नई दिल्ली : कृषि कानून को लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस शासित राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जल्द ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं. इतना ही नहीं कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए एक विशेष सत्र को बुलाकर विधेयक पेश करने की राह पर कांग्रेस पार्टी चल रही है.
बता दें कि विपक्षी पार्टियों के विरोध के बावजूद रामनाथ कोविंद ने संसद द्वारा पास किए 3 किसान बिलों को मंजूरी दे दी है.
वहीं पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों से केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कषि कानूनों को दरकिनार करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 254(2) के तहत राज्य कानूनों को पारित करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए कहा था.
हालांकि, छत्तीसगढ़ और पंजाब सरकारें इस मामले में कानूनी रास्ते तलाश रही हैं और जल्द ही इन कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकती हैं.
राजस्थान में एक अध्यादेश लाने की योजना बना रहा है. पुडुचेरी इस संबंध में एक प्रस्ताव ला सकती है.
इन सब विषयों पर ईटीवी भारत से विशेष बातचीत करते हुए, छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रवींद्र चौबे ने कहा कि, 'केंद्र ने कृषि पर कानूनों को लागू किया है जो वास्तव में हमारे संविधान का एक राज्य विषय है. कृषि संविधान की समवर्ती सूची में नहीं है. हम इस विषय को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं. हम वहां के शीर्ष अधिवक्ताओं के संपर्क में हैं.
रवींद्र चौबे ने कहा कि अगर आवश्यकता हुई तो राज्य विधानसभा में इन कानूनों के खिलाफ विधायिका पारित करेगी. उसकी तैयारी चल रही है.
अगला विधानसभा सत्र सर्दियों में आयोजित किया जाएगा. लेकिन अगर आवश्यकता हुई तो पार्टी विशेष सत्र भी बुला सकती है. हम कृषि कानूनों को लागू नहीं होने देंगे.
उन्होंने कहा कि इस कानून के लागू होने से किसानों को नुकसान होगा.
पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अभिषेक मनु सिंघवी और अन्य कांग्रेस के कानूनी दल के सदस्यों ने राज्यों को अपने स्वयं के बिल को लेकर विचार प्राप्त करने के उद्देश्य से विधेयक का मसौदा तैयार किया है.
पंजाब के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि उनकी सरकार जल्द ही केंद्र के कृषि कानूनों को खत्म करने के लिए राज्य विधानसभा का विशेष सत्र आयोजित करेगी.
पिछले हफ्ते, राजस्थान सरकार ने राज्य मंत्रिमंडल की एक बैठक की थी. उस बैठक में कानूनी तरीके लेने और केंद्र के कृषि विधायकों को हटाने के विकल्पों का पता लगाने का निर्णय लिया गया था.
हालांकि, अनुच्छेद 254 (2) के तहत, यदि राज्य विधायिका द्वारा बनाया गया कानून लागू होगा, तो उसे केंद्र की विधायिका को समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति की आवश्यकता होगी.
ईटीवी भारत से बातचीत में पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख सुनील जाखड़ ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस कृषि कानून को खारिज करने के लिए अन्य तरीकों की खोज में जुटी हुई है ताकि किसानों को इन किसान विरोधी काले कानूनों से बचाया जा सके.
उनका मानना है कि राष्ट्रपति इस विषय पर हस्ताक्षर करने से पहले विचार अवश्य करेंगे.
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रवींद्र चौबे कहते हैं मेरा मानना है कि किसी राज्य के संवैधानिक अधिकारों के तहत, अगर हम केंद्र के कानून के कुछ बिंदुओं पर अधिसूचनाएं पारित करेंगे, तो हमें भारत के राष्ट्रपति का आश्वासन लेने की आवश्यकता नहीं होगी.
विपक्ष के विरोध के बावजूद संसद में व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक, 2020 पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता, और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित हुए.
राहुल गांधी ने इन तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा में तीन दिवसीय ट्रेक्टर रैली की और प्रदर्शनकारी किसानों से वादा भी किया था कि उनकी पार्टी विधायकों को निरस्त करेगी. उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार देश के कृषि समुदाय के हितों से समझौता करते हुए बड़े कॉर्पोरेट्स के हाथों में खेल रही है.