हर देश अपने बच्चों को अपनी पूंजी मानता है, और वो उसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. लेकिन, भारत में हालात काफी उलट हैं, वो भी तब जब यहां, नवजात बच्चों की मौत के 27% और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के 21% मामले दर्ज होते हैं. कोटा के दर्दनाक किस्से इन बातों को सच साबित करने के लिए काफी हैं. आज तक, कोटा को मौजूदा लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के लोकसभा क्षेत्र को तौर पर जाना जाता था. लेकिन कोटा में बच्चों की लगातार मौतों ने, इसे नागरिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति सरकारी उदासीनता की मिसाल बना दिया है.
कोटा और उसके आस पास के इलाकों से बड़ी संख्या में बच्चों को कोटा शहर के जेके लोन अस्पताल लाया जाता है. दिसंबर महीने में ही, इस अस्पताल में 100 से ज्यादा नवजात बच्चों की मौत हो जाना अपने आप में परेशान करने वाला है. बढ़ते विरोध के चलते, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीआर) ने इस अस्पताल का दौरा किया. इसके बाद यह बात सामने आई कि इसी अस्पताल में साल 2018 में 940 मौत के मामले पंजीकृत हुए थे.
राज्य सरकार ने इस मसले को हल्का करने के लिये इसकी तुलना में एक और तथ्य रखने की कोशिश की. सरकार का कहना था कि, इससे पहले अस्पताल में सालाना 1,300-1,500 मौतें हो चुकी हैं. और तो और, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो यह तक कह दिया कि ,मौजूदा मौत के आंकड़े सामान्य हैं. लेकिन अगर हर साल यहां हजारों बच्चों की मौत हो रही है, तो सरकार ने अभी तक इस सिलसिले में क्या कदम उठाये हैं? किसी भी पार्टी के राजनेता के पास इस सवाल का जवाब नहीं है.
एनसीपीआर के दौरे के बाद जेके लोन अस्पताल और उसके आस पास के बारे में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. कमीशन ने पाया कि, अस्पताल में मौजूद, वॉर्मर, नेब्यूलाइजर आदि जैसे जरूरी उपकरणों में से 50% से ज़्यादा काम नहीं कर रहे थे. अस्पताल परिसर में सूअरों को खुलेआम घूमते देख कमीशन के सदस्य हैरत में थे. अस्पताल प्रशासन द्वारा इस मामले में गठित कमेटी ने किसी भी कार्यप्रणाली में कमी या संसाधनों की कमी को खारिज कर दिया है. कमेटी ने तो यहां तक कह दिया कि सभी मेडिकल उपकरण पूरी तरह से काम कर रहे हैं. हजारों बच्चों की मौत के बावजूद अस्पताल प्रशासन की साख को बचाने की जल्दी कमेटी की रिपोर्ट में साफ दिख रही है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले का खुद संज्ञान लेते हुए राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया है. आयोग ने कहा कि अगर मीडिया में आ रही रिपोर्ट सही हैं तो, सरकार द्वारा संचालित जेके लोन अस्पताल में बड़े पैमाने पर मानवाधिकार का हनन हुआ है. हालांकि, अस्पताल प्रबंधन ने एक समिति बनाकर मामले को ठंडा करने की कोशिश की है, लेकिन, आयोग मुख्यमंत्री से सफाई से बिना मामले को जाने नहीं देगा. भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की दो तस्वीरें पिछले दिनों बिहार में इंसेफेलाइटिस के हमले और गोरखपुर अस्पताल हादसे के समय सामने आई थीं.
आम लोगों में दिमागी बुखार के तौर पर पहचाने जाने वाले, एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम ने कुछ ही समय में मुजफ्फरपुर से होते हुए बिहार के 18 जिलों को अपनी जकड़ में ले लिया था. हजारों बच्चों की मौत के बाद भी सरकार की नींद नहीं टूटी. इसी उदासीनता ने अब राजस्थान के इस अस्पताल में सैंकड़ों बच्चों को मौत की नींद सुला दिया है.