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अयोध्या केस में 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी करें सभी पक्ष : CJI

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस की सुनवाई पिछले 36 दिनों से हो रही है. आज 37वें दिन की सुनवाई में प्रधान न्यायधीश (CJI) रंजन गोगोई ने कहा है कि 17 अक्टूबर को सभी पक्ष अपनी दलीलें खत्म कर लें. जानें पूरा मामला

प्रधान न्यायाधीश गोगोई

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Published : Oct 4, 2019, 4:31 PM IST

Updated : Oct 4, 2019, 11:48 PM IST

नई दिल्ली : अयोध्या केस में सभी पक्षों को 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी करनी होगी. आज प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने ये बात कही. उन्होंने कहा कि अगर किसी पक्ष को कोई राहत (Relief) चाहिए, तो वे 17 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं.

आज 37वें दिन की सुनवाई के दौरान राजीव धवन ने कहा कि अगर मैंने छह दिनों तक प्रार्थना नहीं की, तो इससे मेरा प्रार्थना का अधिकार खत्म नहीं होता. उन्होंने कहा कि दिसंबर 6 और 8 के बीच क्या हुआ. हमने कभी भी मस्जिद नहीं छोड़ी. अगर उन्होंने हमें अंदर जाने से रोका, तो इसका मतलब ये नहीं है कि हम बेदखल कर दिए गए.

सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि राजीव धवन ने अपना पहला नोट पूरा नहीं किया है, उन्हें अभी दो और पूरे करने हैं. वैद्यनाथन के जवाब में धवन ने कहा, 'मैं इसे जल्द से जल्द पूरा करूंगा.'

इसके बाद सीजेआई गोगोई ने कहा कि 17 अक्टूबर सुनवाई की अंतिम तारीख होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अयोध्या भूमि विवाद में सभी दलीलें 17 अक्टूबर तक पूरी कर ली जाएंगी. ये पहले तय की गई सीमा से एक दिन पहले है. बता दें कि खुद सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा था कि 18 अक्टूबर तक इसकी सुनवाई पूरी कर ली जाए. शीर्ष अदालत ने कहा कि सभी पार्टियां, इस बात पर 17 नवंबर को बहस कर सकती हैं, कि उन्हें क्या राहत (Relief) चाहिए.

वकील विष्णु शंकर से बातचीत

पीठ ने कहा कि इस विवाद में मुस्लिम पक्षकार अपनी बहस 14 अक्टूबर तक पूरी करेंगे और इसके बाद दो दिन का समय अर्थात् 16 अक्टूबर तक हिन्दू पक्षकारों को इन दलीलों का जवाब देने के लिये उपलब्ध होगा. अंतिम दिन 17 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई पूरी कर ली जायेगी.

इस मामले में शीर्ष अदालत का फैसला 17 नवंबर से पहले ही आने की उम्मीद है क्योंकि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई उस दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

बता दें कि इस विवाद का मध्यस्थता के माध्यम से सर्वमान्य समाधान खोजने का प्रयास विफल हो जाने के बाद संविधान पीठ से छह अगस्त से इन अपीलों पर रोजना सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस की सुनवाई पिछले 36 दिनों से हो रही है. 36वें दिन की सुनवाई के दौरान हिंदू दलों ने अपना पक्ष रखा.

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गुरुवार को 36वें दिन की सुनवाई में वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने उच्च न्यायालय के पूर्व आदेशों को दोहराते हुए अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि अयोध्या में ध्वस्त की गई बाबरी मस्जिद के नीचे विशाल संरचना की मौजूदगी के बारे में साक्ष्य संदेह से परे हैं और वहां खुदाई से निकले अवशेषों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वहां मंदिर था.

अयोध्या मामले में सुनवाई
मुस्लिम पक्षकारों ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि वे इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है, लेकिन स्थल से जुड़े विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से नहीं सुलझाया जा सका क्योंकि हिंदू पक्ष ने दावा किया कि ध्वस्त मस्जिद का मध्य गुंबद ही वह स्थान था जहां उनका जन्म हुआ था.

उन्होंने कहा कि छह दिसंबर 1992 को विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर मस्जिद गिराए जाने के साथ ही भारत की धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता के बारे में विदेशी धारणा बदल गई.

मुस्लिम पक्ष ने कहा कि एक विद्वान ने कहा था कि भारत कई सभ्यताओं की धरती है लेकिन अब इसके सिर्फ हिंदू सभ्यता बन जाने का खतरा है.

मुस्लिम निकायों ने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि यद्यपि मुसलमानों के खिलाफ दुश्मनी बढ़ायी जा रही है लेकिन अयोध्या ऐसी भूमि है जहां हिंदू और मुसलमान सदियों से साथ साथ रहते आए हैं.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि उन्हें इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है लेकिन हिंदुओं ने जोर दिया कि गिराए गए मस्जिद का मध्य गुंबद ही उनका वास्तविक जन्म स्थान है.

पढ़ें-सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामला : 'मंदिर के लिए किसी स्थान पर मूर्ति होना जरूरी नहीं,' हिंदू पक्ष ने दी दलील

धवन ने कहा, 'हम लोग सहित कोई भी अयोध्या के भगवान राम का जन्म स्थान होने के बारे में मना नहीं कर रहा है. लंबे समय से चला आ रहा यह विवाद काफी पहले ही सुलझ गया होता, अगर इसे दूसरे पक्ष ने स्वीकार कर लिया होता कि वह मध्य गुंबद के नीचे नहीं पैदा हुए थे. हिंदुओं ने जोर दिया कि उनका जन्म मस्जिद के मध्य गुंबद के नीचे हुआ. वास्तविक स्थल विवाद का मूल है.'

इस पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं. उन्होंने पीठ के समक्ष कहा कि अदालत द्वारा 1949 में एक रिसीवर नियुक्त किए जाने के बाद भी मस्जिद का 'विध्नकारी विरूपण' हुआ.

उन्होंने कहा कि 1950 से 1990 की अवधि के दौरान मस्जिद का विध्नकारी विरूपण हुआ था जब अदालत ने कोर्ट रिसीवर नियुक्त किया था. फैजाबाद के पूर्व डिप्टी कमिश्नर केके नैय्यर और फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह की तस्वीरें दीवार पर लगी थीं. उस समय विवादित ढांचे के अंदर सिर्फ हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति थी. यह अवैध था और अदालत के आदेशों का उल्लंघन था. धवन ने कहा, 'आप विवादित ढांचे के खंभों को सिंदूर से नहीं रंग सकते जहां मैग्नीफाइंग ग्लास से भी शिलालेख को पढ़ना मुश्किल हो जाता है... अदालत के आदेशों के बावजूद गैरकानूनी काम किए गए.'

वरिष्ठ वकील ने कहा कि धार्मिक बंदोबस्ती किसी के पक्ष में मालिकाना हक नहीं देती और जब मुगल बादशाह बाबर आया था तो यह एक बेकार भूमि थी और संपत्ति का कोई मालिक नहीं था.

सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि उच्च सदन ने ये आदेश दिया था कि विवादित स्थल की खुदाई की जाए. इससे ये पता लगाया जाए कि विवादित ढांचे के नीचे कोई और ढांचा मौजूद है या नहीं.

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क्या है पूरा मामला...
बता दें, मुख्य न्यायधीश के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधानिक पीठ अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है.

उच्च न्यायालय ने अयोध्या में विवादित 2.77 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली इस पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.

Last Updated : Oct 4, 2019, 11:48 PM IST

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