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ई-कॉमर्स उपभोक्ताओं के लिए राहत बनकर आया है यह नया कानून

देश की आबादी का एक चौथाई हिस्सा ऑनलाइन खरीददारी कर रहा है, लेकिन इन खरीदारियों से जुड़े विवाद होने की स्थिति में उनका समाधान करने के लिए कोई व्यवस्था या नियमों का ढांचा नहीं है. हाल ही में केंद्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण कानून में सुधार किया है और कई नए ई-कॉमर्स नियमों की अधिसूचना जारी की है. अब से ई-कॉमर्स नियम उपभोक्ता संरक्षण कानून, 2019 का एक हिस्सा हैं. . यह कानून ई-कॉमर्स उपभोक्ता को काफी राहत देगा.

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Published : Aug 6, 2020, 5:44 PM IST

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हैदराबाद : दूर-दराज बैठा आदमी भी अपनी पसंद के उत्पादों को खरीदने से अब सिर्फ एक क्लिक दूर है. इसके लिए ई-कॉमर्स को धन्यवाद. वास्तव में भारत में ई-कॉमर्स का बाजार सबसे तेजी से बढ़ रहा है. आकर्षक छूट, ऑफर और कैशबैक आदि ई-स्टोर की सफलता में योगदान करने वाले कुछ प्रमुख कारक हैं.

देश की आबादी का एक चौथाई हिस्सा ऑनलाइन खरीददारी कर रहा है, लेकिन इन खरीदारियों से जुड़े विवाद होने की स्थिति में उनका समाधान करने के लिए कोई व्यवस्था या नियमों का ढांचा नहीं है.

हाल ही में केंद्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण कानून में सुधार किया है और कई नए ई-कॉमर्स नियमों की अधिसूचना जारी की है. अब से ई-कॉमर्स नियम उपभोक्ता संरक्षण कानून, 2019 का एक हिस्सा हैं. पिछले साल छह अगस्त को संसद से एक नए उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019 को मंजूरी मिली और यह कानून बनने के बाद 27 जुलाई 2020 से लागू हो गया है. यह कानून ई-कॉमर्स उपभोक्ता के लिए एक राहत के रूप में आया है.

खुदरा क्षेत्र की दिग्गज ऑनलाइन कंपनी अमेजन व ऐसी अन्य कंपनियों का भारत में ही हजारों करोड़ रुपये का कारोबार है. अमेरिका की खुदरा कारोबार की चेन चलाने वाली कंपनी वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट में 81 प्रतिशत हिस्सेदारी लेकर उस पर अपना नियंत्रण हासिल कर लिया है. घरेलू बाजार की बात करें, तो देश में 19 हजार ई-कॉमर्स कंपनियां हैं, लेकिन इनमें से केवल 70 ही पूरी तरह से चल रही हैं. बाजार में इनकी हिस्सेदारी भी बहुत अधिक है. इन डिजिटल स्टोर्स में जूते, कपड़े आदि से लेकर जीवनरक्षक दवाएं तक उपलब्ध हैं.

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वर्ष 2018 में देश में 22.4 करोड़ ई-उपभोक्ता थे. वर्ष 2020 तक यह संख्या बढ़कर 32 करोड़ हो जाने की उम्मीद है. भारत में ई-कॉमर्स व्यवसाय 2017 में 1.97 लाख करोड़ का था, जिसके 2021 तक 6.28 लाख करोड़ का हो जाने का अनुमान है. शुरुआत में ई-कॉमर्स कंपनियां कोई नियम नहीं रहने की वजह से तेजी से फैलीं. यदि सामान नहीं मिला या कोई सामान क्षतिग्रस्त मिला, तो उपभोक्ता कंपनियों से सवाल नहीं कर सकता था. पहले बहुत सारे खरीदारों ने शिकायत की कि आई-फोन की जगह उन्हें साबुनदानी या ईंटें मिलीं और जब उपभोक्ताओं ने नकली या घटिया सामान लौटाए तो ई-कॉमर्स साइट्स ने उन्हें पैसे लौटाने में बहुत अधिक समय लगाया.

नए उपभोक्ता संरक्षण नियमावली- 2020 के तहत ई-कॉमर्स के नियम सभी डिजिटल खुदरा विक्रेताओं पर लागू होंगे, जो भारतीय उपभोक्ताओं के सामान की आपूर्ति करते हैं. नए नियम खरीदारों को सशक्त बनाते हैं. अब किसी भी तरह की धोखाधड़ी व नकली उत्पादों के लिए ई-सेलर्स को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा. खरीद की पुष्टि करने के बाद तब तक कोई रद्दीकरण शुल्क नहीं लगाया जाना चाहिए, जब तक इसी तरह के शुल्क ई-कॉमर्स कंपनी नहीं वहन करती है.

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ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं को सामान लौटाना, सामान बदला, पैसा वापसी, वारंटी और गारंटी, सामान भेजा जाना और उपभोक्ता को सुपुर्दगी, भुगतान का तरीका, शिकायत निवारण तंत्र और किस देश से सामान चला उस मूल देश आदि का विवरण दिखाना होगा.

चीन के सामान पर प्रतिबंध के मौजूदा संदर्भ को देखते हुए यह नियम बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं. केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने राज्य सरकारों से इन नियमों को सख्ती से लागू करने को कहा है. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के पास उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए व्यापक अधिकार हैं. उपभोक्ता अधिकारों से संबंधित मुद्दों को देखने और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को लागू करने के लिए इसका नेतृत्व एक मुख्य आयुक्त करेंगे.

नई नियामक व्यवस्था का स्नैपडील जैसी घरेलू ई-कॉमर्स कंपनियों ने स्वागत किया है, लेकिन एक ई-कॉमर्स फर्म के एक अधिकारी ने कहा कि विक्रेताओं के यह मुश्किल होगी कि वह हर खरीद का विस्तृत ब्यौरा शिकायत अधिकारी को मुहैया कराएं. अभी यह देखना बाकी है कि क्या यह नई ई-कॉमर्स नियमावली डिजिटल एकाधिकार को खत्म कर पाएगी.

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