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जानें क्या है श्रम कानून और उससे जुड़े विवाद - प्रवासी श्रमिकों से संबंधित कानून

भारत के पास पहले से ही दुनिया की सबसे सस्ती और सबसे शोषित श्रमिक वर्ग है. भारत में कुल औद्योगिक लागतों के अपेक्षाकृत श्रम लागत बेहद कम है. उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2017-18 में, श्रमिकों को मजदूरी समग्र रूप से भारत के लिए कुल लागत की तीन प्रतिशत से भी कम थी. उत्तर प्रदेश में 2.6 प्रतिशत है और गुजरात में और मध्य प्रदेश में केवल दो प्रतिशत है.

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प्रतीकात्मक चित्र

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Published : May 13, 2020, 1:30 PM IST

हैदराबाद : उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात ने श्रम कानूनों में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं. इसके साथ पंजाब, राजस्थान और ओडिशा ने भी अधिकारों में परिवर्तन किया है. गुजरात सरकार की अधिसूचना के अनुसार 72 घंटे की साप्ताहिक सीमा को बढ़ाकर कारखानों में रोज काम के घंटे 12 कर दिया है.

हो सकता है सरकारों ने ठीक इरादे के साथ मानदंडों में ढील दी हो, लेकिन पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए, कंपनियां इस हथियार का इस्तेमाल शोषण करने के लिए कर सकती हैं. उत्तर प्रदेश ने एक अध्यादेश लाया, जिसमें कहा गया कि अगले तीन वर्षों तक राज्य में केवल कुछ ही श्रम कानून लागू होंगे. वो है :

भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996, कर्मकार क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 तथा मजदूरी भुगतान अधिनियम, श्रम कानून 1936 की धारा पांच, जोकि समय पर मजदूरी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करती है.

श्रम कानून संविधान के समवर्ती सूची में हैं, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों एक ही विषय पर कानून बनाते हैं. परिणाम है 45 केंद्रीय श्रम कानून और 200 से अधिक राज्य-स्तरीय श्रम कानून लागू हैं. यदि कोई राज्य कानून नहीं लागू कर पाता है तो केंद्रीय कानून लागू हो जाएगा.

श्रम कानूनों चार श्रेणियों में विभाजित :

  • श्रमिकों के मजदूरी के लिए शर्तें
  • पारिश्रमिक और भुगतान
  • सामाजिक सुरक्षा
  • रोजगार सुरक्षा और औद्योगिक संबंध

कुछ प्रमुख कानूनों का संक्षिप्त उदाहरण :

कारखाना परिसर में सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने और श्रमिकों के स्वास्थ्य और कल्याण पर ध्यान देना. दुकानों और प्रतिष्ठानों में काम के घंटे, भुगतान, ओवरटाइम, वेतन के साथ साप्ताहिक छुट्टी, वेतन के साथ अन्य अवकाश, वार्षिक अवकाश, बच्चों के रोजगार को विनियमित स्थापित करना है.

महिलाओं का रोजगार

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम किसी भी अन्य श्रम कानून की तुलना में अधिक श्रमिकों पर प्रभावी है.

औद्योगिक विवाद, 1947 संस्थानों में छंटनी और औद्योगिक उद्यमों के हड़ताल या लेआउट के रूप में सेवा की शर्तों से संबंधित है.

मजदूरों का डर

देश में अधिकांश श्रमिक असंगठित क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. इस क्षेत्र में अधिकतर लंबे समय तक काम करना, सुरक्षा की कमी, महिलाओं का खराब इलाज, टॉयलेट की कमी आदि से जुझते है. भारत के पचास करोड़ श्रमिक असंगठित क्षेत्र में हैं, जो श्रम कानूनों, न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा की कोई जानकारी नहीं रखते है.

यदि श्रम कानूनों के निलंबन को लागू किया जाता है तो इसका मतलब होगा :

कार्यस्थल में स्वच्छंदता, श्रमिकों के लिए शौचालय, कार्य दिवस में आवधिक विराम, बैठने की क्षमता, साप्ताहिक अवकाश, कार्यदिवस के दौरान भोजन के लिए प्रावधान, जो अब प्रति सप्ताह 72 घंटे तक कार्यावधि हैं. इसके अतिरिक्त श्रम कानूनों में बच्चों और महिलाओं से संबंधित प्रावधान स्पष्ट रूप से जारी रहेंगे, लेकिन अन्य सभी श्रम कानून अब संचालित नहीं होंगे.

यह मजदूरों की सुरक्षा को काफी हद तक प्रभावित करेगा. इसमें व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों की स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, औद्योगिक विवादों को निपटाने से संबंधित कानून, ट्रेड यूनियन, ठेका मजदूरों और प्रवासी श्रमिकों से संबंधित कानून शामिल हैं.

कारखानों में बुनियादी सुरक्षा मानदंडों का पालन करने के लिए, काम की न्यूनतम स्थितियों को सुनिश्चित करने के लिए, औद्योगिक दुर्घटनाओं के लिए श्रमिकों को क्षतिपूर्ति करने के लिए नियोक्ताओं की आवश्यकता रहेगी. जब स्थितियां पूरी तरह से असंभव और अमानवीय हो जाती हैं तो श्रमिक उन्हें सुधारने के लिए संगठित नहीं हो सकते हैं. ट्रेड यूनियन गतिविधि और संगठित करने का अधिकार भी सीमित है.

भारत के पास पहले से ही दुनिया की सबसे सस्ती और सबसे शोषित श्रमिक वर्ग है. भारत में कुल औद्योगिक लागतों के अपेक्षाकृत श्रम लागत बेहद कम है. उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2017-18 में, श्रमिकों को मजदूरी समग्र रूप से भारत के लिए कुल लागत की तीन प्रतिशत से भी कम थी. उत्तर प्रदेश में 2.6 प्रतिशत है और गुजरात में और मध्य प्रदेश में केवल दो प्रतिशत है.

क्या यह बदलाव विदेशी निवेश और चीन की स्थिति को आकर्षित करेगा :

इन असाधारण कठोर श्रमिक विरोधी उपायों का उद्देश्य स्पष्ट रूप से राज्यों में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए है. इस गलत धारणा में कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने जो पहले चीन को चुना था वे भारत में महामारी के बाद भारत में स्थानांतरित हो जाएंगी. अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां निवेश के लिए कई मानकों के आधार पर निर्णय लेती है: सभ्य बुनियादी ढांचा, कुशल लॉजिस्टिक, चालू घरेलू बाजार, पारदर्शी आधिकारिक प्रक्रिया.

वे एक स्वस्थ, शिक्षित, उत्पादक कार्यबल को भी प्राथमिकता देते हैं.

हालांकि इसके पहले राजस्थान, आंध्र प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश ने श्रम कानूनों में बदलाव किया था, ताकि श्रम बाजार को लचीला बनाया जाए. हालांकि यह संशोधन बड़े निवेश, औद्योगीकरण को बढ़ावा देना या नौकरी के निर्माण में सफल नहीं हो पाए.

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