नई दिल्ली : वह सर्द रात जब पूरा देश सो रहा था उस वक्त दिल्ली की सड़कों पर एक मासूम के साथ हैवानियत का गंदा खेल खेला गया. वह जीना चाहती थी लेकिन हैवानों ने जो तकलीफ उसे दी थी उसके आगे वह जिंदगी की जंग हार गई थी. लोगों ने उसे नाम दिया 'निर्भया'. उस मासूम को इंसाफ दिलाने पूरा देश सड़क पर आ गया और जिसकी गूंज संसद तक सुनी गई.
दिल्ली के चेहरे पर एक बदनुमा दाग की तरह ठहरी हुई वो वारदात आज भी उतनी ही दिल दहला देने वाली है जितनी 6 साल पहले थी.
18 दिसंबर 2012
घटना के दो दिन बाद दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि आरोपी बस ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया जिसका नाम राम सिंह बताया गया. बाद में पुलिस ने जानकारी दी कि इस मामले में 4 अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस सभी आरोपियों से लगातार पूछताछ कर रही थी. पूरे देश में घटना के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे. लोग सड़कों पर उतर आए थे और पूरे देश की निगाहें केवल दिल्ली पुलिस की जांच और कार्रवाई पर लगी हुई थी.
29 दिसंबर, 2012
इन सबके बीच जो जूझ रही थी वो थी निर्भया. दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज चल रहा था, लेकिन हालत में सुधार न होने पर उसे सिंगापुर भेजा गया. वहां अस्पताल में इलाज के दौरान वह जीवन की जंग हार गई.
1 मार्च 2013
मामला कोर्ट में चल रहा था, पुलिस को मामले में 80 लोगों की गवाही भी मिली थी, सुनवाई हो रही थी. मगर तभी आरोपी बस चालक ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली. हालांकि राम सिंह के परिवार वालों और उसके वकील का मानना है कि जेल में उसकी हत्या की गई थी.
2013-2014
फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 10 सितंबर, 2013 को चारों बालिग आरोपियों को दोषी करार दिया और 13 सितंबर 2013 को उन्हें मौत की सजा सुनाई. आरोपियों ने फास्टट्रैक कोर्ट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी.
2015 में नाबालिग आरोपी को मिली जमानत
इस जघन्य अपराध में शामिल नाबालिग दोषी को बाल सुधार गृह में तीन साल गुजारने के बाद 20 दिसंबर 2015 को अदालत ने जमानत पर रिहा कर दिया. इसके साथ ही दोषी को कड़ी सुरक्षा के बीच एक गैर सरकारी संगठन की देखरेख में रहने के लिए निर्देशित भी किया गया.
2014-2018
2 जून, 2014 को दो आरोपियों ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. 14 जुलाई, 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने चारों आरोपियों की फांसी पर सुनवाई पूरी होने तक रोक लगा दी.
15 मार्च 2014 को दो आरोपियों के वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. अन्य दोषियों की तरफ से वकील एपी सिंह भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे.
दोषी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. चार अप्रैल 2016 उनकी फांसी की सजा पर रोक लग गई.
11 जुलाई 2016 को देरी होते देख सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई 2016 को केस तीन जजों की बेंच को भेजा.
18 जुलाई 2016 से सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह की.
27 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हुई, फैसला सुरक्षित रखा गया.
5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की सजा बरकरार रखी.
9 जुलाई 2018 को दोषियों की ओर से दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए मौत की सजा को बरकरार रखा.
13 दिसंबर 2018 को चारों दोषियों को तुरंत मौत की सजा देने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका को सुप्रमी कोर्ट ने खारिज कर दिया.
दोषियों की याचिका