नई दिल्ली : राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद प्रकरण में मुस्लिम पक्षकारों ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की 2003 की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति को लेकर सवाल उठाये जाने के बाद बृहस्पतिवार को पलटी मारी और इस मामले में उच्चतम न्यायालय का समय बर्बाद करने के लिए उससे माफी मांगी.
पीठ ने कहा कि भले ही हम 18 अक्टूबर तक बहस पूरी कर लें, लेकिन हमारे पास निर्णय लिखने और फैसला देने के लिए केवल 4 सप्ताह का समय ही होगा. CJI ने कहा कि अगर हम चार सप्ताह में फैसला सुनाते हैं तो यह चमत्कारी होगा.
इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने बेंच से पूछा कि क्या बेंच अतिरिक्त घंटे के लिए बैठ सकती है जिस पर अदालत ने कहा कि वे जब भी आवश्यकता होगी, अतिरिक्त समय तक सुनाई करेंगे और आज भी पीठ शाम 5 बजे तक अदालत अतिरिक्त घंटे के लिए बैठी रही.
एएसआई की रिपोर्ट में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद के पहले वहां विशाल ढांचा मौजूद था.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से मुस्लिम पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि वे एएसआई की रिपोर्ट का सारांश लिखने वाले व्यक्ति के मुद्दे पर सवाल नहीं करना चाहते हैं.
एएसआई की रिपोर्ट के अनुसार वहां मिली कलाकृतियों, मूर्तियों, स्तंभ और दूसरे अवशेषों से यही संकत मिलता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे विशेष ढांचा मौजूद था.
मुस्लिम पक्षकारों का यह कथन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि शीर्ष अदालत ने बुधवार को उनसे सवाल किया था कि इस समय एएसआई की रिपोर्ट के बारे में उनकी आपत्तियों पर कैसे विचार किया जा सकता है जबकि वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कानून के तहत उपलब्ध उपाय का सहारा लेने में विफल रहे.
इससे हो रहे नुकसान को कम करने के प्रयास में धवन ने इस बारे में बुधवार को वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा की दलीलों की वजह से काफी समय बर्बाद होने पर माफी मांगी.
धवन ने कहा कि यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि हर पृष्ठ पर हस्ताक्षर करना जरूरी हो. रिपोर्ट और इसका सारांश लिखने वाले व्यक्ति पर सवाल उठाने की आवश्यकता नहीं है. यदि हमने न्यायाधीशों का समय बर्बाद किया है तो हम इसके लिए माफी मांगते हैं.
उन्होंने कहा कि जिस रिपोर्ट की बात की जा रही है, उसका एक लेखक है और हम लेखन पर सवाल नहीं उठा रहे हैं.
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं.