हैदराबाद : 2011 में हुई जनगणना के अनुसार भारत की आबादी 121 करोड़ है. इसमें से दो करोड़ 68 लाख लोग दिव्यांग हैं, हालांकि उनके मदद की सीमाएं बहुत सीमित हैं. केंद्र के साथ राज्य सरकारों ने भी पिछले कुछ दिनों में दिव्यांग लोगों की सहायता के लिए कुछ योजनाओं की घोषणा की हैं, लेकिन यह सभी लाभ उन तक नहीं पहुंच रहे हैं. देश के लगभग दो-तिहाई दिव्यांग बेरोजगार हैं और जो कार्यरत हैं, वह असंगठित क्षेत्र में हैं. बड़ी संख्या में दिव्यांग बेघर, ठेका मजदूर, प्रवासी श्रमिक और भिखारी हैं. सरकारी दिशानिर्देश उनकी चिंताओं को दूर नहीं करते हैं. इसके अलावा केंद्र ने राज्यों को अपने घर पर विकलांगों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया है और यह सुनिश्चित किया है कि उनके देखभालकर्ता उन्हें निर्बाध सेवाएं प्रदान करें.
दिव्यांगों के लिए बाधाएं
दिव्यांगों के लिए पहली सबसे बड़ी बाधा संचार है. दृष्टि, बधिर और अन्य दिव्यांगों के लिए जानकारी प्राप्त करना अधिक कठिन हो सकता है, क्योंकि लोकप्रिय समाचार स्रोत उनके लिए सुलभ नहीं हो सकते हैं. खासकर तब जब सूचनाएं तेजी से बदल रही हों.
उनके लिए दूसरे अवरोध में अनुशंसित सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों को अपनाना शामिल है, जैसे कि सोशल डिस्टेसिंग और हाथ धोना. उदाहरण के लिए, कुछ प्रकार के शारीरिक दिव्यांगों के लिए लगातार हाथ धोना संभव नहीं है.
कोरोना वायरस की वजह से उनके लिए स्वास्थ सेवाएं एक लंबे समय के लिए बदतर हो गई हैं, क्योंकि चिकित्सा संस्थानों की पहली प्राथमिकता अब कोरोना वायरस के मरीज हो गए हैं. उदाहरण के लिए देखा जाए तो यदि आप राज्य की गतिशीलता सेवाओं पर भरोसा करते हैं, तो ड्राइव-अप परीक्षण असंभव हो सकता है. स्वास्थ्य देखभाल समायोजन में मौजूदा बाधाएं भी बढ़ गई हैं, क्योंकि उद्योगों का उद्देश्य कोरोना मामलों की आवश्यकाओं को पूरा करना है.
2011 की जनगणना के अनुसार देश में सात प्रकार की दिव्यांग थे, जो कि 2016 के दिव्यांग अधिनियम के अनुसार बढ़कर 21 हो गए. इसलिए अधिकांश दिव्यांग सरकार के लक्ष्यों से बाहर हो जाएंगे.
इसके अतिरिक्त चिकित्सा संसाधनों का आवंटन एक चिंता का विषय है. डर है कि वेंटिलेटर सहित चिकित्सा संसाधनों के आवंटन में दिव्यांग रोगियों के साथ भेदभाव हो सकता है. पहले ही राशन नीतियों के बारे में कई राज्यों में शिकायत दर्ज की गई है.
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समाज में इनके प्रति अंतर्निहित गलत भावना फैली हुई है कि दिव्यांग लोगों के जीवन की उच्च गुणवत्ता नहीं हो सकती है और इसलिए दिव्यांग लोगों के जीवन को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है.
दिव्यागों के लिए उठाए गए कदम
27 मार्च को भारत सरकार ने दिव्यागों के लिए तीन माह तक पेंशन देने के लिए कहा था. नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम (एनएसएपी) के तहत शुरू की गई, इस पहल में 79 साल की उम्र तक दिव्यांगों के लिए 300 रुपये प्रति माह और जिनकी उम्र 80 साल और उससे अधिक उम्र वालों के लिए 500 रुपये शामिल है. इसके अलावा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो किस्तों में आवंटित किए जाने के कारण अगले तीन महीनों में दिव्यांगों को 1,000 रुपये अनुग्रह राशि के रूप में देने की घोषणा की, हालांकि यह राहत चांदी के परत के सामान है. जिसे प्राप्त करने की प्रकिया जटिल है.
बता दें कि हाल ही में दिव्यागों के सशक्तिकरण विभाग (जीओआई) ने कोरोना महामारी के दौरान दिव्यांगों को सुरक्षित करने के लिए कुछ 'दिव्यांगता-समावेशी दिशानिर्देश' जारी किए हैं. इसके भाग के रूप में अतिरिक्त सहायता प्रदान करने के लिए दिव्यांगों के लिए एक आयुक्त को नोडल अधिकारी के रूप में नामित किया गया था, हालांकि उन्हें या तो नियुक्त नहीं किया गया था, या फिर अनुत्तरदायित्व के लिए बाहर कर दिया.
कर्नाटक ने लोगों में जागरूकता फैलाने के इरादे से स्वच्छता और सामाजिक दूर करने के तरीकों के बारे में वीडियो का एक सेट बनाया है. इसने क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ सांकेतिक भाषा में भी चीजों का अनुवाद सुनिश्चित किया गया है.