नई दिल्ली: नई शिक्षा नीति (एनईपी) के उस मसौदे पर विवाद जारी है, जिसमें क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी पढ़ाने जाने की वकालत की गई है. गैर हिन्दी भाषी राज्यों ने इस पर आपत्ति जताई है. विवाद बढ़ने के बाद केन्द्र सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों ने तुरंत सफाई दी है. उनका कहना है कि यह अभी ड्राफ्ट स्टेज में है. सरकार ने कहा है कि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी. यह छात्रों की मर्जी पर निर्भर करेगा.
इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतरमन और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर सरकार का पक्ष रखा. दोनों मंत्री तमिलनाडु से आते हैं.
निर्मला सीतारमन ने ट्वीट किया, 'जनता की राय सुनने के बाद ही ड्राफ्ट नीति लागू की जाएगी. मोदी सरकार ने सभी भारतीय भाषाओं को पोषित करने के लिए ही एक भारत, श्रेष्ठ भारत योजना लागू की थी. केंद्र सरकार तमिल भाषा के सम्मान और विकास के लिए हमेशा प्रयासरत है. यह समर्थन जारी रहेगा.
निर्मला सीतारमन ने किया ट्वीट ड्राफ्ट को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंजन के नेतृत्व में तैयार किया है. इसमें कहा गया है कि भारत जैसे बहुभाषी देश में तीन भाषाओं के सीखने से बच्चों में संचार क्षमता का विकास होगा. एनईपी के अनुसार तीसरी क्लास तक अपनी मातृभाषा में लिखने और पढ़ने के बाद दो अन्य भारतीय भाषाओं को सीखा जा सकता है. ड्राफ्ट में कहा गया है कि शुरुआती स्तर पर बच्चों में भाषा को जल्दी सिखाया जा सकता है. अपनी मातृभाषा के साथ हिन्दी और अंग्रेजी सीखी जा सकती है. दक्षिण के राज्यों ने इसकी का विरोध किया है. उनका कहना है कि हम दो भाषाओं की नीति को ही जारी रखेंगे. स्थानीय और अंग्रेजी. सबसे ज्यादा विरोध तमिलनाडु और बंगाल की ओर से किया जा रहा है.
पिछली मोदी सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे जावड़ेकर द्वारा गठित समिति की ओर से प्रस्तावित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाने का सुझाव दिया गया था.
जावड़ेकर ने कहा, "समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है. मसौदा तैयार किया जा चुका है लेकिन सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है. मसौदे पर प्रतिक्रिया मिलने के बाद ही हम कोई निर्णय लेंगे."
तमिलनाडु में द्रमुक सहित विभिन्न राजनीतिक दलों ने मसौदे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रस्तावित तीन भाषा फार्मूले का कड़ा विरोध किया है. उन्होंने इसे ठंडे बस्ते में डालने की मांग करते हुए दावा किया कि यह हिन्दी को ‘थोपने’ के समान है.
जावड़ेकर ने कहा, "मोदी सरकार की हमेशा यह नीति रही है कि सभी भाषाओं को विकसित किया जाना चाहिए और किसी पर भी कोई भाषा नहीं थोपी जानी चाहिए. इसके बारे में कोई अनावश्यक चिंता नहीं होनी चाहिए."