000 रुपये लेने के निर्देश दिए गए हैं. इसमें रक्त परीक्षण, मूत्र परीक्षण, ईसीजी, टूडी ईको, एक्स-रे, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, सी आदि सामान्य दवाएं भी शामिल हैं.
- कुछ महंगी दवाओं, महंगे नैदानिक परीक्षणों, पीपीई किट, एन 95 मास्क के लिए छूट दी गई थी.
- सरकार ने कहा था कि 31 दिसंबर 2019 तक अस्पताल में लागू डायग्नोस्टिक टेस्ट का शुल्क ही लिया जाएगा.
- कोरोना परीक्षण के लिए निजी लैब में 2,200 रुपये और घर से परीक्षण कराने पर 2,800 रुपये निर्धारित किए गए हैं.
हालांकि, अधिकांश अस्पतालों में इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. यहां तक कि ऑइसोलेशन वार्ड में रखने पर भी मरीजों से लाखों में बिल चार्ज किया जा रहा है. मरीजों की शिकायत है कि बिल के साथ इलाज में भी कोई पारदर्शिता नहीं है.
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सरकार को मिली कुछ शिकायतें
- निजी अस्पताल ईसीआईएल में एक मरीज को भर्ती करने से पहले एक लाख रुपये का भुगतान करने के लिए कहा गया था. चार दिनों के उपचार के बाद मरीज की मृत्यु हो गई, लेकिन अस्पताल ने शव सौंपने से पहले चार लाख रुपये की मांग की. जिसके बाद मृतक के परिजनों को पूरी राशि देनी पड़ी. चिकित्सा विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इस अस्पताल में कोरोना मरीजों के इलाज की अनुमति नहीं है.
- कुकटपल्ली में एक व्यक्ति किडनी की समस्या के कारण एक अस्पताल में डायलिसिस करवा रहा था. इस बीच उसका कोरोना परीक्षण किया गया, जिसमें रिपोर्ट पॉजिटिव आई. उसे रात 12.30 बजे दूसरे वार्ड में भर्ती कराना पड़ा. ठीक होने के बाद उसे सुबह छुट्टी दे दी गई. मरीज को न तो कोई टैबलट दिया गया और न ही इंजेक्शन. अस्पताल में सिर्फ छह घंटे रहने के लिए उसे 80,000 रुपये का बिल थमा दिया गया. जब उसने ज्यादा बिल को लेकर पूछताछ की तो चिकित्सा अधिकारी ने अपमानजनक भाषा में चिल्लाया और गलत व्यवहार किया.
- बंजारा हिल्स स्थित एक कॉर्पोरेट अस्पताल में एक व्यक्ति ने पहले हार्ट वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी करवाई थी, बाद में उसमें कोरोना के लक्षण दिखाई दिए. वह गाचीबाउली में एक दूसरे कॉर्पोरेट अस्पताल में गया. जिसका कोरोना परीक्षण नेगेटिव आया. उस अस्पताल में एक दिन के लिए उनसे 70,000 रुपये का बिल लिया गया.
- कारोना का एक मरीज कई अस्पतालों के चक्कर लगाता रहा है. अंत में उसे सोमाजीगुडा के एक अस्पताल में आइसोलेट किया गया. अस्पताल में भर्ती करने से पहले उससे तीन लाख रुपये की राशि जमा कराई गई.
- सिकंदराबाद स्थित एक कॉर्पोरेट अस्पताल में एक मरीज 18 दिनों तक भर्ती रहा और उसे 20 लाख रुपये का बिल थमा दिया गया.
- एक मरीज के बिल में एआरआई के 24,000 रुपये और पीपीई किट के 15,000 रुपये शुल्क शामिल थे. वहीं, डॉक्टर की फीस 2 लाख 32 हजार रुपये थी. इसके साथ ही दवाओं का खर्च 5.23 लाख रुपये था.