नई दिल्ली : मृत्युदंड को अंतिम स्तर पर पहुंचाने को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए उच्चतम न्यायालय ने गुरूवार को कहा कि दोषियों को यह धारणा नहीं रखनी चाहिए कि मृत्युदंड के मामले में वह किसी भी वक्त उसे चुनौती दे सकते हैं.
दिल्ली में 2012 में घटे निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड में मौत की सजा पाए चार दोषियों द्वारा एक बाद एक याचिकाएं दाखिल करने और उनकी फांसी में विलंब होने की पृष्ठभूमि में अदालत ने कहा कि इसे कानून के अनुसार करना होगा और न्यायाधीशों का भी समाज तथा पीड़ितों के प्रति कर्तव्य है.
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के जुर्म में मौत की सजा पाने वाली महिला और उसके प्रेमी की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणियां कीं.
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में 2008 में घटी इस सनसनीखेज वारदात में महिला ने प्रेमी के साथ मिलकर अपने माता-पिता, दो भाइयों, उनकी पत्नियों और 10 महीने के भांजे की गला घोंटकर हत्या कर दी थी.
पीठ ने दोनों दोषियों को मौत की सजा सुनाए जाने के 2015 के अपने फैसले के खिलाफ उनकी पुनर्विचार याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा.
पीठ ने कहा, 'कोई किसी चीज के लिए अनवरत नहीं लड़ता रह सकता.'