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विशेष लेख : देश के आर्थिक विकास का ईंधन है कोयला

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Published : Jan 16, 2020, 9:53 AM IST

कोयला क्षेत्र में कोल इंडिया लिमिटेड के एकछत्र राज को खत्म करते हुए हाल ही में  केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में निजी कंपनियों को भी व्यावसायिक तौर पर कोयला निकालने और बेचने की इजाजत दी है. केंद्र सरकार को उम्मीद है कि नए कानूनों के चलते बोली के दौरान मुकाबला अच्छा होगा, जिससे कोयले का उत्पाद बढ़ेगा. यह भी उम्मीद की जा रही है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के इस क्षेत्र में आने से नई और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल बढ़ेगा.

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कोयला उत्पाद

कोयला क्षेत्र में कोल इंडिया लिमिटेड के एकछत्र राज के खत्म करते हुए हाल ही में केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में निजी कंपनियों को भी व्यावसायिक तौर पर कोयला निकालने और बेचने की इजाजत दी है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में माइनस एंड मिनरल्स (डेवेलपमेंट एंड रेग्यूलेशन) एक्ट, 1957 और 2015 के कोल माइंस एक्ट में संशोधन कर एक अध्यादेश जारी किया है.

फरवरी, 2018 में सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से सरकार को कोयला क्षेत्र में और ज्यादा खिलाड़ियों के आने और दामों के गिरने की उम्मीद थी, लेकिन नियमों का जाल अब भी बना हुआ है और परेशान कर रहा है. अगर सरकार बोली में ज्यादा से ज्यादा निजी कंपनियों की मौजूदगी और विदेशी निवेश चाहती है तो नियम कायदों की अड़चनों को हटाने की जरूरत है.

फिलहाल ऊर्जा और पावर क्षेत्र के लोग बोली में तभी हिस्सा ले सकते थे, अगर उनके पास कोयला क्षेत्र में काम करने का अनुभव हो. नये अध्यादेश के कारण अब इस शर्त को हटा लिया गया है, जिसके बाद पीबॉडी, ग्लेनकोर और रियो टिंटो जैसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के भी अब बोली की प्रक्रिया में शामिल होने की उम्मीद है.

सीमेंट, इस्पात और ऊर्जा क्षेत्र के उद्योगों के सुचारु रूप से चलने के लिए कोयले की सप्लाई निरंतर होना जरूरी है.

मांग और पूर्ति के फर्क को भरने के लिए भारत ने पिछले साल 23 बिलियन टन कोयले का आयात किया था. हम अगर घरेलू भंडारों से कोयले की पूर्ति कर पाते तो इस आयात में से 13 करोड़ टन कम खरीदना पड़ता.

केंद्र सरकार को उम्मीद है कि नए कानूनों के चलते बोली के दौरान मुकाबला अच्छा होगा, जिससे कोयले का उत्पाद बढ़ेगा. यह भी उम्मीद की जा रही है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के इस क्षेत्र में आने से नई और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल बढ़ेगा. साल दर साल कोयले की गिरती सप्लाई के कारण उत्पाद से जुड़े उद्योग नुकसान झेल रहे हैं.

देश में घरेलू कोयला उत्पाद का तीन चौथाई कोल इंडिया से आता है, लेकिन कोल इंडिया भी घरेलू मांग को पूरा करने में असमर्थ है, जिसके कारण बड़ी तादाद में कोयले का आयात करना पड़ रहा है. 1971 में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के दो साल बाद कोल इंडिया का गठन किया गया था. तब से ही कोयले पर निर्भर रहने वाले देश के बड़े उद्योगों की मांग को पूरा करने में कोल इंडिया नाकाम हुई है, जिसके कारण विदेशी खरीद पर निर्भरता बढ़ती जा रही है.

मोदी सरकार ने अब इस क्षेत्र में कई नई तकनीकें आ जाने के बाद इन खामियों को दूर करने का मसौदा तैयार किया है. सार्वजनिक क्षेत्र में 'महारत्न' उपक्रम कही जाने वाली कोल इंडिया सालाना 60 करोड़ टन कोयले का उत्पाद करती है. कोल इंडिया, देश में कई सौ मिलियन टन कोयले की मांग को पूरा करने मे असमर्थ है और आने वाले समय में कड़े मुकाबले के कारण इसके हालात भी बीएसएनएल की तरह हो जाएंगे.

सरकार इस क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा दे रही है और कई तरह के रोजगार के मौके बनाने पर भी काम कर रही है, लेकिन सरकार को कोल इंडिया के 30 लाख कर्मचारियों के भले के बारे में भी सोचना चाहिए. केंद्रीय कोयला मंत्री ने यह कहा है कि कोल इंडिया को और ज्यादा कोल माइनिंग के लाइसेंस दिए जाएंगे. इसके बाद कोल इंडिया को नई ऊर्जा के साथ काम करने की जरूरत है. जब तक एफडीआई की प्रक्रिया पूरी होती है, अगर कोल इंडिया ने अपनी कार्यप्रणाली में सुधार ला दिया तो आने वाले समय में यह देश के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा.

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काले सोने के नाम से मशहूर कोयले के भंडारों और निर्यात के बारे में भारत की स्थिति दिलचस्प है. अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया और चीन के बाद भारत में विश्व के कोयले के सबसे ज्यादा भंडार हैं. वहीं, कोयले के आयात के मामले में जापान (16.7%) के बाद भारत सबसे बड़ा आयातक (16.2%) है.

यह बात जगजाहिर है कि पिछली यूपीए सरकार के कार्यकाल में कोयला खदान आवंटन में बड़े पैमाने पर धांधलियां हुई थी. 1993 से चली आ रही गलत नीतियों के कारण छह साल पहले 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी कोयला खदानों के आवंटन रद कर दिए थे. मोदी सरकार द्वार बोली के लिए ई-टेंडरिंग प्रक्रिया से इस मामले में पारदर्शिता आने की उम्मीद है.

कोल इंडिया और अन्य कंपनियों को कोयले के आयात को कम से कम करने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है. रद की गई कोयले की खदानों में से केवल 29 का ही दोबारा आवंटन हुआ है. अब समय आ गया है कि इस विभाग में फैली सरकारी सुस्ती को दूर कर नए कानूनों को जल्द से जल्द लागू किया जाए.

एफडीआई भी तभी तेजी से आएगी जब देश में व्यापार को प्रोत्साहित करने वाला माहौल रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से अपने कानूनों को कड़ा कर, खदान के मालिकों से ऐसे हिस्सों को दोबारा हरित करने का आदेश देने को कहा है, जहां खुदाई का काम पूरा हो चुका है. केंद्र सरकार के नये नियमों के चलते यह उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बायो डायवर्सिटी के बचाव की बात को भी पूरा किया जा सकेगा.

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